बिहार-बाढ़-सूखा-अकाल -1966
पिछले साल कमला-बलान नदी के तटबन्ध 21 जगह टूटे थे और इस साल भी तमाम कोशिशों और पैसा बहाने के बाद भी यह तटबन्ध 4 स्थानों पर ही टूटे। राज्य सरकार के लिये उपलब्धि, भले ही सापेक्ष हो और सान्त्वना देने वाली हो, पर लोगों की तबाही में कोई कमी नहीं आती थी।
इसी क्षेत्र के कमला-बलान नदी की चर्चा करते हुए हरिश्चंद्र झा ने बिहार विधानसभा में बाढ़ और सूखे पर चल रही बहस में कहा कि आज की बहस में बहुत से क्षेत्रों से यह माँग आ रही है कि उनके यहाँ नदियों पर बाढ़ से निपटने के लिये तटबन्ध बना दिये जायें मगर मेरा तो अपनी सराकार से आग्रह है कि हमारे यहाँ जो कमला का तटबन्ध है उसे तोड़ देना चाहिये। वहाँ के लोग यह चाहते हैं कि जमीन की जो स्थिति तटबन्ध बनने के पहले थी उसी हालत में हो जानी चाहिये।
मुझे उस इलाके में जाने और घूमने का मौका मिला है...उन लोगों की माँग होती थी कि या तो बाँध को तोड़ दिया जाये या उन्हें बन्दूक से मार दिया जाये। हर साल बरबाद होते-होते उनकी रीढ़ टूट गयी है। वाटरवेज के जितने अधिकारी है है, चाहे बड़े हों या छोटे, ठेकेदारों से मिले रहते हैं और नाजायज फायदा उठाते हैं।
बाँध पर मिट्टी नहीं दी जाती है। उनके घर पर से पानी बहता है, मवेशी मरते हैं और धन सम्पत्ति की बहुत बड़ी क्षति होती है। पूर्वी और पश्चिमी तटबन्ध पर ब्रीचेज़ हुए हैं। कहा जाता है कि रेलवे का छोटा सा पुल है जिसकी वजह से तटबन्ध टूट जाता है। गत साल जो बैठक हुई थी उसमें रेलवे के अधिकारी भी सम्मिलित हुए थे। अब रेलवे ने पुल बड़ा बनवा दिया है। इस बार रेलवे को भी दोष नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ टूटा है...24 तारीख (अगस्त) को ब्रीच हुआ लेकिन मुझको 28 तारीख को वहाँ जाने का मौका मिला। मैंने वहाँ देखा कि मवेशी भर छाती पानी में बँधा हुआ है। बी.डी.ओ. के लिये यह लाजिमी था कि उसे किसी ऊंचे स्थान में ले जाकर रखें। हमने डी. एम. साहब से कहा तो उन्होनें कैफियत दी कि यह एरिया मधेपुर में पड़ता है। आप जहां के बारे में कह रहे हैं वह झंझारपुर में पड़ता है, इसलिये झंझारपुर के बी.डी.ओ. को करना चाहिये। वहाँ नाव नहीं है, रिलीफ़ नहीं पहुँची है। हजारों-हजार वकी आबादी में एक मन चूड़ा और 13 सेर बूट का दिया जाना ऊंट के मुँह में जीरा का फोरन दिया जाना है। ऐसी रिलीफ़ देना रिलीफ़ नहीं देने के बराबर है।