भाग : 1
वर्ष 2003 में बाढ़ के मौसम से पहले बिहार विधानसभा में जल-संसाधन
विभाग की मागों पर बहस चल रही थी. राम प्रवेश राय ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा
कि जब भी जून-जुलाई का महीना आता है,
बाढ़
की विभीषिका हमारे सामने आ खड़ी होती है. बाढ़ का पानी कभी मधुबनी, कभी दरभंगा,
कभी
कोई शहर डूबाता है और बिहार की नदियां कहीं न कहीं तबाही लाती हैं. विभाग द्वारा 286.04 करोड़ का एक एस्टीमेट
बाढ़ नियंत्रण के लिए बना, मगर न तो कोई काम बिहार सरकार ने किया और न ही केंद्र
सरकार को ही कोई प्रस्ताव भेजा गया.
सरकार जो राहत देती है, वह भी ऊँट के मुंह में जीरा ही है. उत्तर बिहार के सभी लोग बाढ़ की पीड़ा को महसूस करते हैं, इस पीड़ा को विभाग को भी महसूस करना होगा क्योंकि बाढ़ का पानी तीन-तीन महीनें तक बना रहता है. पिछले साल जब गंडक नदी के तटबंध कई स्थानों पर टूटे थे, तो हम लोग जल-संसाधन मंत्री के समक्ष आक्रोश व्यक्त करने के लिए गए थे. उन्होनें सबको एक जज्बाती भाषण दे कर शांत कर दिया था और हम लोग सारा आक्रोश भूल गए. वर्ष 1990 में उन्होनें कहा था कि राज्य में यदि एक भी बांध टूटेगा तो वह अपने पद से त्यागपत्र दे देंगें. आप उस बात को याद करिये और साहस दिखाइये और यह सब हम लोगों को मत बताइये कि क्या होगा और क्या नहीं होगा.
भाग : 2
सारे
बजट काट दीजिये सिर्फ इंसानियत का बजट रहने दीजिये.
विधायक
रामदास राय ने सदन में कहा कि “मैं पिछली बार भी इस
विषय पर बोला था, लगातार
बोल रहा हूं, लेकिन आज नेपाल की सरकार से इस विषय पर वार्ता करने या बाढ़ की
विभीषिका रोकने की व्यवस्था किस प्रकार से हो, इस दिशा में सरकार ने
कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है...अंतिम निर्णय न लेने के कारण पूरा उत्तर बिहार
नेपाल के पानी से जल-प्लावित होता रहता है और हज़ारों लोग बाढ़ से प्रभावित होकर
मारे जाते हैं...कुछ तो सकारात्मक काम हम करें, ताकि जो
बिहार के लोग इस व्यवस्था से जूझ रहे हैं, उन्हें कुछ निजात इस समस्या से दिलाई जा
सके.”
उन्होंने
आगे कहा कि, “गंडक बांध के तीन फुट ऊपर से पानी बह जाता है. कौन
इंजीनियर योजना बनता है जो बांध इतना नीचे रह गया? कहीं-कहीं बोल्डर सप्लाई
करने की जरूरत है...बोल्डर नहीं देने से बांध मजबूत नहीं होगा. देवापुर में आज क्या
हो गया?...वहां से लेकर बैकुंठपुर, मशरख, तरैया, मढ़ौरा, गरखा
क्षेत्रों में गंगा नदी आ जाती है. उन क्षेत्रों में लोग बाढ़ की विभीषिका में डूब
जाते हैं...यह क्षेत्र हैं उन लोगों का जो किसान हैं, मजदूर हैं, जिन्होनें आपके
हाथों को मजबूत किया है...वह ढकना लेकर घूमें रिलीफ के लिए? जहां की ज़मीन गेहूं पैदा
करती है, वहां के लोग गेहूं के लिए भीख मांग रहे हैं, अन्न के लिए तरस रहे
हैं...आज हमारे लोग पंजाब जा रहे हैं, जहां उनकी किडनी निकाली जा रही है क्योंकि
हमारे घर में काम नहीं है, यहाँ
गेहूं नहीं बोया गया, धान
डूब गया. ईख समाप्त हो गई, चीनी
मिलें गायब हो गईं हैं..” उन्होनें
सरकार के सारे विभागों के बजट को काटने के लिए सरकार से कहा, केवल इंसानियत के बजट
को छोड़ कर.
