पानी की कमी पर हम सब युद्ध की बात करते हैं, मगर पानी ज्यादा हो तो क्या करता होगा, कभी सोचा है?
1 मई से आगे की पोस्ट, अन्तिम भाग -3
रेल लाइन के उत्तर के कोठिया गाँव के राम खेलावन यादव (85 वर्ष) बताते हैं कि, बरसात के पानी की निकासी को लेकर हुए इस झगड़े में हमारे गाँव के तीन आदमी मिश्री लाल यादव, स्वरुप यादव और रामजी यादव मारे गए थे. दो बाप-बेटे शोआब और रज्जाक भी इसी में मारे गए थे.
खैरा वालों ने ढोलकिया पुल का मुँह बंद कर दिया था. इधर के लोगों का तर्क था कि जब पुल है तो पानी की निकासी के लिए ही बना है तब पानी का रास्ता कैसे रोका जा सकता है? इतना ही झगड़ा था. झगड़ा जब शुरू हुआ तब रोसड़ा स्टेशन पर गाड़ी रुकी हुई थी. लोग यहाँ लाइन पर थे, गाड़ी सबको रौंदती हुई चली गयी. साधारण समय रहता तो लोग गाड़ी को देखते भी और उसकी आवाज़ भी सुनते मगर झगड़े में में किसी को कुछ दिखाई या सुनाई पड़ता है क्या? थोड़ा दूर जाकर गाड़ी रुकी मगर तब तक जो होना था वह हो चुका था. मेरा अपना चचेरा भाई जुगेश्वर भी घायल हुआ था और कुछ साल बाद वह भी मर गया. कोई किसी को मारना तो चाहता ही नहीं था मगर जिसकी उम्र पूरी हो गयी थी वह चला गया.
“बाद में सब सुलह-सफाई हो गयी. कोई ज़मीन की लड़ाई का मामला तो था नहीं, झगड़ा तो पानी की निकासी का था। उसके लिए कब तक झगड़ते?”
यह बड़ी अजीब बात है कि इतनी भीड़ में न तो किसी को ट्रेन दिखाई पड़ी और न उसकी आवाज़ ही सुनाई पड़ी जबकि उन दिनों कोयले के ईधन से चलने और शोर मचाने वाली रेलगाड़ियां चलती थी जिनकी आवाज़ दूर से सुनाई पड़ती थी. रेल के ड्राईवर ने भी भीड़ को नहीं देखा और देखा भी तो सीटी नहीं बजायी और बजायी भी तो इतने लोगों में से किसी ने नहीं सुनी या देखी. इन सब सवालों का जवाब नहीं है लेकिन अन्त भला सो भला.
अच्छा है कि लोग इस घटना को भूल चुके हैं. रेलवे वालों को भी शायद समझ आया कि पानी की उचित निकासी न होने का क्या अंजाम हो सकता है. यह एक अलग बात है कि ऐसा समझने में 1987 की बाढ़ का इंतज़ार करना पड़ा और ढोलकिया पुल को कायदे के पुल में बदलने के लिए उन्हें 32 साल का समय लग गया.
समाप्त
श्री राम खेलावन यादव