उनका कहना था कि, यह घटना 1966 की है जब रोहतास एवं कैमूर जिला शाहाबाद (आरा) जिला का अंग था। उस समय मैं बीस वर्ष का रहा होऊँगा। उस समय मैंने अपनी आंखों से देखा था कि भयंकर सुखाड़ के चलते पशु एवं पक्षी पानी के अभाव में तड़प-तड़प कर मर जाते थे। जिले के लोग अपने घरों में ताले बन्द कर अपने मवेशियों के साथ रिश्तेदारों के पास चले गये थे।
मेरे पिता स्व. पंडित रामव्यास पांडेय ने पड़री सिवान स्थित अपने खेत मे कुंआ खोद कर रहट लगा दिया था, जिससे बैलों के सहारे पानी निकलता था। वह अपने खेतों में ईख, सावां-कोदो तथा सिरहा धान की खेती करते थे। जिससे मेरे परिवार के साथ-साथ गांव-जवार के लोगो को भी भोजन मिल जाता था।
कभी-कभी हमलोगों को बिना कुछ खाये ही रह जाना पड़ गया था। सरकार ने हमारे इलाके में अकाल तो घोषित कर दिया गया था, लेकिन उसके द्वारा अनाज के नाम पर लाल गेंहू एवं पशुओं को चारा मात्र ही मिल पाता था। विद्यालय में पाउडर वाला दूध तथा गेंहू की खिचड़ी बना कर बच्चों को खिलायी जाती थी। सारे खेत एवं सिवान वीरान पड़े थे।
जन-प्रतिनिधियों का भी कहीं अता-पता नहीं था। कभी-कभार उनके आने पर सूखे बिछड़े एवं सूखे धान से गेट बना कर उनका स्वागत किया जाता था, जो उन्हें क्षेत्र में भुखमरी का संकेत देता था। उस समय स्व. बाबू जगजीवन राम हमारे यहाँ से सांसद थे, उस समय उनके द्वारा पश्चिमी सोन उच्च स्तरीय नहर बनाने का प्रस्ताव किया गया था। जो आज जगजीवन कैनाल के नाम से जानी जाती है। उन दिनों परिस्थितियां इतनी खराब थीं कि आज भी याद आने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
कुछ समय के लिये मुझे भी अपने मवेशियों के साथ अपने मामा के गांव बक्सर जिले के इटढ़िया में रहना पड़ा था। वैसे तो मामा या रिश्तेदारों के गांव जाना समान्यतः होता रहता था लेकिन परिस्थितियों से विवश होकर रिश्तेदारों के घर जाना अत्यन्त ही पीड़ादायक होता था। हालांकि मेरे मामा श्री रामधनी पांडेय, जो अभी भी जीवित हैं, द्वारा मुझे काफी मान-सम्मान एवं प्यार मिलता था। मुझे मेरे मौसा के गांव नटवार थाना के राजपुर गांव में भी रहना पड़ा था, जहाँ मैंने पढ़ाई की थी। वह गांव पूर्णतः नहरी क्षेत्र में था जहाँ खेती होती थी।
मेरे मौसा वहीं से चावल एवं पशुओं के लिये चारा इत्यादि अपनी बैलगाड़ी से मेरे गांव पांडेय डीही भी पहुंचाया करते थे क्योंकि हमारे यहाँ चारे का अभाव हो गया था। हालांकि यह स्थिति सभी लोगों की नहीं थी। नहरी क्षेत्र के लोग हमलोगों को कहते थे कि इन लोगों का शरीर महकता है। तब मुझे अत्यन्त ही शर्मिंदगी एवं पीड़ा होती थी लेकिन परिस्थितियों के आगे विवश होकर मुझे तथा मेरे क्षेत्र के लोगों को वह अपमान भी सहन करना पड़ता था।
मुझे याद है कि जब 1967 के भयंकर संकट के समय ही स्व. बाबू जगजीवन राम केन्द्र में कृषि एवं खाद्य मंत्री बनाये गये थे तब उन्होंने घोषणा की थी कि किसी को भी भूख से नहीं मरने दिया जायेगा। तब उन्होंने विदेशों से खाद्य सामग्री मंगा कर लोगों में बँटवाया था। 1966-67 का अकाल एवं भुखमरी को याद कर आज भी मन सिहर जाता है।
श्री रामायण पाण्डेय