कुछ दिन पहले मैंने मुंगेर झील के टूटने से लगी सराय में हुई तबाही का जिक्र किया था उसके बारे में कुछ जानकारी यहां मिली है, उसे आप सबसे शेयर कर रहा हूं। पूरी कहानी जानने और सुनाने में समय लगेगा।
सन 1934 की भूकंप की याद तो बहुतों को होगी और उन लोगों को जिन्होंने मुंगेर में आकर सहायता काम किया था संभवत: विनाश लीला (उन्हें) भूकंप से अधिक भयंकर दिखाई पड़ी हो।
अंतर इतना ही था कि 1934 के भूकंप ने मुंगेर की बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं को धराशायी कर के अनेक व्यक्तियों की जान ले ली हो और 1961 के तूफान और वर्षा ने सैकड़ों आदमियों को पानी में बहा कर जान ले ली। भूकंप में शहरी क्षेत्र के अधिक आदमी मरे और इस वर्षा में देहाती क्षेत्र के अधिक लोगों की मृत्यु हुई। ऐसी खबर है कि कई घरों में एक भी आदमी नहीं बचा। कई गांवों का अभी भी पता नहीं है। इस जलप्लावन में कौन कहां बह कर मर गया, किसी को कुछ पता नहीं है । आखिर पता लगे भी तो कैसे?
सदर सब-डिविजनल अफसर ने जो रिपोर्ट दी थी कि बरबादी का अंदाजा लगाना असंभव है। उस रिपोर्ट के अनुसार 10 हजार एकड़ भूमि में पानी ही पानी नजर आता था। भीतर के किसी गांव में पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रह गया था। बस्ती कहीं नजर नहीं आ रही थी कि वहां जाकर कोई यथार्थ स्थिति का पता लगा सके। किनारे से देख कर जो जैसा समझ पाता है कहता है। समाचार पत्रों में कई तरह की खबरें प्रकाशित होती रही है किंतु असलियत का पूरा पता शायद अभी किसी को नहीं है।
एस.डी.ओ. की प्रारम्भिक रिपोर्ट के अनुसार लखीसराय और सूर्यगढ़ा थाने सबसे अधिक क्षतिग्रस्त हुए थे और उनमें भी लखीसराय के नदियामा और महिसौरा गांव तो एकदम ही नष्ट हो गये। नदियामा ढाई सौ घरों की बस्ती है जहां केवल चार घर बचे रहे और बाकी सभी घर धराशायी हो गए। महिसौरा 350 घरों की बस्ती थी वहां केवल 29 घर बचे रहे। बाकी सभी घर पानी की धारा में नष्ट हो गये।