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कोसी नदी अपडेट - आज़ादी के बाद बिहार में बाढ़-सुखाड़ के कुछ मूल कारणों की जानकारी

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  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • October-26-2019
आज़ादी के बाद बिहार में बाढ़-सुखाड़ का मूल तलाश करने के क्रम में मेरी मुलाक़ात 70 वर्षीय सुबोध शर्मा, ग्राम सिमरिया-शर्मा टोला, प्रखंड बरौनी, जिला बेगूसराय से हुई. उन्होनें मुझे 1971 की बाढ़ के बारे मैं बताया. शर्मा जी कहते हैं,

“अच्छी फसल और दूध-दही की सम्पन्नता के कारण हमारे इलाके के मर्द दस नंबर का जूता पहनते हैं. उसी से आपको अंदाजा हो जाना चाहिए कि यहाँ के लोग कितने तंदुरुस्त होते हैं. यह सब बाढ़ का प्रताप है.”

मुझे 1962 और उसके बाद जो कुछ भी हमारे क्षेत्र में हुआ है सब याद है. हथिया नक्षत्र दुर्गा पूजा के आसपास आती है. 1971 में हथिया नक्षत्र में बहुत जोर बारिश हुई थी. इतना पानी हुआ कि हम लोग दो दिनों तक अपने बथान से घर नहीं जा पाए. पानी इतना जोर बरसा कि बगल में गड़हरा, बेहट आदि गाँव पड़ते हैं और वह भी पानी में फँस गए थे. पानी इतना हुआ कि अपने गाँव से थोड़ी दूर गड़हरा, बेहट और बारो आदि में जो दुर्गापूजा होती थी उसे भी देखने के लिए भी हम लोग नहीं जा सके. बरौनी जंक्शन से मेरा गाँव सीधे दक्षिण में पड़ता है. गंगा की जो वर्तमान बहाव की दिशा है वह तब भी थी. गड़हरा यार्ड तो बहुत बड़ा था मगर स्टेशन बहुत छोटा सा हाल्ट भर था. गंगा उत्तर पश्चिम दिशा से दक्षिण पूर्व की दिशा में हमारे गाँव के पास से बहती थी. यहाँ कटिहार, दरभंगा, बछवारा, निर्मली अदि जगहों के लिए छोटी लाइन की गाड़ियाँ मिलती थीं. बरौनी ईस्टर्न रेलवे का स्टेशन था और यहाँ एक ही बड़ी लाइन थी जिसका संपर्क कलकत्ता से था. बरौनी की महत्ता यहाँ इसलिए थी कि यहाँ से छोटी लाइन से बड़ी लाइन और बड़ी लाइन से छोटी लाइन के यात्रियों और सामान की अदला-बदली होती थी. बरौनी से गाडी खुलती थी तो पहले तेघरा और उसके बाद बछवारा पड़ता था. बछ्वारा में दो लाइनें बंट जाती हैं. एक लाइन समस्तीपुर चली जाती है तो दूसरी बाजितपुर हाजीपुर होते हुए छपरा तक चली जाती है.

हमारे गांव के बगल से ही बाया नदी गंगा प्रसाद और अमरपुर गाँवों से होती हुई गंगा में मिल जाया करती थी. मधुरापुर काफी पश्चिम में था. देश आज़ाद होने के बाद यहाँ गंगा पर रेल- सह- सड़क राजेन्द्र पुल बना. यह पुल बरौनी को मोकामा और हाथीदह स्टेशन से जोड़ता है. जब यह पुल बना तब यह ख्याल किया गया कि गंगा कभी भी इस पुल पर हमला कर सकती है इसलिये काफी दूरी से गंगा के प्रवाह को ठेलते हुए गंगा तक लाने के लिए गाइड बाँध बनाया गया. पुल की सुरक्षा के लिए यह जरूरी था. बरौनी से निकलने वाली गाडी सिंघपुर घाट के लिए आगे बढती थी और वहीं से वापस बरौनी लौट जाती थी. बीच में एक छोटा सा स्टेशन रूपनगर हाल्ट पड़ता था. सिंघपुर और मोकामा के बीच में जहाज़ चलता था मगर मुझे इसका स्मरण नहीं है. रूपनगर हाल्ट पर एक कुआं हुआ करता था जो आज भी मौजूद है. रेल बाँध के दूसरी तरफ हमारे परिवार की दो एकड़ जमीन थी जिसमें 50 के करीब आम और 20 के आसपास कटहल के पेड़ थे. आम के मौसम में वहाँ बड़ी रौनक रहा करती थी.

1971 में हमारे यहाँ गंगा में एक बहुत बड़ी बाढ़ आयी थी और यह सारे पेड़ बाढ़ के पानी में डूब गए थे. हुआ यह कि गुप्ता बाँध से पहले रिसाव शुरू हुआ और वह हमारी अमवारी की तरफ आने लगा. धीरे धीरे बाँध कमज़ोर पड़ा और सारा पानी आमगाछी में भर गया. उन दिनों मैं बीहट में महात्मा गाँधी उच्च मध्य विद्यालय में पढ़ता था. यह स्कूल एन.एच.-31 से सटा हुआ है. हमारे प्रिंसिपल तनुक लाल झा थे, जो मझौल के रहने वाले थे. उस साल सावन के महीनें में एकाएक एक दिन क्लास में मास्टर साहब ने घोषणा की कि सिमरिया वाले लड़के जल्दी से अपने घर चले जाएँ, गंगा का बाँध टूट गया है. हम लोग क्लास छोड़ कर भागे और सड़क पर आ गए. उस समय साढ़े बारह से एक बजे का समय रहा होगा. हमारे यहाँ उन दिनों विद्यार्थियों का रुतबा इतना बुलंद था कि लड़के जिस किसी भी बस या ट्रक को हाथ दिखा देते थे उसे रुकना ही पड़ता था. आज के जीरो माइल के पास चाँदनी चौक से लेकर लख्खीसराय होते हुए बख्तियारपुर तक हमारा ऐसा ही इकबाल कायम था. हम सभी सिमरिया वाले विद्यार्थी बरौनी थर्मल पॉवर स्टेशन के पास बस स्टैंड पर उतर गए.

