कोसी तटबन्धों के बीच जीवन की शुरुआत - राज्य के एक वरिष्ठ मंत्री लहटन चौधरी का बिहार विधानसभा में बयान-1959
तबसे अब तक कुछ भी तो नहीं बदला है।
लहटन चौधरी ने कोसी तटबंधों के बीच फंसे लोगों की व्यथा सुनाते हुए 16 फरवरी, 1959 के दिन बिहार विधान सभा में कहा कि 1954 में कोसी में भयानक बाढ़ आई थी जिसमें साढे आठ लाख क्यूसेक के ऊपर पानी आया था। 1954 में बाढ़ में जितनी तबाही हुई थी उससे कहीं अधिक तबाही इस साल ढाई लाख से तीन लाख क्यूसेक के बीच नदी के प्रवाह में हुई।
इसका कारण स्पष्ट है। पहले कोसी की धारा 20-25 मील की चौड़ाई में फैल कर बहती थी जिसे आज 5-6 मील की चौड़ाई में ही सीमित कर दिया गया है। इतनी प्रचंड नदी को केवल 5-6 मील में सीमित करने का असर जो होना चाहिये था वह हुआ है और वह सारे गाँव तबाह हैं। उनका जीवन नारकीय हो चुका है। उनका वहाँ बसना असम्भव हो चुका है।
मैं मानता हूँ कि नदी के तटबन्ध बहुत से लोगों के उपकार के लिये हैं तो कुछ लोगों के लिये यह तटबन्ध मुसीबत बन कर आए हैं। इसके लिये तैयार रहना चाहिये। इस मुसीबत के लिये आना-कानी का सवाल नहीं उठता है और लोगों ने इसके लिये आना-कानी की भी नहीं है, हिम्मत के साथ लोगों ने अपनी जमीन दे दी है। सरकार भी जानती है कि इन लोगों ने न केवल मुसीबत का स्वागत किया बल्कि बड़ी मुस्तैदी के साथ उन्होंने स्वयं बांध बनाया और काफी उदारता के साथ तटबन्धों के निर्माण में श्रमदान भी किया। आज बाँध बन कर तैयार हो गया है लेकिन सवाल यह है कि जिसके ऊपर मुसीबत आई उसके लिये क्या किया जा रहा है?
उन पर बरसात के दिनों में जो गुजरती है उसे सरकार अच्छी तरह जानती है इसलिये मैं सरकार से आग्रह करता हूँ कि उन्हें बसाने का काम किया जाये। यदि यह नहीं किया गया तो बाढ़ के दिनों में फिर वही नारकीय और वीभत्स दृश्य उपस्थित होगा जो जिसे कोई आज बर्दाश्त नहीं कर सकता।
आज 65 साल बाद भी जीवन तो नारकीय और वीभत्स हो ही गया।