सहरसा से कई बार विधायक रहे श्री परमेश्वर कुंवर (अब स्वर्गीय) से कुछ वर्ष पहले हुई मेरी व्यक्तिगत बातचीत का अंश..
जनवरी 1955 में जब यहाँ राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी मार्च महीने में कोसी नदी के पूर्वी तटबंध के निर्माण का शिलान्यास करने के लिए सुपौल के पास बैरिया आये थे तब मैंने उन्हें काला झंडा दिखाया था. यह स्थान आजकल सुपौल जिले में है और उस समय सहरसा जिले का हिस्सा हुआ करता था. हम लोग लोहिया जी के अनुयायी थे और वह कहा करते थे कि जिस तरह की योजना बनायी जा रही हैं इससे कोसी क्षेत्र के निवासियों को नुकसान ही पहुंचेगा. ऐसा मान कर हमनें उन्हें काला झंडा दिखाया और जैसी कि उम्मीद थी पुलिस पकड़ कर ले गयी और हमको हाजत में बंद कर दिया. राजेन्द्र बाबू के साथ मैं एक बार जेल में रह चुका था और वह मुझे जानते थे.
शिलान्यास का कार्यक्रम समाप्त हो जाने के बाद उन्होनें अधिकारियों से कहा कि कोसी इलाके का एक लड़का परमेश्वर कुंवर हमारे साथ जेल में था वह कहीं दिखाई पड़े तो मिलने के लिए कहिये. अधिकारियों में पता तो सबको था कि मैं हाजत में बंद था. अब राष्ट्रपति मेरे बारे में पूछ रहे थे तो मेरी खोज शुरू हुई और मुझे पुलिस से छुड़ा कर माला आदि पहना कर राजेन्द्र बाबू के पास लाया गया. उन्होनें मुझसे पूछा कि परमेश्वर, तुम मिलने के लिए क्यों नहीं आये? मैंने उन्हें बताया कि जब आपका काफिला गुज़र रहा था तब मैंने आपको काला झंडा दिखाया था तो पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई और हाजत में बंद कर दिया. अभी यह लोग मुझे वहाँ से निकाल कर आप के पास लेकर आये हैं.
राजेन्द्र बाबू की नजर भीड़ में मेरे ऊपर और काले झंडे पर नहीं पडी होगी. उन्होंने मुझसे काला झंडा दिखाने का कारण पूछा और मैंने अपनी बात दुहरा दी. मैंने उन्हें बता दिया कि इस योजना से इस इलाके को कोई फायदा नहीं होने वाला है, उलटे परेशानियां ही बढेंगी. मुझे मालूम था कि उन्होंने आज अपने भाषण में कोसी परियोजना कि प्रशंसा ही की होगी क्योंकि मैं तो उनका भाषण हाजत में बंद होने के कारण सुन ही नहीं पाया था. लेकिन मुझे इतना तो मालुम था कि पटना की 1937 वाली बहुचर्चित सेमिनार में उन्होंने जम कर तटबंधों का विरोध किया था. 1954 के अक्टूबर महीने में जब वह उत्तर बिहार के दौरे पर कोसी योजना के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए आये थे तब उन्होंने कोसी नदी पर प्रस्तावित तटबंधों का समर्थन यह कह कर किया था कि यह राष्ट्र के निर्माण का यज्ञ है और इसमें सभी को आहुति डालनी चाहिए. मुझे मालुम नहीं था कि राष्ट्रपति बन जाने के बाद उनके विचारों में इतना परिवर्तन कैसे आ गया.
उन्होनें मुझे समझाया कि देखो! राष्ट्रपति राजनीति से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति होता है और वह देश के संविधान का संरक्षक होता है. वह देश के सभी व्यक्तियों का प्रतिनिधि होता है. राजनीति से उसका और किसी भी राज्यपाल का कोई वास्ता नहीं होता. इसलिए तुम्हारे ऊपर कभी कितना भी दबाव क्यों न हो राष्ट्रपति और राज्यपाल को काला झंडा मत दिखाना. यह काम अपने विक्षोभ को प्रदर्शित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा मंत्रियों और शासन-प्रशासन के अधिकारियों के साथ ही किया जा सकता है. इस बात का आगे से ख्याल रखना.
आज कोसी तटबंधों के बीच रह रहे लोगों की जो दुर्गति हो रही है और बाहर वाले जो जल-जमाव भोग रहे हैं उसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है. पर हां मुझे राष्ट्रपति ने खोज कर बुलवाया इससे इस घटना के बाद समाज में मेरा कद जरूर बढ़ गया था.
स्वर्गीय श्री परमेश्वर कुँवर