3 अप्रैल 1964 के दिन बिहार विधानसभा में परमेश्वर कुमर के भाषण का कुछ अंश
इस योजना के चलते और कम से कम सरकारी आंकड़े के अनुसार 1.15 लाख लोग कोसी पर तटबंधों के बीच में परेशान हो रहे हैं। यह आंकड़ा मुझे सही नहीं जंचता है। मेरी समझ से आज दो लाख से अधिक लोग इस कोसी योजना के चलते परेशान हो रहे हैं। मैं स्पष्ट यह कहना चाहता हूं कि जब कोसी नदी बहती थी तो करीब साढे चार लाख एकड़ जमीन कोसी की बाढ़ के चलते क्षतिग्रस्त होती थी और आज जब कोसी के दोनों किनारों पर तटबंध का निर्माण किया गया है और योजना समाप्त होने पर है, तो ऐसी हालत में चार लाख में से 2.6 लाख एकड़ जमीन ऐसी है जो स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त होती रहेगी जिसका कभी उबार नहीं होने वाला है, जो सरकारी आंकड़े के मुताबिक सदा के लिए कोसी की बाढ़ में रहेगी और जो सदा बर्बाद हो गई। इसके साथ ही कोसी तटबंध के भीतर डेढ़ लाख से अधिक इंसानों का, जिनका सब कुछ सदा के लिए नष्ट हो गया, इसका पता सरकार को है या नहीं? (उनका) कहीं कोई निस्तार नहीं है...
"... हमारे चीफ मिनिस्टर साहब बहुत पुराने कांग्रेसी हैं और दूसरे मंत्री भी इसको जानते हैं कि कोसी नदी जहां से होकर बहती है उसको उजाड़ देती है, बरबाद कर देती है. पूर्णिया की आबादी इसीलिए कम है कि उस इलाके में कोसी नदी बहती थी। जिस इलाके में कोसी नदी बहती है उस इलाके की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है..."
"...मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि तटबंध बनाकर कोसी नदी को कैद तो कर लिया गया है लेकिन उस तटबंध के भीतर रहने वाले लोग तबाह हो रहे हैं, पशु तबाह हो रहे हैं। उनकी ओर माननीय सिंचाई मंत्री ने ध्यान नहीं दिया है। यह ठीक है कि बजट में उनके पुनर्वास के लिए 2.16 लाख रुपया रखा है लेकिन कोसी नदी के तटबंध के भीतर रहने वाले 306 गांवों में हर साल करीब सैकड़ों गांव कोसी नदी से कट जाते हैं। यद्यपि उनके रहने के लिए जमीन अर्जित की गई है लेकिन वह जमीन उनके पुनर्वास के लिए ही अर्जित की गई है और वह भी एक साल के लिए बंदोबस्त की जाती है। नतीजा यह होता है कि किसान बरसात में रक्षा के लिए अपने मवेशियों को बाहर लेकर नहीं जा सकते। इस प्रकार उन्हें बाहर भी और कोसी तटबंध के भीतर भी, दोनों जगहों में रहना पड़ता है क्योंकि भीतर में आवास संभव नहीं है और बाहर में उनका खेत नहीं है। इससे उनको बड़ी परेशानी होती है सरकार को खबर है या नहीं कि ऐसा भी होता है कि जो लोग बाहर बसना चाहते हैं उनकी झोपड़ी हाथी के जरिए उजाड़ दी जाती है और उन्हें मुकदमों में फंसा दिया जाता है। सहरसा जिले के धरहरा थाना अंतर्गत अमाही गांव में ऐसा ही हुआ था। सरकार उन्हें बचाने का कोई उपाय नहीं करती है। इसलिए सरकार जब उन्हें जमीन बंदोबस्त करना चाहती है और उन्हें पुनर्वास करना चाहती है तो पूरी व्यवस्था के साथ ऐसा करें।"
यह पूरी व्यवस्था जिसकी ओर परमेश्वर कुमर जी ने 1964 में इशारा किया था वह लागू हुई या नहीं?