शिवनाथ पोद्दार, ग्राम पिपराहरी, प्रखंड सुपौल सदर, जिला सुपौल. 84 वर्ष. (अब स्वर्गीय) से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश.
1954 में कोसी पर यह तटबंध नहीं था और बाढ़ काफी भयंकर रूप में यहाँ आई थी. उस समय ज़्यादातर लोग अपने जानवरों को लेकर सुरक्षा की दृष्टि से ऊंची जगहों को देख कर वहीं चले गए थे. उस साल हमारे परिवार ने अपना मवेशी यहाँ से तीन किलोमीटर दूर सुपौल स्टेशन के प्लेटफार्म पर रखा था जहां हमारे दादा जी बाढ़ के समय रहने के लिए चले गए थे. वही निगरानी करते थे. उनके अलावा बाकी लोगों ने घर नहीं छोड़ा था. यहीं पर थे, हमारे पास नाव थी और स्टेशन के पूरे रास्ते में पानी था. इसलिए यहाँ जंगल से चारा इकठ्ठा करते थे और दादाजी के पास नाव से पहुंचा देते थे. जब बाढ़ का पानी बहुत बढ़ गया तब हम लोगों ने गाँव के बचे हुए जानवरों को खोला और उन्हें तैराते हुए स्टेशन तक ले गए थे. यह काम बड़ा ही श्रमसाध्य था और खतरे से खाली नहीं था. पानी कोई एक डेढ़ महीना टिका रहा होगा और अपने जानवर वापस लाने में करीब दो महीना जरूर लगा होगा. हम लोगों को क्या मालूम था कि तटबंध बनाने से हम लोगों को नुकसान होगा. अगर पता होता तो क्यों बनाने देते.
उन दिनों बाढ़ में अगर रोज़गार खत्म हो जाता था तो हल्ला होता था कि बंगाला चलो जैसे आजकल दिल्ली चलो का हल्ला होता है. उन दिनों पूरब का पूर्णियां, किशनगंज, अररिया आदि वाला इलाका बंगाला कहलाता था. उधर से लोग एक दो महीना रह कर कमा कर लाते थे तो इधर घर पर काम चलता था. कुछ लोग और आगे सिल्लिगुड़ी, जलपाईगुड़ी यहाँ तक कि असम की तरफ भी चले जाते थे. उस समय कलकत्ता जाना लोग ज्यादा पसंद करते थे ठीक उसी तरह जैसे अब दिल्ली, पंजाब या गुजरात की ओर जाते हैं.
1954-55 में मेरी उम्र 15-16 साल रही होगी. स्कूल में पढ़ता था, उन दिनों लड़के बड़े हो जाने पर ही स्कूल जाते थे. आज की तरह तीन चार साल से ही नहीं. पढ़ाई-लिखाई का आज जैसा माहौल नहीं था. डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जब यहाँ पूरबी तटबंध का शिलान्यास करने आये थे तब हमने उनका भाषण सुना था. उस दिन हम जैसे बहुत से लड़कों को भाषण सुनने के लिए जो लोग आये थे उनको पानी पिलाने का जिम्मा दिया गया था. राजेन्द्र बाबू ने अपने भाषण में कहा था कि सरकार पूरी तरह से इस क्षेत्र के लोगों को देखेगी. हमारी एक आँख बाकी देश पर रहेगी तो एक आँख कोसी क्षेत्र पर रहेगी. हम कोसी क्षेत्र के लोगों को खुशहाल बना देंगें. जो लोग तटबंध के अन्दर रहेंगें या पड़ जायेंगें उनके पुनर्वास की व्यवस्था सरकार करेगी. घर के बदले घर देंगें, ज़मीन के बदले ज़मीन देंगें और जिस परिवार के लोग नौकरी करने लायक होंगें उनको नौकरी भी दी जायेगी. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का प्रबंध कर दिया जाएगा. यह मैंने भी सुना था और इसकी चर्चा बहुत समय तक चली थी.
उनके साथ कौन-कौन आया था यह तो नहीं कह सकते पर हमारे क्षेत्र के एक बड़े नेता लहटन चौधरी जरूर उनके साथ आये थे क्योंकि उनको हम लोग पहचानते थे. पड़ोस के बीना गाँव के शैलेश्वर खान भी आये थे. हम लोग वहाँ मौजूद जरूर थे मगर हमारी समझ ही कितनी रही होगी उस समय बाद में चर्चा कभी होती थी तो तो बड़े लोगों की बातें सुनते थे.
हम लोगों को पुनर्वास मिला पिपरा खुर्द में जो यहाँ से दूर पड़ता था. वहाँ रह कर यहाँ की खेती-गृहस्ती चलाना मुश्किल था. इसलिए हम लोग वहाँ गए तो जरूर मगर लौट आये. पुनर्वास की ज़मीन भी छोड़ दी. हमारे गाँव के बुजुर्गों ने राय-मशविरा किया और सरकार से कहा कि हम लोग यहीं रह जायेंगें और पुनर्वास में नहीं जायेंगें, मगर यह तटबंध हमारी ज़मीन पर नहीं बनना चाहिए फिर भी यह तटबंध हमारे गाँव की ज़मीन पर बना. उसके बाहर कंट्री साइड में सौ बीघा ज़मीन हमारे गाँव की है.
उस ज़माने की बात अलग है. विकास तो हुआ है. पहले लोग इतने लोग पढ़े-लिखे और बुद्धिमान नहीं थे. सरल, कम पढ़े-लिखे और सरल नहीं होते तो फिर वही करते जो सचेत परमेश्वर कुंवर ने किया था.
श्री परमेश्वर कुमर कौन थे और उन्होंने क्या किया था, वह हम अगली पोस्टिंग में बतायेंगें – 2
स्वर्गीय श्री शिव नाथ पोद्दार