यहीं से अंग्रेजों के ज़माने का बना गुप्ता बाँध एन.एच.-31 को काटता हुआ जाता है और हमारा गाँव पश्चिम की ओर पड़ता है. यहाँ आकर हम लोगों ने देखा कि सड़क से करीब पांच सौ मीटर दूर पश्चिम में कसहा और बरियाही गांव के बीच में गंगा का बाँध टूट गया है और सारा पानी गरजता हुआ हम लोगों के गाँव की तरफ बढ़ रहा है. हम लोग सिमरिया स्टेशन से आगे जाकर दौड़े-दौड़े अपने गाँव तक पहुंचे और अपने चाचा को खबर की कि बाँध टूट गया है और पानी आता ही होगा. उनको मालुम था कि बाँध टूट गया है पर उनका कहना था कि ऐसी-ऐसी बहुत सी बाढ़ उन्होनें अपने जीवन में देखी है और नदी का पानी कभी भी गाँव तक नहीं आया है सो तुम लोग फ़िक्र मत करो. हमारा बथान फुलवारी में था जो रूपनगर स्टेशन के पश्चिम से लगा हुआ था. उन्होनें कहा कि बथान में जो कुछ भी है उसे बाँध के ऊपर रखवा दो. हम लोग अपना छप्पर वगैरह खोल कर यहाँ तक ले आये. गुप्ता बाँध तो था ही, यहाँ रेलवे का भी बाँध था जो अब भी वहाँ है पर यहाँ अब रेल गाड़ी नहीं चलती है. इसी बाँध से लगी हमारी ज़मीन थी.

घर में पानी रात के करीब 9 बजे पहुंचा था. बाढ़ की तीव्रता के बारे में पुरानी मान्यताएं अब टूट चुकी थीं. अब बाढ़ ने हमारा घर देख लिया था. यहाँ एक मरुका था. यह टाट और बाँस की मदद से बना हुआ एक गोल मीनार नुमा संरचना होती है जिसमें भूसा रखते है. ज़मीन से एक डेढ़ फुट ऊपर खंभों पर बनी यह संरचना भूसा और अनाज रखने के काम आती है. इसमें कुछ ऊंचाई तक भूसा, फिर उसके ऊपर अगले फसल के लिए बीज का बोरे में गेहूं रखा जाता था और उसके ऊपर फिर भूसा रख कर उसे पुआल आदि से ढक दिया जाता था. इस मरुका में जानवरों के लिए चारे का प्रबंध हो जाता था और बीज भी सुरक्षित रहता था. गेहूं के बीज को हवा नहीं लगनी चाहिए वरना उसे खेत में बोने पर पौधे ठीक तरीके से बढ़ नहीं पाते हैं. भूसे और बीज वाले गेहूं को हम लोग समय रहते निकाल नहीं पाए और रातों रात पानी हमारे घर में घुस गया और सारा चारा और बीज सड़ गया.

गंगा पर जब पुल 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में बनना शुरू हुआ तब इस जगह गंगा पश्चिम से पूरब दिशा में बहती थी (है). गंगा का पुल एकदम उत्तर-दक्षिण दिशा में है. गंगा का पानी इस पुल से होकर ही पश्चिम-पूरबर्न दिशा में बहे यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तर में, हमारी तरफ, एक गाइड बाँध बनाया गया था. गाइड बाँध बनने के बाद गंगा हमारे गाँव के पश्चिम में मधुरापुर गाँव के पास दो धाराओं में बट गयी. दक्षिण वाली धारा मोकामा घाट से होकर बहने लगी और दूसरी धारा उत्तर में हमारे गाँव के पास से होकर गुज़रने लगी. बीच में दियारा क्षेत्र बन गया. बरसात के बाद जब गंगा शांत हो जाती है तब यहाँ ज़बरदस्त रब्बी की फसल होती है. इस दियारे में जिस ज़मीन पर बालू पड़ जाता है वहाँ खीर, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा और शकरकंद तथा परवल की फसल हो जाती है. जिस ज़मीन पर महीन मिटटी पड़ जाती है वहाँ गेहूं, चना, मटर, तीसी आदि की अच्छी खासी फसल आज भी होती है. अच्छी फसल और दूध-दही की सम्पन्नता के कारण हमारे इलाके के मर्द दस नंबर का जूता पहनते हैं. उसी से आपको अंदाजा हो जाना चाहिए कि यहाँ के लोग कितने तंदुरुस्त होते हैं. यह सब बाढ़ का प्रताप है. 1971 की बाढ़ ने हमारी इस मान्यता को पुष्ट कर दिया था.

क्रमशः -2

श्री सुबोध शर्मा



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