फिर वही सत्तर साल का सवाल उठता है।
निर्मली के कोसी पीड़ितों के सम्मलेन (5 और 6 अप्रैल 1947) के बारे में कोसी समस्या में रुचि रखने वाले आप जैसे बहुत लोगों ने सुना होगा। इस सम्मलेन में कुछ प्रस्ताव लिए गए थे जिनके बारे में मैं आपको आज बताता हूँ।
1949 में बिहार लेजिस्लेटिव असेंबली में हरिनाथ मिश्र जी ने एक भाषण दिया था जिसमें उन्होंने इस प्रस्ताव की चर्चा की थी। उनके अनुसार कोसी द्वारा पैदा की गयी समस्याओं से तैयार हुई विषम परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव में निम्न बातें कही गयी थीं।
(क) कोसी क्षेत्र की नष्टप्राय भूमि का सरकारी खर्चे पर पुनरुद्धार किया जाए,
(ख) कानूनी तौर पर ज़मींदारों द्वारा रय्यत की दखल की हुई ज़मीन को मुक्त करवा कर उसके मूल मालिकों को लौटाया जाए,
(ग) ऐसा क़ानून बनाया जाये कि कोसी पीड़ित क्षेत्र में मालगुजारी या उसकी किसी बकाया राशि की वसूली रोक दी जाए,
(घ) ऐसा कानून बने जिससे मूल रय्यत अपनी ज़मीन का उपयोग अपनी मर्ज़ी से कर सके भले ही उसकी ज़मीन पर जंगल उग आया हो वह ज़मीन पानी में डूबी हुई हो,
(ङ) प्रत्येक अंचल में कम से कम पांच ऐसी दुकानें खोली जायें, जहाँ से लोग अपनी जरूरत की चीज़ें वाजिब दर पर खरीद सकें और इन सामानों पर आवश्यकतानुसार सरकार की तरफ से छूट दी जाए,
(च) हर अंचल में कम से कम एक केंद्र ऐसा जरूर हो जहाँ से कोसी की बाढ़ के कारण दर-दर के भिखारी हुए लोग भोजन पा सकें और अपनी जरूरत की सारी चीज़ें बिना किसी शुल्क के प्राप्त कर सकें. ऐसे लोगों को रोज़गार देने के लिए गृह उद्योगों की स्थापना की जाए,
(छ) कोसी पीड़ित इलाके में हर पांच मील की दूरी पर साधन-संपन्न दातव्य चिकित्सालय खोले जाएँ और आवश्यक संख्या में चलंत औषधालय रखे जाएँ तथा पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य निरीक्षकों की नियुक्ति की जाए ताकि महामारियों से निपटने में मदद मिल सके. इसके साथ ही कोसी क्षेत्र में शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था की जाये,
(ज) कोसी क्षेत्र में सभी रेल सेवाओं और सड़क परिवहन की पुनर्स्थापना की जाए और नयी सड़कें बनाई जाय और रेल सेवाओं का विस्तार किया जाए, इसके साथ ही इस इलाके की डाक और तार व्यवस्था को भी बेहतर बनाया जाए,
(झ) कोसी प्रभावित क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए विशेष तौर पर छात्रवृत्ति की व्यवस्था हो और मेधावी छात्रों की फीस माफ़ कर दी जाये,
(ञ) कोसी प्रभावित क्षेत्र की समस्याओं के लिए सरकार के अन्दर एक विशेष संभाग बनाया जाए जो ऊपर दिए सारे बिन्दुओं के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए काम करे और इसके साथ ही एक सलाहकार परिषद् का गठन किया जाए जो कोसी क्षेत्र की समस्याओं पर अपनी राय दे सके.
यह सिफारिशें 1947 की हैं आज़ादी के ठीक पहले की। इनमें से कुछ का समाधान तो मुमकिन है, ज़मींदारी प्रथा के हटने से हुआ होगा मगर बाकी चीज़ों के लिए वहां के लोग अभी भी तरसते हैं। लोगों की अवस्था के सुधार के लिए लघु उद्योगों की स्थापना की बात कही गयी जो नहीं हुई। कोसी क्रांति का नाटक हुआ उस पर डेढ़ साल के अन्दर पटाक्षेप हो गया। चन्द्र किशोर पाठक कमिटी का गठन हुआ उसकी सिफारिशों में से कितनी लागू हुईं और कितनी के बारे में किसी को जानकारी भी नहीं है।
कोसी पीड़ित प्राधिकार बना जो क्या करता है शायद किसी को नहीं पता। कोसी तटबंध के अन्दर रहने वाले लोग जो अब प्रायः उसी परिस्थिति में हैं जिनमें 1947 के पहले के लोग रहते रहे होंगें, उनकी अविश्वसनीय स्थिति पर सामर्थ्यवान लोग अपना मुंह दूसरी तरफ कर लेते हैं और तटबंध टूटने पर जो बाहर वालों की दुर्गति होती है वह छिपाए नहीं छिपती। कुल मिला कर जो किया जा सकता था वह भी नहीं हुआ और जिन्होनें समाधान सुझाया था उनकी ज़बान भी उस समय बंद हो गयी जब वह खुद हुकूमत पर काबिज हुए।
चचा ग़ालिब बजा फरमा गए थे।
"तेरे वायदे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता"