बिहार विधान सभा में कर्पूरी ठाकुर का अविस्मरणीय वक्तव्य
1965 के फरवरी महीने में बिहार विधान सभा में राज्यपाल अनंत शयनम अय्यंगार का भाषण चल रहा था, जिसमें उन्होंने कोसी योजना के पूरे होने और गंडक परियोजना का काम तेजी से चलने के साथ-साथ अन्य बहुत सी योजनाओं पर काम चलने की बातें कहीं और खाद्यान्न की दुरुस्त स्थिति का संकेत दिया।
राज्यपाल के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की बहस में कर्पूरी ठाकुर का बड़ा ही सटीक बयान आया। उनका कहना था कि, ...यदि मैं पूछूं कि क्या इस सदन में कोई ऐसे माननीय सदस्य हैं जो यह कहने का साहस करें कि महंगाई में वृद्धि नहीं हुई है और इस महंगाई के कारण सर्वसाधारण की तकलीफों में और मुसीबतों में इजाफा नहीं हुआ है। यदि मैं यह पूछूं कि क्या इस सदन का कोई भी माननीय सदस्य आज छाती पर हाथ रख कर यह कह सकता हो कि भूख की समस्या जटिल नहीं हुई है, सर्वसाधारण की भूख में वृद्धि नहीं हुई है। यदि मैं यह पूछूं कि क्या कोई इतना दुस्साहस करने को तैयार हो सकता है कि हमारे राज्य में गरीबी नहीं बढ़ रही है, भ्रष्टाचार में वृद्धि नहीं हुई है...
"पिछले कई वर्षों से इस सरकार के प्रवक्ताओं ने और केंद्रीय सरकार के प्रवक्ताओं ने यह घोषणा नहीं की थी कि 15 अक्टूबर के बाद मूल्यों में वृद्धि नहीं हो पायेगी, 15 अक्टूबर के बाद चीजों का दाम गिरने लगेगा, लेकिन 15 अक्टूबर से लेकर 15 जनवरी की अवधि तक वस्तुओं के मूल्यों में जो वृद्धि हुई उसको यदि नापा जाए, देखा जाए तो कहना पड़ेगा कि आज हमारे देश में और प्रदेश में जो मंहगाई फैली हुई है...वह किसी कवि की कल्पना जितनी दूर जा सकती है उस कल्पना से भी दूर चली गई है।"
इस मंहगाई का दायित्व हुकूमत पर डालते हूए उनका कहना था कि,... "आपने लेवी के द्वारा जो अनाज जमा करने को सोचा था और आपने जिसका फैसला किया उसका क्या अंजाम हुआ? आपने लेवी के द्वारा जितना अनाज जमा करने को सोचा था क्या उसका दो तिहाई भी जमा हो सका? आपने जो लेवी लागू करने का निर्णय लिया उसका परिणाम यह हुआ कि अगहनी फसल का दाम दुगना तिगुना बढ़ गया।"
उनका कहना था कि अगर धान के साथ-साथ दूसरे अनाजों का भी मूल्य नियंत्रित किया गया होता तो धान की यह स्थिति ना होती। बिना सोचे समझे लेवी को लागू करने लागू करने का अंजाम सब लोग भुगत रहे थे। उन्होंने राजकोष से फिजूलखर्ची के उदाहरण देते हुए कहा कि, आप जो गेस्ट हाउस बना रहे हैं, बीरपुर में जो गेस्ट हाउस बना है उसे देखने का मौका हमको मिला है, इतना ज्यादा खर्च करने की उस पर क्या आवश्यकता थी? वहां जो कुर्सियां, साज-सामान, टेबुल आदि जो रखे हैं उनको न खरीद कर हल्के दाम के भी कुर्सी टेबल रखे जा सकते थे। सोन योजना में हमने देखा है कि किस तरह के महंगे दाम के साज-सामान खरीदे गए हैं। कोईलवर में जो गेस्ट हाउस बनने वाला है उसकी क्या आवश्यकता है? आपको लोक -निर्माण विभाग का अनुभव होगा कि एक मील सड़क बनाने के लिए जहां एक लाख खर्च किए जाते हैं वहां मेरे कई साथी इंजीनियरों का कहना है कि पैंतीस हजार रुपया खर्च करके इस तरह की सड़क बनाई जा सकती है और देश का पैंसठ हजार रुपया बचाया जा सकता है। वह पैंसठ हजार कुछ ठेकेदारों को, कुछ इंजीनियरों को और कुछ अन्य लोगों के हाथ में बंट जाता है और इससे देश का बड़ा नुकसान होता है।"
"अगर जो सामान समय पर पहुंचते, जो सामान पचास क्विंटल पहुंचना चाहिए वह बीस क्विंटल पहुंच पाता है जो बीस दिन में पहुंचना चाहिए वह पचास दिन में पहुंचता है। इसका नतीजा होता है कि वितरण में धांधली होती है। उसे अगर समाप्त कर दिया जाए तो हम उम्मीद करते हैं कि महंगाई भी समाप्त हो जाएगी।"