आजादी के बीस साल बाद बिहार में पहली बार 5 मार्च, 1967 के दिन एक गैर-कॉन्ग्रेसी सरकार का गठन हुआ और महामाया प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने। यह ऐसा समय था जब बिहार एक घोषित अकाल से जूझ रहा था और नई सरकार के लिये सिर मुँड़ाते ही ओले पड़े की उक्ति चरितार्थ हो रही थी।
अकाल को लेकर विधानसभा में सरकार के इस अकाल से निपटने पर जुलाई महीने में लम्बी बहस चली और विपक्ष सरकार पर हावी था कि सरकार बिल्कुल नाकाम रही है। विपक्ष के अधिकांश वक्ता सरकार पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहते थे अगर आप को परिस्थिति से निपटना नहीं आता है और आपसे अकाल नहीं संभल पा रहा है, तो सरकार त्यागपत्र क्यों नहीं दे देती है? यह बहस लगभग 6 दिनों तक चली थी।
सरकार की तरफ से बहस का जवाब देते हुए खाद्य मंत्री कपिल देव सिंह ने वस्तुस्थिति और सरकार द्वारा किये गये प्रयास की चर्चा करते हुए विपक्ष को सन्तुष्ट करने का प्रयास किया।
विपक्ष द्वारा गद्दी छोड़ने की बात पर उन्होंने जरूर थोड़ी सी चुटकी ली। उन्होंने कहा कि अभी तो सिर्फ 3 महीने ही हुए हैं हमारी सरकार को बने हुए। रामचंद्र तो 14 वर्ष वन में रहे और पांडव 12 वर्ष तक वन में रहे और उसके बाद एक वर्ष का अज्ञातवास। अब आप किस धर्म शास्त्र के मुताबिक 3 महीने में वापस आना चाहते हैं? यह बात ठीक है कि जैसे हम कांग्रेस की शिकायत करके अपने कुछ लोगों को बताते हैं उसी तरह आप लोगों को कहते हैं कि ठहरो-ठहरो तीन-चार महीने में राज वापस आने वाला है। आप कह दें कि पाँच वर्ष में राज वापस आने वाला है तो सैकड़े में से 70 आदमी खिसक कर इधर चले आयेंगे।