इस साल मई महीनें में ही बिहार में कोसी समेत कई नदियों में बाढ़ आ गयी थी. उसके बाद जुलाई के अंत में सूखा पडा और सितम्बर में फिर बाढ़ आयी. जिसका प्रभाव बरसात के मौसम के अंत (उस साल नवम्बर) तक बना रहा. सरकार को सितम्बर महीनें में विधानसभा में राज्य में बाढ़ और सूखे पर बयान देना पडा जिस पर एक लम्बी बहस हुई.
इस बहस में बेगूसराय के चंद्रशेखर सिंह का एक कालजयी बयान आया जिसके कुछ अंश हम यहाँ उद्धृत कर रहे हैं. हम इसे कालजयी इस लिए मानते हैं क्योंकि कि ऐसे बयान आज भी दिए जाते हैं.
सरकार के बयान पर उनका पहला वार सरकार की रिपोर्ट पर ही पडा जिसमें उन्होंने कहा कि,
"जिन लोगों ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है उन्होनें हवाई जहाज़ द्वारा बाढ़ और सूखे का निरीक्षण किया था तो लाजिम है कि ऐसे हवाई सर्वेक्षण का नतीजा हवाई रिपोर्ट ही हो सकती है, दूसरा नहीं."
इस रिपोर्ट को उन्होनें निराधार बताते हुए कहा कि,
"यदि यह रिपोर्ट वास्तविक होती तो इसमें एक नहीं अनेकों गाँवों के संकट का ज़िक्र होता. क्या इस रिपोर्ट बनाने वालों को इतनी भी जानकारी नहीं है कि बेगूसराय सब-डिवीज़न इस कटाव के चलते ज़बरदस्त तकलीफदेह इलाका हो गया है. मधुरापुर, चमथा, साम्हों, सिंहमा के कटाव का तो मुझे अनुभव है... एक दिन सिंहमा गाँव के अन्दर, जहां की जनसँख्या 5 हज़ार है और जहां 70 फीट से भी ज्यादा कटाव हो गया है और सैकड़ों घर बरबाद हो गए हैं उसका ज़िक्र तक नहीं है....बेगूसराय क्षेत्र में और खासकर उत्तरी क्षेत्र में बांधों का अम्बार लग गया है और उन बांधों के फलस्वरूप ऐसी समस्या पैदा हो गयी है जिन समस्याओं से बाढ़ पीड़ितों का सवाल खडा हो जाता है.”
उनका आगे कहना था कि न जाने कितनी बार स्थानीय अधिकारियो और मंत्रियों के सामने बैंती, बलान और गंडक (बूढ़ी) नदियों के दोनों बांधों के फंसे लोगों का प्रश्न उठाया गया कि उनको सुरक्षित स्थान पर घर बना कर बसने का की व्यवस्था की जाय पर ऐसा नहीं हुआ. (उन दिनों इन नदियों पर तटबंध बनाए जा रहे थे.)
“जो लोग उन बांधों के बीच पड़े थे उन लोगों ने दरखास्त दी कि गंडक, बैंती, बलान नदियों में बाढ़ आ गयी है और हम लोगों की जान चली जायेगी. उन लोगों ने कलक्टर से लेकर हर अधिकारी के पास दरवाज़ा खटखटाया हुकूमत के जो सबसे बड़े मंत्री हो सकते हैं, जिनके ऊपर रिहैबिलिटेशन की जवाबदेही हो सकती है उनका दरवाज़ा खटखटाया. पर उससे क्या हुआ?"
“जब पहले बाँध नहीं था तो गंडक नदी की बाढ़ का पानी फैल सकता था और बचने की आशा थी लेकिन जब दो एम्बैंकमेंट के बीच से पानी जाएगा तब पानी का लेवल ऊंचा हो जाएगा और एम्बैंकमेंट के अन्दर जो इतने लोग हैं उनके जान-माल पर खतरा निश्चित रूप से होगा. इसलिए उनको बचाने का काम फ़ौरन होना चाहिए. कलक्टर साहब ने क्या जवाब दिया उसको मैं आपको बतलाता हूँ. उन्होनें फरमाया कि (लोगों ) को बचाने में जो खर्च होगा वह रेवेन्यू डिपार्टमेंट देगा या इरिगेशन डिपार्टमेंट देगा इसका फैसला अभी नहीं हो पाया है. आप लोग भी ज़रा कोशिश कीजिये. दो विभागों के बीच कि कौन इसका खर्च देगा अगर युद्ध चले और इसी तरह की अकर्मण्य हुकूमत की दो चक्कियों के बीच जनता तबाह हो जाय तो मैं कहता हूँ कि इसकी जवाबदेही हुकूमत को ही लेनी होगी. इसका फैसला हुकूमत ने क्यों नहीं किया मैं इसका जवाब माननीय मंत्री से चाहता हूँ.”
