राम कल्याण महतो, ग्राम खैरा दरगाह, पोस्ट-उदयपुर, प्रखंड रोसड़ा, जिला समस्तीपुर इस घटना के बारे में कहते हुए बताते हैं कि, उन दिनों हमारा जिला दरभंगा हुआ करता था और समस्तीपुर सब-डिविज़न था. हमारा गाँव इस रेल लाइन के दक्षिण में रोसड़ा रेलवे स्टेशन से कोई दो-ढाई मील दूर होगा. 1955 के अगस्त महीनें में यहाँ खूब बारिश हुई थी और गाँव के सामने रेल लाइन में एक दो मुँह का बम्बा था जो ईंट से बना हुआ था और ब्रिटिश ज़माने का रहा होगा. इसे हम लोग ढोलकिया पुल कह्ते थे क्योंकि यह ढोलक की तरह ही था जिसके दोनों किनारे गोल होते हैं. उत्तर का बहुत सा पानी इसी बम्बे से हमारी तरफ आता हुआ निकल जाया करता था. इससे उत्तर से आने वाले पानी की निकासी होती थी. अभी इसका स्वरुप रेलवे वालों ने बदल दिया है और यह आजकल के पुलों जैसा ही है. ऐसा परिवर्तन 1987 की बाढ़ के बाद ही हो पाया.
1955 की घटना में सात लोगों के मारे जाने के बाद थाना-पुलिस हुआ. मुकदमा चला. उन दिनों अदालत दरभंगा में बैठती थी. मुख्य मुद्दालह हमारे गाँव के परमेश्वर महतो बने थे जो जो बहुत दबंग और रसूख वाले आदमी थे और सोशलिस्ट पार्टी के नेता भी थे. उनका कहना था कि जितना पैसा लगता है लगाओ मगर हम गाँव को इस तरह डूबने नहीं देंगें. जो मारने आता है उसको तुम भी मारो. पाँच अन्य लोग भी हमारे गाँव से नामित हुए थे. चार-पांच साल तक मुकदमा चला और जितने भी लोगों को पुलिस ने पकड़ा था वह सब अदालत से बरी हो गए. समस्तीपुर जेल में बंद परमेश्वर महतो भी छूट गए. कहते हैं कि जज ने जो फैसला दिया उसमे उन्होनें कहा था कि क़ानून के मुताबिक़ मुझे तुमको बरी करना पड़ रहा है पर भगवान तुम को कभी माफ़ नहीं करेंगें. जेल से वह छूट कर तो जरूर आये मगर रोसड़ा स्टेशन से तांगे में बैठ कर जब वह घर आ रहे थे तो थोड़ी ही दूर पहले उनके पेट में भयानक दर्द हुआ और और वह तांगे में ही मर गए. घर नहीं पहुँच पाए. उनकी उस समय चलती थी और इतना बवाल होने पर भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
उन दिनों घर तो सब मिट्टी की के ही बने हुए थे. पानी गाँव में घुस जाता तो घर गिरते. जब हम लोगों ने ढोलकिया पुल बाँध दिया तो पानी उस तरफ के घरों में घुसना शुरू हुआ. घर उनके भी मिट्टी के ही बने हुए थे तो वह लोग लाठी-डंडा लेकर हमारे यहाँ आ गए और बम्मा खोल देने के लिए कहा तो इधर के लोगों ने मना कर दिया. बस, हो गया शुरू. चंदू महतो अभी बम्बे के पास ही खड़ा था तो वह उनके हत्थे चढ़ गया. उस पर लाठी पड़ी और वह मर गया, तब इधर से भी पलटवार शुरू हुआ और छ: लोग उत्तर वाले मारे गये.
मामला जब अदालत में गया तो बचाव पक्ष के हमारे वकील जलील खाँ ने दलील दी कि दोनों तरफ के लोग रेल लाइन पर बहस में लगे थे कि ट्रेन आ गयी और और इतने लोग कट कर मर गए और और घायल हो गए. कोई झगड़ा झंझट नहीं हुआ था और बात केवल कहा-सुनी तक ही सीमित थी. तब तक रेल गाड़ी आ गयी और बात-चीत में लोगों को पता ही नहीं लगा कि गाड़ी आ गयी है और वह ट्रेन की चपेट में आ गए. यह सात लोग रेलगाड़ी से कट कर मरे थे और झगड़ा-झंझट की कोई बात ही नहीं हुई थी. उनका कहना था कि सात लोग मारे गए, तेरह घायल हुए और मुद्दालह सिर्फ छः लोग हैं. यह कैसे हो सकता है कि छः लोग बीस लोगों पर हावी हो जाएँ? यह सब के सब लोग रेलगाड़ी की चपेट में आकर ही मरे हैं. इन छः में से पांच को तो लोअर कोर्ट ने ही छोड़ दिया था और एक होस्टाइल हो गया था.
इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो गाँवों के बीच आपस में तनाव रहा, एक दूसरे से डर भी लगता था मगर लगभग एक साल का समय लगा होगा जब सब कुछ पहले की तरह से सामान्य हो गया. कब तक लोग दुश्मनी ढोते?
क्रमशः -3
श्री राम कल्याण महतो