नहरों और नदियों के तटबन्धों का टूटना
कल मेरे एक मित्र ने मुझे खबर भेजी है कि गंडक नहर का बांध टूट गया और आधिकारिक तौर पर यह बताया गया के चूहों ने बांध में छेद कर दिया था इसलिये वह टूट गया। यह बहाना आज़ादी के बाद से 1968 तक बड़े लम्बे और विश्वास के द्वारा किया जाता रहा कि ऐसी घटनाओं के पीछे चूहों का हाथ था।
मुझे याद आता है 1968 में कोसी का दाहिना तटबन्ध जमालपुर के पास पांच जगह टूटा था और इसकी जांच करने के लिये केंद्रीय जल आयोग के वरिष्ठ इंजीनियर कुमरा साहब यहां आये थे और उन्होंने यही दलील दी थी कि चूहों के बिलों की वजह से कोसी का पश्चिमी तटबन्ध पांच जगह टूट गया। इसको लेकर काफी हल्ला हंगामा हुआ था। चूहा कैसे बांध में ऐसा छेद कर सकता है कि वह टूट जाये और अगर चूहे इतने प्रतापी थे कि वह बांध को काट दें और यह बात विभाग को मालूम थी तो उसे रोकने के लिये पहले से कदम क्यों नहीं उठाये गये? क्यों तटबन्धों के टूटने तक की प्रतीक्षा की गयी?
उसके बाद से सरकार की तरफ से चूहों द्वारा बांध काटने की घटना पर पर्दा डाल दिया गया और उसके बाद जब भी कहीं बांध टूटता था तब कहा जाता था कि असामाजिक तत्वों ने उसे काट दिया, जिसकी वजह से बांध टूट गया। यह दलील भी काफी दिनों तक चली। तब समझ में नहीं आता था कि अगर इन असामाजिक तत्वों ने अपनी कमाई या सुविधा बढ़ाने के लिये बांध को काटा तो वह कुछ ऐसा काम भी कर सकते थे, जो आसान होता और जिसमें कोई खतरा नहीं था। लेकिन क्योंकि यह बहाना था इसलिये काफी दिनों तक वह भी चलने दिया गया।
नहर या नदी में पानी ज्यादा या समय से पहले आ गया यह तो बहानों का स्थायी भाव था। लेकिन ज्यादा पानी आने या समय से पहले पानी आने वाले पानी से निपटने के लिये कौन जिम्मेवार था इस पर कभी चर्चा या बहस नहीं हुई। कभी-कभी यहां तक कहा गया कि बांध है तो वह टूटेगा ही। तब किसी ने नहीं पूछा कि जब यह पता था कि वह टूटेगा ही तो बनाया क्यों गया? और अगर बनाया गया तो उसके टूटने न देने की जिम्मेदारी किसकी थी?
कुछ साल पहले पटना के जल संसाधन विकास संस्थान में राज्य की बाढ़ की समस्या पर एक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें जल संसाधन विभाग के तत्कालीन सचिव ने कहा था कि बांध का टूटना जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। अब यह तो अब तक का अन्तिम और अकाट्य सत्य है और यह विभाग को लम्बे समय तक बचाव का रास्ता दिखाता रहेगा।
जो भी यह तीन-चार कारण अब तक बताये गये हैं उसमें विभाग अपनी जिम्मेवारी लेने को कभी तैयार नहीं होता। बांध के किनारे बसे लोग जो कि इस तकनीक और इस प्रयास के लाभार्थी माने जाते हैं उनको रिलीफ दे कर बहला फुसला लिया जाता है पर इस पर कभी कोई कार्यवाही नहीं होती है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
क्या हम आशा करें कि हमारा जल संसाधन विभाग कम से कम अब से इस दिशा में कोई प्रयास करेगा जो बचाव के बहाने न खोजने पड़ें।