नदियों के तटबंधों के बीच फंसे लोगों के पुनर्वास पर ज़मीन के अधिग्रहण पर भी उन्होनें टिप्पणी की और कहा कि अधिकारियों का कहना है कि अगर सब कुछ ठीक रहे तो ज़मीन के अधिग्रहण में 6 से 8 महीने का समय लग जाता है. उन्होनें सरकार से जानना चाहा कि 6 से 8 महीने तक औरतों, बच्चो के साथ कोई परिवार खुले आसमान के नीचे जाड़ा, गर्मी और बरसात में कैसे रहेगा इसके बारे में किसी को परवाह है या नहीं? लैंड अक्वीज़िशन के सिलसिले में जनता दौड़ते-दौड़ते परेशान रहती है और वर्षों लग जाते हैं. इस पर विधानसभा अध्यक्ष का कहना था कि अधिग्रहण के लिए सरकार ने क़ानून पास कर दिया है.
सरकार द्वारा रिलीफ में दिए जाने वाले सस्ते के बारे में उनका कहना था कि, "सरकारी अनाज की कीमत गोदाम पर 16 रुपये प्रति मन पड़ती है. इसे लाने-ले जाने की लागत जोड़ने पर इसकी कीमत 18 रुपये प्रति मन हो जाती है. तब यह सस्ता कहाँ से हुआ?" उनका सुझाव था कि राहत में दिए जाने वाले इस अनाज की कीमत 13 रुपये प्रति मन से अधिक नहीं होनी चाहिए. उन्होनें बाढ़ के समय स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार करने पर बल दिया.
सुखाड़ के बारे में चन्द्र शेखर सिंह का कहना था कि यह समस्या मुख्यतः दक्षिण बिहार की है. लेकिन हमारे क्षेत्रों के बारे में यह कहना भूल होगी कि यहाँ सूखा नहीं है, दक्षिण बेगूसराय जहां तेघरा थाना पड़ता है वहाँ नलकूप की व्यवस्था की गयी. दो साल हुए बने हुए. मैं हुकूमत से पूछना चाहता हूँ कि जब (वहां) मकई की खड़ी फसल सूख रही थी तब क्यों नहीं किसानों को पानी दिया गया, कुआँ बना हुआ है, बिजली की लाइन लगी हुई है, नालियां तैयार हैं तो क्यों नहीं पानी किसानों को दिया गया?. ऐसा क्यों हुआ है?"
इसके बारे में उन्होनें खुद ही बताया, "...जो नालियां बनाई गयी हैं वह पानी के धक्के को बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के फलस्वरूप जितने पैसे उन नालियों को बनाने के लिए दिए गए थे उनका सीमेंट ब्लैक मार्किट में बिका. साधारण बालू से उन नालियों को तय्यार किया गया था. गाँव के लोग विरोध करते रहे कि यह नाली पानी का धक्का बरदाश्त नहीं कर सकेगी. और अध्यक्ष महोदय, आपको बताऊँ कि उन अफसरों ने क्या जेवाब दिया. उनका कहना था कि सरकारी काम में दखल न दो और अगर ऐसा करोगे तो (तुम पर)107 का मुकदमा चलाया जाएगा...सरकारी काम में सीमेंट की चोरी हुई और उससे जो नाला बंधा वह टूट गया और उससे किसानों की फसल बरबाद हुई. इसलिए हुकूमत को मैं कहना चाहता हूँ कि किसानों को पानी भी नहीं मिल सका और जो लोग पानी नहीं चाहते थे उनको भी नाला टूट जाने की वजह से पानी ने पहुँच कर नुकसान कर डाला....मैं कहना चाहता हूँ कि इस नलकूप से लोगों को फायदे की जगह नुकसान न होने पाए.”