बिहार- बाढ़ - सुखाड़-अकाल
रघुवंश शुक्ल, 61 वर्ष, ग्राम जयनगरा, प्रखंड तिलौथु, जिला रोहतास.से हुई मेरी बात चीत के कुछ अंश। भाग - 2
सोन नहर का फ़ायदा हम लोगों को नहीं हुआ। यूं कहिये कि चिराग तले अन्धेरा है। नहर यहीं से शुरू हुई है मगर पानी हमारे लिए नहीं है। नहर का पानी उन्हीं खेतों में जा सकता है जहां नहर के पानी का लेवल खेत के ऊपर हो पर यहाँ तो वैसा है नहीं। यह स्थिति डेहरी-ऑन-सोन से शुरू होती है और उसी के नीचे पानी मिलना शुरू होता है। वहाँ तक के खेतों को इस नहर से कोई फ़ायदा नहीं है। उसके नीचे जाने पर भी नहर के पानी का कितना उपयोग हो पाता है यह चिंता का विषय है। इसके दो कारण हैं, एक तो समाज के स्तर पर अनुशासनहीनता है। पहले नहर थी तो लोग-बाग़ उसकी देख-रेख न भी करें तो भी उसे बरबाद नहीं करते थे। आज उसे बरबाद करने में किसी को डर–भय नहीं है। दूसरी प्रशासनिक और विभागीय निष्क्रियता जो अफसरों और कर्मचारियों के स्तर पर है।
रख-रखाव में ढिलाई और नहरों में गाद का जमा होना पानी को आगे बढ़ने से रोकता है। सोन के ऊपरी हिस्सों में नदी और उसकी सहायक धाराओं पर बाँध बन गए हैं तो यहाँ नदी में पानी आना कम हो गया है और इस कमी से नदी का प्रभावित होना स्वाभाविक है। इसके बाद कमांड क्षेत्र में ऊपर और नीचे वालों का आपसी झगडा तो है ही। कोई फायदे की चीज़ हमारे सामने से जा रही हो और हमीं उसका उपयोग न कर पाएं तो हम उसे कैसे आगे जाने देंगे। यह झगड़ा तो कभी ख़त्म नहीं होगा। बारिश हो जाए तो कौन पानी रोकेगा? तब तो सभी खेत का मुहाना बंद करने में लग जायेंगे कि खेत में पानी न जाने पाए।
1975 में नदी में बहुत पानी आ गया था और हम लोग बराज पर देखने के लिए गए थे। बराज काँप रहा था। हम लोग डर के मारे वापस आ गए कि कहीं बराज टूट न जाए और हम लोग बह न जाएँ। उसके बाद इतना पानी कभी नहीं आया। बराज बनने के बाद एक समस्या जरूर शुरू हुई कि मान लीजिये कि ऊपर से पानी आ रहा है और यहाँ भी पानी बरस रहा है और ऊपर से पानी के रास्ते में रुकावटें हैं तो समस्या पैदा होगी ही। पहले पानी के रास्ते खुले हुए थे जो अब नहीं हैं। यहाँ पहाड़ पर माँझर कुंड से एक नाला निकलता है। बराज और डिहरी के बीच में दो पुल तो इस नहर के हैं और एक पुल माँझर कुंड वाले नाले का है। उसी नाले से इधर का जो भी पानी था वह सोन में चला जाता था।
बाँध बना, बराज बना, नहरें बनीं, सड़कें बनीं और पानी की निकासी के रास्ते संकीर्ण होते गए और पानी निकल नहीं पाता। पहले यह पानी आहर में भर जाता था और हमारे काम आता था पर अब न तो आहर रहे और न पहले की कोई व्यवस्था ही रही। अब जिसके हाथ में पानी देने का जिम्मा है उसे पहली तारीख को तनखाह मिलनी ही है चाहे वह घर ही बैठा रहे।
ऐसे कहीं दुनिया चलती है?