बड़हिया की सितम्बर,1976 की यादगार बाढ़
1976 में सितम्बर महीने के तीसरे सप्ताह में पटना, मुंगेर (वर्तमान बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा) पूर्णिया (वर्तमान किशनगंज, अररिया, कटिहार तथा पूर्णिया) आदि जिलों में भयंकर बाढ़ आ गयी थी। इस बाढ़ के बारे में मुझे बड़हिया श्री कृष्ण मोहन सिंह (आयु 66 वर्ष) ने बहुत कुछ बताया। उनका कहना था कि,
हमारा गाँव बड़हिया पूरब से गंगा, पश्चिम से हरोहर नदी (यह नदी कहीं से आयी नहीं है) से घिरा हुआ है। दक्षिण बिहार के पहाड से 14 पहाड़ी नदियाँ निकलती हैं, जिनका अस्तित्व बड़हिया-मोकामा टाल में प्रवेश करते ही समाप्त हो जाता है। वह सभी नदियाँ जो किसी नदी में नहीं मिल पाती हैं और जो क्षेत्र 1064 वर्ग मील में फैला हुआ है उसी में आकर समाप्त हो जाती है। इस जगह का एक नाम ताल था मगर अंग्रेज ताल शब्द का उच्चारण नहीं कर पाते थे तो टाल कहते थे। उसी से धीरे-धीरे इसका नाम टाल ही हो गया। टाल में हाल के दिनों में एक नया प्रखंड सृजित हुआ है घोसवरी और मोकामा के साथ उसका नाम लिया जाता है। इस तरह से यह मोकामा-घोसवरी हो गया। इसी में त्रिमुहान पड़ता है जो तीन नदियों के एक साथ आने से नामित हुआ है। यह नदियाँ त्रिमुहान पहुँचती हैं और यही से हरोहर नदी का सृजन होता है।
यह हारोहर नदी हमारे मोकामा-बड़हिया ताल होते हुए किउल नदी में जाकर मिल जाती है वहाँ से आगे हरोहर नदी का नाम चिल्ली हो जाता है। अब यह नदी लाल दरवाजा मुंगेर तक जाती है। चिल्ली नदी लखीसराय के बगल से हमारे दियारा क्षेत्र से होते हुए आगे जाती है और अब तो उसके पहले डकरा नाला में ही मिल जाती है और वही से यह गंगा में विलीन हो जाती है।
बड़हिया में हर साल विश्वकर्मा पूजा का बहुत बड़ा आयोजन होता था। इसमें राष्ट्रीय स्तर के कव्वाल बुलाये जाते थे जो मुख्यतः बम्बई से यहाँ आते थे। कई दिनों तक यहां बड़ा उत्सव का माहौल रहता था। उस साल 17 से 19 सितम्बर के बीच हमारे दियारा क्षेत्र में बहुत जोरों से बारिश हुई थी। लगातार वर्षा के कारण गाँव-गाँव में पानी भरना शुरू हो गया। यह वर्षा दक्षिण बिहार में भी हुई थी और उधर का पानी भी इधर ही आता है और जबरदस्त उफान के साथ इस तरफ बहने वाली नदियों में भी था। इधर गंगा में भी उफान था। हम लोग गंगा और ताल की नदियों के पानी से घिरे हुए हैं। हमारे लिये दोनों ओर से तबाही आयी। मोकामा के इधर बाढ़ और बख्तियारपुर की तरफ जो पी.डब्ल्यू.डी. की सड़क थी वह बाढ़ के पानी में डूब गयी और उस पर से पानी की धार चलने लगी। पटना से जो सड़क इधर आती है उस पर भी बाढ़ का पानी चढ़ गया था।
उसी समय मैं मुजफ्फरपुर से दुमका जाने वाली बस में मुजफ्फरपुर से बड़हिया अपने गांव बड़हिया आ रहा था। राजेंद्र पुल के उत्तर तरफ बाढ़ का पानी सड़क पर नहीं था लेकिन इस पार बाटा मोड़ के सड़क के पास कमर भर पानी भर रहा था। बस आगे नहीं जा सकती थी। बस को वापस करवाया गया और सड़क से उतर कर बहुत से लोग हाथीदह स्टेशन पर आ गये। मैं भी उनमें से एक था। बारिश लगातार हो रही थी, इस स्टेशन के दोनों तरफ जांघ भर पानी हो गया था, सिर्फ प्लेटफार्म पर पानी नहीं था। एक तरफ से हरोहर का पानी था और दूसरी तरफ से गंगा का पानी उफन कर आ गया था। हाथीदह स्टेशन के बाहर तो सड़क पानी में डूबी हुई थी मगर रेलवे लाइन पर पानी नहीं था। रात में मैं हाथीदह स्टेशन पर ही रह गया। यहां रेलवे लाइन पर सांप और बिच्छू बड़ी संख्या में आ गये थे। हाथीदह स्टेशन के आसपास खाने-पीने की सारी दुकानें पानी में डूबी हुई थी। यहाँ स्टेशन पर मरांची गाँव के एक दुकानदार की मेहरबानी से कुछ खाने पीने का इंतजाम हो पाया। स्टेशन पर औरतों, बच्चों समेत काफी लोग थे।
