भावपूर्ण श्रद्धांजलि
पद्मश्री डॉ श्रीमती उषा किरण खान से 2020 में हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश उन्हीं के शब्दों में।
“जिसके पास घर नहीं हैं उसका पता है सुलतान पैलेस”
“हमें याद है कि उस साल (1957) गेहूँ तो प्रायः हुआ ही नहीं था और जो हुआ भी तो उसका दाना चावल के बराबर था, एकदम पतला-पतला। उस गेहूं को लोगों ने बहुत दिनों तक सहेज कर रखा था सिर्फ दिखाने के लिए कि देखो! सत्तावन में ऐसा गेहूं हुआ था। जितनी ज़मीन पर एक मन धान होना चाहिए था उतनी ज़मीन पर अगर सेर-दो सेर हो गया तो बहुत था। धान का भी वही हाल था, उसमें बीज ही नहीं था। वह खखरी हो गया था। हम लोगों के इलाके में तो गहरे पानी वाला धान होता था जिसका आकार बड़ा होता था पर उस साल तो वह भी सिकुड़ कर भयानक लगता था। उस साल पैदा हुए बच्चे-बच्चियों की पहचान भी सत्तावन वाले बच्चे के नाम की हो गयी थी।
“दूसरी चीज़ जो नहीं भूलती वह ये कि 1957 चुनाव वाला साल था। उस चुनाव में एक बार पंडित नेहरु दरभंगा आये थे। उस समय मैं एल.आर. गर्ल्स स्कूल के हॉस्टल में रहती थी। हॉस्टल की सारी लड़कियों ने मिल कर यह तय किया कि हम लोग भी नेहरु जी को देखने सभा में जायेंगी। हम लोगों ने स्कूल की हेड मिस्ट्रेस से हम लोगों को वहाँ ले जाने के लिए कहा। उन्होनें तो हमें झिड़क दिया पर हमारी प्रिंसिपल थीं चिन्मया दासगुप्ता, जो दरभंगा के तत्कालीन कलक्टर जे. सी. कुंद्रा की सहपाठिनी रह चुकी थीं और वह दोनों आपस में तुम-तुम करके बातें किया करते थे। प्रिंसिपल ने कलक्टर से बात की और कहा कि हमारी एक छात्रा है जो एक स्वतन्त्रता सेनानी की बेटी है और उसके पिताजी अब नहीं हैं। वह नेहरूजी से मिलना चाहती है। कलक्टर राज़ी हो गए और हम में से कुछ लड़कियां मंच तक जाने में सफल हो गईं। प्रिंसिपल ने बस इतनी ही शर्त रखी थी कि वहाँ नेहरु जी जो कुछ भी कहेंगें वह ध्यान से सुनना और वापस आकर हम लोगों को बताना।
पंडित जी ने अपने भाषण में बार-बार अकाल की चर्चा की और कहा कि इससे जो भी नुकसान होगा, उसकी भरपाई सरकार करेगी और किसी को भी भूख से मरने नहीं दिया जाएगा। उस साल रिलीफ भी खूब बटी थी। सभा के समय एक हेलीकाप्टर सभास्थल के ऊपर से गुज़र रहा था और उसनें कई चक्कर काटे। इस पर नेहरु जी ने कहा था कि यह हेलीकाप्टर वाले तो बड़े अमीर लोग हैं जबकि हम लोग गरीब हैं। उस समय स्वतंत्र पार्टी बनी थी और यह हेलीकॉप्टर शायद उसी का था और उसी पर नेहरु जी ने तंज़ कसा था।
असमय वर्षा, फिर चक्रवात और अंततः सूखे ने यहाँ की हालत चिंताजनक बना रखी थी। उधर गया में भयंकर अकाल था। खेतों में दरारें पड़ गयी थीं। फसलें मारी जा चुकी थीं और ढोर-डांगरों के लिए पीने के पानी की भी दिक्कत हो गयी थी। कोसी तटबंधों के बीच कोसी अपना तांडव जारी रखे हुई थी क्योंकि तटबंधो के निर्माण का कार्य अभी अधूरा था। मधुबनी और समस्तीपुर के इलाके में भी पानी की भारी कमी थी। हर तरफ सूखा और चुनाव ही चर्चा में था।
मेरा गाँव और खेत सब कोसी तटबंधों के बीच में है। होता यह था कि अन्दर कुछ भी समस्या हो तो लोगों को वहाँ से निकाल कर तटबंधों तक पहुंचा दिया जाता था। नाव पर सारा सामान और लोगों को लाद कर तटबंध पर भेज देना आसान था। उन दिनों इतने हेलीकाप्टर भी नहीं थे कि ऊपर से खाद्य सामग्री नीचे गिराई जा सके। जो भी मदद मिल सकती थी वह आसपास के लोगों के माध्यम से ही सम्भव थी। बेटी-बहुओं को उनके नैहर या ससुराल पहुंचा दिया जाता था।
हमारा घर लहेरियासराय में है तो वहां भी लोग चले जाते थे। अब गाय-भैंस का क्या करें? उनको कोई कैसे छोड़ देगा? उनके लिए तो कुछ लोगों को रुकना पडेगा भले ही उन्हें तटबंध पर ही क्यों न ले आया गया हो। तटबंध पर तो वैसे भी लोग जानवरों के साथ रहते ही हैं। भेजा के नीचे तो वैसे भी तटबंध उस समय बना नहीं था। केवल बेतरतीब मिट्टी रक्खी हुई थी। उस पर कोई कैसे रह लेगा? और अगर रह भी जाए तो खेत का क्या करेगा? वह तो अन्दर ही है। खेतों तक तो नदी का पानी कुछ न कुछ पहुंचता ही था, तभी तो खेती हो पाती थी। 6 महीने तक तो खेत पानी के ऊपर रहते थे और उसमें कुछ नहीं तो मकई हो ही जाती थी। हमारी समस्या कुछ और भी है और वह आज भी वैसे ही बनी हुई है जैसी वह पचास साल पहले थी। उस जगह को तो केवल नो मैन्स लैंड बना कर रखा हुआ है। वहां का आदमी केवल वोटर है, इसके अलावा उसकी कोई हैसियत नहीं है।
मेरे पास लड़कियां आती हैं कहानी का प्लाट खोजने के लिये। मैं उनको सुलतान पैलेस भेज देती हूँ कि चली जाओ, वहां छठी पीढ़ी फुटपाथ पर बड़ी हो रही है। एक बार मैं वहां से गुज़र रही थी तो ट्रैफिक जाम में फँस गई। वहाँ एक लड़की खडी थी उसे बुला कर पूछा कि तुम्हारे पास आधार कार्ड है? उसका लगा कि कुछ मिलने वाला है। वह अपना आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र आदि सब कुछ लेकर आ गई। उसके पास सब कुछ है पर घर नहीं है, उसके पते की जगह सुलतान पैलेस लिखा हुआ है। कितनी बड़ी त्रासदी है यह? जिसके पास घर नहीं हैं उसका पता है सुल्तान पैलेस।”
स्मृति शेष श्रीमती उषा किरण खान