"सरकार के अफसर गाँव गाँव घूम कर जीप से रिलीफ बाँटते थे. इसमें अनाज और कुछ जरूरी सामान होता था. साथ में कम्बल भी था, जो हमें बड़ा अजीब लगता था कि इतनी गर्मी में कम्बल बांटने की क्या जरूरत है? यह मामला एक बार हम लोगों ने यहाँ हजारीबाग लौट कर प्रेस वार्ता में भी उठाया था. इसके बदले में हम पर मुकद्दमा दायर हुआ कि यह लोग रिलीफ वितरण में बाधा पहुँचा रहे हैं. बात पटना तक पहुंची. वहां इन्द्रजीत सिंह नाम के एक मंत्री हुआ करते थे और वह खुद हजारीबाग आये और डिप्टी- कमिश्नर चन्दा साहब को बुला कर कहा कि इन लोगों को परेशान मत कीजिये और इन्हें काम करने दीजिये, तब जाकर मुक़द्दमा भी वापस हुआ.
"एक बार हम लोगों ने यहाँ के एक व्यापारी से जीप मांग ली थी और उसके ट्रेलर में गेहूं आदि रख करके एक ब्लाक की तरफ जा रहे थे. कुछ कपडे और पाव रोटी हमने यहाँ के पादरी लोगों से भी बांटने के लिये ले ली थी. हमारी यह जीप रास्ते में खराब हो गयी. तब हम लोग पैदल ब्लाक ऑफिस गए और वहाँ के बी.डी.ओ. को सारा किस्सा बताया और मदद मांगी. उसने हमें जीप दी और हम लोग उस जगह गए जहां हमने अपनी जीप छोड़ दी थी. उसमें से कुछ सामान निकाल कर इस जीप में रखा और गाँवों की और चले और वहाँ जो भी वितरण कर सकते थे किया. इस बीच बी.डी.ओ. अपनी गाडी लेकर थोड़ी देर में आने के लिए कह कर चले गए. वो लौटे नहीं और हम लोग रात के अँधेरे में जंगल में उनका इंतज़ार करते रहे. फिर हार कर गाँव वालों से कहा कि कुछ लालटेन वगैरह का इंतज़ाम करिए ताकि हम लोग अपनी जीप तक जा सकें जहां हमारे कुछ प्रोफ़ेसर ट्रेलर के पास थे. जैसे-तैसे हम लोग वहां पहुंचे. बाद में हमारे प्रिंसिपल श्री सतीश चन्द्र बनवार को पता लगा तो वो आकर हम लोगों को ले गए. इस घटना की शिकायत हम लोगों ने चन्दा साहब से की तब मामला राज्य के मुख्य सचिव तक गया और बी.डी.ओ.को सस्पेंड किया गया.
"अकाल के समय जो पीड़ित लोग थे उनके साथ मिल कर उन्हें रिलीफ पहुंचाने में किन-किन तकलीफों का सामना करना पड़ता है, यह उसकी एक झलक भर है. एक गाँव मे जाने के बाद हमें पता लगा कि लाल कार्ड मिलने पर ही किसी को रिलीफ दी जाती थी. लाल कार्ड देने का काम जिम्मा जिसका था उसने अपना काम नहीं किया. ग्रामीणों का कहना था कि जब लाल कार्ड ही नहीं मिला है तो रिलीफ कहाँ से मिलेगी?"
समाप्त
प्रोफेसर महेश लाल दास - हज़ारीबाग