यही रेल लाइन पकड़ कर मैं सुबह बड़हिया आ गया। यहां जब पहुँचे तो वहाँ का दृश्य तो भयावह था। प्लेटफार्म से जब नीचे उतरे सड़क पर तो यहाँ भी कमर पर पानी था और वह लोहिया चौक तक भरा हुआ था। जैसे-तैसे घर पहुँचा, मेरा घर कुछ ऊंचाई पर है इसलिये घर में पानी नहीं घुसा था। हमारे गाँव में एक सड़क है उसको अब जगदम्बा स्थान रोड कहते हैं। गाँव में एक त्रिपुरा सुन्दरी का मन्दिर है और वहाँ जाने वाली इस सड़क के पूर्व में जो तबाही हुई थी वहाँ अधिकांश गंगा की ओर के घर पानी में डूबे हुए थे। वहाँ के डीह पर बसे घरों को छोड़ कर बाकी घरों में पानी प्रवेश कर गया था। हमारे गाँव की स्थिति यह है कि पूरब में गंगा है और पश्चिम में हरोहर है। रेलवे लाइन के उस पार हरोहर और इस पार गंगा है। हमारा गाँव उत्तर दक्षिण दिशा में बसा हुआ है क्योंकि पूरब और पश्चिम दोनों तरफ नदियां है। पश्चिम में गाँव में टाल का पानी हमारे यहाँ भी पहुंच जाता है। हमारे पुराने गाँव का जो डीह है, जिस पर हमारे पूर्वज आकर बसे थे, उस डीह पर पानी नहीं चढ़ा था और किसी के घर में भी पानी नहीं घुसा था।
हम लोग मूलत: दरभंगा जिले के रहने वाले थे और वहीं से यहाँ आकर बसे। हमारे पूर्वज दरभंगा से चले थे देवघर बाबा का दर्शन करने और स्नान करने के लिये और लौटते समय इसी रास्ते से गुजरे थे। यहाँ पर उन्होंने इस डीह पर एक चूहे और बिल्ली को लड़ते हुए देखा। यहाँ चूहों के घने बिल थे और बिल्ली भी वहीं रहती थी। पूर्वजों ने देखा कि एक बिल्ली एक चूहे को देख कर गुर्रा रही थी। आमतौर पर चूहा या तो भाग जाता है या बिल्ली उसे दौड़ा लेती पर वह चूहा बिल्ली के सामने तन कर खड़ा हो गया और जोर से चिल्लाया और बिल्ली वहाँ से भाग गयी। पूर्वजों ने देखा कि प्रकृति तो यह है कि बलवान कमजोर को दबा देता है पर यह स्थान ऐसा था जहाँ कमजोर प्राणी भी बलवान को खदेड़ देने के लिए सामर्थ्य रखता है। उन लोगों को लगा कि यह तो चमत्कारी स्थान है और यहीं रहना चाहिये।
उन लोगों ने यहाँ के उस समय के राजा का पता लगाया और उनसे मिलना चाहा। तब मालूम हुआ कि यहाँ का राजा बीमार है। फिर भी वह लोग उससे मिलने के लिये गये। इस समूह में कुछ वैद्यक के जानकार भी थे और उन्होंने राजा का उपचार किया और राजा स्वस्थ हो गया। जब उन्होंने राजा से अपने गांव जाने की आज्ञा मांगी और वहाँ से वापस घर जाने का कार्यक्रम बनाया तो राजा नहीं माना। उसने इन लोगों से कहा कि वह अब लोग यहीं बस जायें। तब इन लोगों ने राजा से वही डीह बसने के लिये मांगा जहां पर चूहे बिल्ली का खेल उन्होंने देखा था। वही डीह आज का बड़ाहिया डीह है। यही वजह थी कि चारों ओर पानी होने के बावजूद यह बड़हिया डीह उस साल (1976) में भी पानी में नहीं डूबा था।
क्रमशः