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कोसी नदी अपडेट - बिहार में बाढ़, सुखाड़ और अकाल, डॉ रामदेव झा से हुयी बातचीत के कुछ अंश, भाग - 2

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • March-03-2020
86 वर्षीय डॉ. रामदेव झा, ग्राम कबिलपुर, पोस्ट: लहेरियासराय, जिला दरभंगा से हुईं मेरी बातचीत के कुछ अंश।

1950 में पहले तो कमला नदी में बाढ़ आयी थी और दरभंगा-जयनगर रेल सेवा को बंद करना पड़ गया था. ऐसा भी अक्सर हुआ करता था पर कमला का रुझान पूरब की तरफ बढ़ने लगा था।

हमारा गाँव कमला की पुरानी धार के किनारे बहुत ऊपर बसा हुआ है और वहाँ बिरले ही नदी का पानी चढ़ता है. अंग्रेजों ने जब लहेरियासराय को जिला मुख्यालय बनाया तब उन लोगों ने इस संकुल को बाढ़ से सुरक्षित करने का प्रबंध किया. इससे शहर और प्रशासनिक क्षेत्र तो सुरक्षित हो गया मगर शहर की हालत पर तो कोई प्रभाव नहीं पडा. घेरे के बाहर तो बाढ़ पहले की तरह ही कायम थी और यह क्रम आज भी जारी है।

1974, 1975, 1987 और 2004 में दरभंगा में बाढ़ की हालत बहुत बिगड़ गयी थी. 2004 में तो लहेरियासराय के पश्चिम में सरकार के अनाज के गोदाम में ही पानी चला गया था. हमारा घर गाँव के सीमाने पर है और और उसके बगल से कमला और दरभंगा बागमती की पुरानी धारें किसी न किसी समय गुज़रती रही होंगी. हमारे गाँव के पश्चिम डरहार गाँव से होती हुई रेलवे लाइन के नीचे से एक अन्य धार गुज़रती थी. नदी तो अपने पुरानी जगह पर कभी न कभी वापस आती ही है, यह तो सर्वविदित है. हम लोगों का घर और उसके सामने की सड़क का लेवल बहुत ऊंचा है पर 2004 में उसके ऊपर भी नदी का पानी कमर के ऊपर से बह रहा था. हमारे घर से आधा किलोमीटर दूर अंग्रेजों ने पानी की निकासी के लिए एक नहर बनवाई थी क्योंकि लहेरियासराय की बाढ़ से सुरक्षा की व्यवस्था कर लेने के बाद पानी की निकासी बाधित हो गयी थी.

पानी का रास्ता रोकना नहीं चाहिए, इससे उलटा नुक्सान ही होता है. लेकिन हमारा सारा प्रयास बाढ़ रोकने की ओर होता है, पानी की निकासी पर यदा-कदा चर्चा होकर ही बात समाप्त हो जाती है। इतने वर्षों बाद हायाघाट के रेल पुल के विस्तार का काम हुआ है जो अच्छी पहल है।

बरसात के मौसम में साँपों की बहुतायत हो जाती है क्योंकि उनके बिलों में पानी भर जाता है और वह बाहर निकल आते हैं. श्रावण के महीनें में वह सब के सब बाहर होते हैं और सांप काटने की घटनाएं आम हो जाती हैं. शायद इसी लिए नाग पंचमी का त्यौहार श्रावण के महीने में मनाया जाता है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बाढ़ में सांप ही पेड़ पर चढ़ गए और वहीं पर आश्रय लेने के लिए मजबूरन आदमी भी पहुँच गए जहां पहले से ही सांप लटका रहता है. उस समय दोनों साथ-साथ रहते हैं. विपत्तियों के समय जब खुद की जान पर आफत हो तो दूसरे की जान लेने का किसी को ख्याल भी नहीं आता है।

डॉ. राम देव जी झा के साथ डॉ दिनेश मिश्रा 

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