श्री अवध नंदन पाण्डेय, ग्राम निर्माण मंडल, सोखोदेवारा, जिला -गया से 1972 के सूखे के बारे में हुई बातचीत का अंश. 72 वर्षीय पाण्डेय जी अभी ग्राम किसगो-बाकरगंज, पोस्ट किसगो वाया राज धनवार, जिला गिरिडीह- झारखंड में रहते हैं.
1970 से ही नवादा में सूखे की स्थिति बिगड़ने लगी थी और 1972 में तो हालत बहुत ज़्यादा खराब हो गई तथा अकाल जैसे हालात बन गए. मैं उन दिनों ग्राम निर्माण मंडल, सोखोदेवरा, प्रखंड कौआकोल, जिला नवादा में काम करता था. इस संस्था की शुरुआत विनोबा जी के भूदान कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के बाद जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने की थी ताकि दान में मिली ज़मीन के वितरण करने के कार्यक्रम में मदद मिल सके. इस संस्था का परिसर भी भूदान की ज़मीन पर ही स्थित है. इसके संस्थापक जेपी ही थे. ग्राम निर्माण मंडल ने 1966-67 के अकाल में बिहार और इस क्षेत्र में राहत का काफी काम किया हुआ था. यह स्वाभाविक था कि ग्राम निर्माण मंडल 1970-73 की प्राकृतिक विपदा के समय भी सक्रिय रहता. उन दिनों ब्रिटेन की एक दाता संस्था ऑक्सफैम का एक कार्यक्रम ऑक्सफैम ग्रामदान एक्शन प्रोग्राम (OGAP) के नाम से शुरू हुआ था और ग्राम निर्माण मंडल उसकी एक सहभागी संस्था के तौर पर क्षेत्र में काम कर रहा था. इसी कार्यक्रम के अधीन नवादा और उसके आसपास के इलाकों में मंडल ने राहत कार्यक्रम चलाया. हमारी इस संस्था को जेपी का वरदहस्त प्राप्त था इसलिए हमें काम करने में काफी सहूलियत भी हुई.
सोचा यह गया कि हमेशा सूखे की मार झेलने वाले इस क्षेत्र में अगर पानी की थोड़ी बहुत सुविधा उपलब्ध करवा दी जाये तो किसानों की खेती में निश्चित रूप से सुधार होगा. सूखे का मुकाबला किसान स्वयं कर सकें और उन्हें खुद की छोटी-मोटी सुविधा मिल जाए, ऐसा सोच कर ही इस कार्यक्रम की नींव पड़ी. इसलिए प्राथमिकता के स्तर पर मंडल ने मुख्यतः कच्चे कुएं खुदवाने का कार्यक्रम हाथ में लिया. उन दिनों भूगर्भ जल की उतनी बुरी स्थिति नहीं थी जितनी आज हो गई है. दस-पंद्रह हाथ गहरी मिटटी खोदने पर जमीन में पानी निकल आता था. कच्चे कुएं काफी सफल हुए और इन कुओं में जहां ज्यादा पानी निकल आया उन्हें पक्का करने का काम भी हम लोगों ने किया. ऑक्सफैम की ओर से किसानों के लिये डीज़ल का इंतज़ाम भी कर दिया गया था. इस कार्यक्रम को हम लोगों ने नवादा सब-डिविज़न के कौआकोल, पकरी बरावां, सदर, गोविंदपुर, रजौली आदि प्रखंडों में चलाया था. कुछ काम नवादा से सटे मुंगेर के खैरा प्रखंड के झिलार और रोपाबेल जैसे गाँवों में भी हम लोगों ने किया और इसी का विस्तार हजारीबाग जिले के तिसरी, गावां और देवरी प्रखंड में भी हुआ. जेपी अक्सर घूम-घूम कर इस काम का मुआयना करते रहते थे.
सरकार भी इस राहत के काम में मदद करती थी, खासकर पीने के पानी के लिए जो हैण्डपम्प लगाए गए उसमें UNICEF और UNO के वालेंटियर आये थे जिन्होनें स्थानीय टेक्नीशियन को कितनी जल्दी बोरिंग करके हैंडपंप को चालू किया जा सकता है, वह सिखाया. उनकी मशीनें ट्रक पर लगी रहती थीं और दूसरे दिन पानी मिलने लगता था. यहाँ के लोग भी काफी रुचि लेकर यह काम सीखते थे. बाद में हम लोगों ने सोखोदेवरा आश्रम में एक वर्कशॉप ही खोल दी थी जिसमें ऐसे लोगों को ट्रेनिंग दी जा सके. लगभग 50-60 लोगों को इस तरह से आश्रम ने तैयार कर दिया था कि वह अपना काम कर सकें.
सरकार का जो काम चलता था उसमें सरकार की बड़ी और लम्बी अवधि तक चलने वाली योजनाओं में ही मजदूरों को काम मिल पाता था. हम लोगों को सहूलियत थी कि हम लोग गाँवों में जाकर वहाँ के लोगों के साथ मिल-बैठ कर कार्यक्रम तय कर सकते थे और काम की प्राथमिकताएं गाँव वाले ही तय करते थे वह चाहे रास्ता बनाना हो, आहर-पइन का निर्माण या मरम्मत हो या कुआं खोदना हो, यह गाँव वाले ही तय करते थे. मजदूरी में उनको चार किलो अनाज, कुछ खाद्य तेल, बिस्कुट, दूध का पाउडर प्रतिदिन के हसाब से दिया जाता था. यह सहायता मंडल को कैथोलिक रिलीफ सोसाइटी की तरफ से मिलती थी.
मजदूरी का भुगतान करने के लिए कलकत्ता से जो अनाज नवादा आता था वह मालगाड़ी से आता था. इसे नवादा स्टेशन में रेल से उतार कर 45 किलोमीटर दूर कौआकोल तक लाने में बड़ी परेशानी होती थी. सूखे की वजह से भुखमरी की हालत यह थी कि मालगाड़ी से ट्रक में अनाज रखने में बहुत सा अनाज ज़मीन पर गिरता था जिसे ‘लूटने’ के लिए स्टेशन पर बड़ी भीड़ इकठ्ठा होती थी. इन लोगों में आपस में मार-पीट तक की नौबत आ जाती थी. इससे रेलवे पुलिस वाले उन लोगों पर डंडे भी बरसाते थे. रेलवे पुलिस की नाराज़गी हम लोगों से भी थी कि उन्हें हमारी वजह से मशक्कत उठानी पड़ती थी और एवज में उन्हें हमसे मिलता नहीं था. इसका बदला वो अनाज इकठ्ठा करके घर ले जाने वालों से लेते थे और उन पर डंडे बरसाते थे. एक बार हमारे कार्यकर्ताओं से भी उन्होनें ऐसा ही किया. यह खबर जेपी तक पहुंची तो उन्होनें तत्कालीन रेलवे मंत्री गुलजारी लाल नंदा से शिकायत की. वह पत्र जो जेपी ने नंदा को लिखा था वह मैंने ही टाइप किया था और उसका पूरा मजमून मुझे अभी तक याद है. यह 1971 की बात है. तब नवादा रेलवे स्टेशन पर बिहार की पुलिस भी व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियुक्त की गयी. 1972 का साल बिहार में सूखे के लिहाज से बड़ा बुरा साल था. यह कार्यक्रम 1972-73 तक चला. 1974 में तो बिहार आन्दोलन ही शुरू हो गया तो काम अपने आप बंद हो गया.
श्री अवध नन्दन पाण्डेय