कभी
सोचा किसी ने कि नेपाल में हाई डैम की मांग हर साल होती है, हर पार्टी के सदस्य करते
हैं तथा कोई भी ऐसी पार्टी नहीं बची है जिसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बिहार और
दिल्ली में शासन न किया हो और कभी-कभी तो दोनों स्थानों पर एक ही पार्टी का शासन
रहा है फिर भी काम कुछ नहीं होता है. अगर यही बिहार की बाढ़
समस्या का समाधान है तो यह कब हो पाएगा और अगर कोई दूसरा समाधान है तो उस पर कब
विचार होगा. अगर इसमें कोई बाधा है, तो
उसके बारे में आमजन को जानकारी होनी चाहिए, समय आ गया है कि बांध के
विकल्प पर चर्चा शुरू हो.
भाग : 3
2003
में बिहार विधान सभा में मंजीत सिंह का भाषण चल रहा था. उनका कहना था कि, “बिहार
राज्य में एक तरह से गोपालगंज की सरकार है (उस समय राबड़ी देवी बिहार की
मुख्यमंत्री थीं जो गोपालगंज से आती थीं). वहां गत तीन वर्षों से सारण तटबंध
लागतार टूट रहा है. जिन स्थानों पर बांध बनाया जाता है, ठीक उसी जगह फिर टूटता है.
अगर सरकार के लोग नाव से जाकर उन क्षेत्रों का दौरा करते हों तो वह वहां रहने
वालों की पीड़ा को महसूस कर सकते हैं. बिहार में कोई भी ऐसा तटबंध नहीं है, चाहे वह कोसी, बागमती, कमला-बलान या गंडक का ही
क्यों न हो., जो पिछले
वर्षों में न टूटा हो. यहां जो राजस्व विभाग की छरकियां हैं, उनकी मरम्मत पिछले 15
वर्षों से नहीं हुई है.. यही कारण है कि अंग्रेजों या ज़मींदारों के ज़माने की बनी
हुई छरकियां अब काम नहीं कर पा रही हैं और नदी के पानी का सारा दबाव तटबंधों पर
पड़ता है. वह टूटता है और सारा इलाका तबाह होता है.
सरकार कहती है की अपराधी तत्वों द्वारा तटबंध कटा जाता है तो यह बात समझ में नहीं आती. सरकार तो चूहों और खीखरों से भी तटबंध की रक्षा नहीं कर पाती है. सरकार ने कहा कि तटबंधों के ऊपर से अतिक्रमण हटाया जाएगा पर लोग अभी भी वहां पर हैं. पिछले साल सरकार ने एक अरब रूपया हर तरह की सड़कों की मरम्मत पर खर्च किया, नाव और दवा पर खर्च किया, मगर किसानों की हालत ओर गंभीर होती चली गयी है और भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है. साथ ही अपराध पनपने की घटनाएं तेज़ हुईं. बाढ़ तो बाढ़, सूखे वाले क्षेत्र में भी सरकार कुछ नहीं कर पाई. गोपालगंज में एक भी नलकूप संचालित नहीं होता है और जब पानी की आवश्यकता पड़ती है तब नहरों में पानी नहीं होता. इस समस्या को जब तक बिहार सरकार चुनौती के रूप में स्वीकार नहीं करती तब तक इस समस्या का हल नहीं हो सकता. ऐसी स्थिति में अगर बिहार नहीं बचता है तो इस विभाग को ही बंद कर देना चाहिए."