कोसी नदी गंगा की एक प्रमुख सहायक नदी है. यह नेपाल के पहाड़ों से निकल कर नेपाल, तिब्बत और बिहार में बहती हुई राजमहल (बिहार) के निकट गंगा में मिल जाती है। बिहार ने इसके कई विनाशकारी रूप देखें हैं इसीलिए इसे बिहार का शोक भी कहा जाता है।
कोसी नदी हिमालय पर्वतमाला में प्रायः 7000 मीटर की ऊँचाई से अपनी यात्रा शुरू करती है, जिसका ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र नेपाल तथा तिब्बत में पड़ता है। दुनियां का सबसे ऊँचा शिखर माउन्ट एवरेस्ट तथा कंचनजंघा जैसी पर्वतमालाएं कोसी के जलग्रहण क्षेत्र में आती हैं। नेपाल में इसे सप्तकोसी के नाम से जानते हैं जो कि सात नदियों इन्द्रावती, सुनकोसी या भोट कोसी, तांबा कोसी, लिक्षु कोसी, दूध कोसी, अरुण कोसी और तामर कोसी के सम्मिलित प्रवाह से निर्मित होती है।
भारत-नेपाल सीमा से लगभग 48 किलोमीटर उत्तर में कोसी में कई प्रमुख सहायक नदियाँ मिलती हैं और यह संकरे छत्र महाखड्ड से शिवालिक की पहाड़ियों से होते हुए दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है। कोसी नदी इसके बाद उत्तर भारत के विशाल मैदान में बिहार में अवतरित होकर गंगा नदी की ओर बढ़ती है, जो लगभग 724 किलोमीटर की यात्रा के बाद बिहार के पूर्णिया के दक्षिण में गंगा से मिलती है।
कोसी नदी से जुड़े प्रकृति प्रेमी कोसी के परंपरागत स्वरुप और अविरलता के लिए सतत प्रयास कर रहे हैं
कोसी नदी से जुड़ी जानकारियां फोटो द्वारा संगृहीत
कोसी नदी के भौगोलिक स्वरुप का अध्ययन दर्शाता है कि यह नदी पिछले 250 वर्षों में 120 किमी का विस्तार कर चुकी है तथा हिमालय की ऊँची पहाड़ियों से तरह तरह से अवसाद भाकर लाती हुई यह नदी निरंतर अपने क्षेत्र को फैलाती जा रही है.
नेपाल से बहकर बिहार में प्रवाहित होने वाली कोसी मानसून के समय अपने मार्ग में परिवर्तन करके भयंकर तबाही लाने ले लिए जानी जाती है. इसी कारण इसे "बिहार का शोक" भी कहा जाता है.
नदियों के किनारों पर दीवारें खड़ी करने का प्रारंभ अंग्रेजों के समय से हुआ था, जिसका दुष्प्रभाव वर्तमान में कोसी के विनाशकारी स्वरुप के तौर पर दिखाई देता है.
बाढ़ के समय बहाकर लाई गयी गाद से बिहार के मैदानों को कोसी निरंतर उपजाऊ बनाने में सहायक सिद्ध होती है. यह भूजल को भी रिचार्ज करने में उपयोगी नदी है.
हिमालय पर्वतमाला में प्रायः 7000 मीटर की ऊँचाई से कोसी अपनी यात्रा शुरू करती है, तत्पश्चात उत्तर भारत के विशाल मैदान में बिहार में अवतरित होकर गंगा नदी की ओर बढ़ती है और लगभग 724 किलोमीटर प्रवाहित होकर बिहार के पूर्णिया के दक्षिण में गंगा में निमग्न हो जाती है.