यह चंगेज़ खाँ की हुकूमत नहीं है तो और क्या है?
1961 की चंपारण के धनहा थाने की घटना है। उस साल गंडक नदी का पानी जुलाई महीने के पहले सप्ताह में ही थाने के लगभग 30 गाँवों में घुस चुका था मगर सरकार को इसकी खबर 8 अगस्त तक नहीं लगी। बाढ़ की शुरुआत भैंसालोटन से हुई और नदी के पानी का लेवल ख़तरे के निशान को पार कर गया। करीब तीस हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हुए और स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना भी दी गई मगर न तो सरकार ने नावों की कोई व्यवस्था की और न रिलीफ का ही कोई इंतजाम किया।
इसी इलाके में बगल के उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कलक्टर, एस.डी.ओ. और बी.डी.ओ. अपने क्षेत्र का दौरा करके लोगों के बचाव/राहत का काम देख रहे थे मगर बिहार के किसी अफसर या मंत्री की कोई नज़र ही वहाँ के लोगों पर नहीं थी।
स्थानीय विधायक योगेंद्र प्रसाद श्रीवास्तव का विधानसभा में कहना था कि, "एक तरफ इसी सदन में कुछ दिन पहले ग़रीबों के नाम पर सीलिंग बिल पर डिस्कशन चल रहा था, उनकी रोज़ी-रोटी की बात की जा रही थी पर दूसरी तरफ गरीबों को जो बाढ़ पीड़ित हैं उन्हें देखने वाला कोई नहीं है।...ठकराहा के बी.डी.ओ. जब मालगुजारी वसूल करने के लिए गए तो लोगों के मवेशी को भी जब्त कर लिया था। एक आदमी जो मालगुजारी नहीं दे सका गरीबी के चलते तो उसको कड़ी धूप में घंटों खड़ा रखवा दिया। क्या यही आपकी वेलफेयर स्टेट है? यह चंगेज खाँ की हुकूमत नहीं है तो क्या है?
श्रीवास्तव को इस बात का अफ़सोस था कि इस तरह से बाढ़ और सूखे पर चर्चा हर साल होती है मगर नतीजा कुछ नहीं निकलता। इस समय भी जब इस विषय पर चर्चा हो रही थी तो सदन में सिंचाई और कृषिमंत्री में से कोई भी मौजूद नहीं था।
अभी तक कुछ बदला है क्या?