1971 की बाढ़-सुखाड-अकाल डायरी लिख रहा था कि Indian Nation,Patna का एक संपादकीय पढ़ने को मिला। इसका हिंदी अनुवाद यहां प्रस्तुत है। अखबार अपने 24 जुलाई के संपादकीय Flood-hit Areas (बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र) शीर्षक से लिखता है कि,
मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री को शायद अपने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने में कोई दिलचस्पी न हो इसलिए वह बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और केवल आश्वासन दिये जा रहे हैं। यहां का जो अमला तंत्र है वह यह कह करके बच निकलता है कि यह बाढ़ समय से पहले आ गई और प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं था। राजनीतिज्ञ लोग ऐसे अवसर पर अपनी गोटियां सेकने में रहते हैं और विपत्ति को अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के योग-क्षेम की दृष्टि से देखते हैं। लेकिन अगर मंत्रीगण राजनीति से ऊपर उठकर अपने अफसरों को दिल से काम करने की हिदायत दें तो परिस्थितियां बदल सकती हैं।
हमारे कहने का मकसद इतना ही है कि जब कोई प्राकृतिक विपदा आती है तो राजनीतिज्ञ लोग अपने-अपने क्षेत्र की मदद करने की कोशिश करते हैं जबकि विपक्ष आमतौर पर सारा दोष सरकार पर मढ़ता है। इस तरह की वैचारिक लड़ाई राहत कार्यों को मुश्किल बनाने में मदद करती है और अमला तंत्र को इस परिस्थिति का लाभ उठाने का फायदा होता है। अगर किसी की अपना दायित्व निभाने में कोई कमी पकड़ी जाती है तब मंत्री और उनके समर्थक ऐसे लोगों को बचाने का प्रयास करते हैं जिनमें उनकी व्यक्तिगत रुचि हो जबकि उनके आलोचक नापसंद अधिकारियों पर उसका जिम्मा डाल देते हैं। हम जानते हैं कि भारी से भारी विपदा भी राजनीतिज्ञ के इस चरित्र को बदल नहीं सकती जैसा कि बांग्लादेश के मामले में हो रहा है लेकिन इसके बावजूद हमारी अपेक्षा है कि उनका व्यवहार मानवीय हो।
जरूरी यह भी है कि प्रसिद्धि पाने के सस्ते तरीकों से बचा जाए। मिसाल के तौर पर लाखों लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, नमक और केरोसिन का वितरण कुछ लोगों के बीच में हुआ है जिसे समुद्र में एक बूंद ही कहा जा सकता है। जब इस तरह की बाढ़ एकाएक आई जैसा कि शाहाबाद और पश्चिमी पटना के साथ हुआ तब यह संभव नहीं है कि रिलीफ के सारे संसाधनों को ऐसे क्षेत्रों के लिए तुरंत जुटा लिया जाए जिस तरह से अक्सर बाढ़ आने वाले इलाकों में किया जाता है। लेकिन बाढ़ पीड़ितों की तकलीफों को कुछ हद तक कम जरूर किया जा सकता है अगर इसके लिए अधिकारियों द्वारा गंभीर प्रयास किए जाएं और यह काम अपने प्रचार-प्रसार के लिए न किया जाए जैसा कि मंत्री लोग किया करते हैं। जनसंचार विभाग को भी बाढ़ पीड़ितों के गांवों और उनमें फंसे हुए लोगों की फोटो छापनी चाहिए न कि मंत्रियों की जो विपत्ति के समय भी अपना प्रचार करने से बाज नहीं आते। जन-संचार विभाग को भी केवल अपने मालिकों का ही नहीं, कभी-कभी आम लोगों का भी ख्याल रखना चाहिए।