बिहार- बाढ़ - सुखाड़-अकाल
रघुवंश शुक्ल, 61 वर्ष, ग्राम जयनगरा, प्रखंड तिलौथु, जिला रोहतास.से हुई मेरी बात चीत के कुछ अंश।
1965 में यहाँ सोन बराज का उदघाटन गुलजारी लाल नंदा, तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ने किया था। उस समय तक हमारे यहाँ सिंचाई तुतला से आने वाले पानी और आहर से होती थी। गाँव में कई आहर थे, अब केवल दो बचे हैं और उनका भी अतिक्रमण हो रहा है। ये आहर किसने बनवाये थे इसका कोई इतिहास हम लोगों में से शायद किसी को भी न मालुम हो। किसी राजा या जमींदार का ही यह काम रहा होगा। पहले कुछ सिंचाई मोट से हो जाती थी, पर एक कुएं और मोट से दो-ढाई बीघे से ज्यादा खेत में पानी देना संभव नहीं था। फिर उसके बाद रहट आया और आखिर में जब 1966 में अकाल जैसी स्थिति आ गयी तब महामाया बाबू (तत्कालीन मुख्यमंत्री-बिहार) के समय में यहाँ बिजली और ट्यूबवेल आया। यही व्यवस्था अभी तक चल रही है।
उस साल राहत बाँटने की नौबत आ गयी थी, जिसका अनाज जनेर और गेहूं पास के सिढोरा गाँव में, जो यहाँ से 3-4 किलोमीटर दूर है, मिलता था। यह अनाज सभी को मिलता था और सब लोग ले भी लेते थे। इससे हम लोगों की भोजन की व्यवस्था तो हो जाती थी मगर जानवरों को चारे की बहुत दिक्कत थी। उस साल जानवरों को गन्ने की सूखी पत्तियों की कुट्टी बना कर खिलाना पड़ गया था जबकि आम तौर पर हम लोग इससे बचते थे। गनीमत बस इतनी ही थी कि जानवर यह कुट्टी खा भी लेते थे। इसके अलावा हरा चारा तो कोई था नहीं। गेहूं की फसल उस साल नहीं हुई क्योंकि बीज तक नहीं बचा था। अमेरिका से उस साल कोई नया बीज आया था जो खेत में बड़ा हुआ ही नहीं, वैसे ही पसर गया। किसी-किसी को थोडा बहुत गेहूं हुआ होगा तो हुआ होगा। उस साल से दो नये बीज आने शुरू हुए। एक तो पंजाब वाला था और दूसरा जिसे हम लोग भुंड़लिहवा कहते थे वह बाज़ार में आया। इसकी पत्तियां नुकीली होती थीं।
उस साल हमारे यहाँ कुएं सूखे नहीं थे इसलिए पीने के पानी की दिक्कत नहीं हुई थी पर खेती के लिए पानी नहीं था। शायद ही किसी किसान ने एक बीघा खेत बोया हो। सब 5 से 10 कट्ठे में सिमट कर गये थे। उन दिनों इतनी उपज हमारे यहाँ होती भी नहीं थी। कट्ठे में एक मन हो जाये तो लोग खुश हो जाते थे। अब ढाई मन भी हो जाये तो किसान तनाव में रहता है क्योंकि पहले खेती में खर्चा नहीं था। अब खर्च ही खर्च है, उसके बाद खेती का ढर्रा ही बदल गया। सब कुछ नया आ गया। जिसके पास खेत है उसे भोजन की कमी नहीं होती है। यहाँ रोज़गार के लिए पलायन हाल में सन 2000 के आसपास शुरू हुआ होगा। जब तक आधा पेट भी भरा हो तब तक लोग नहीं गये। साग-रोटी, चोखा-रोटी जब तक मिलती रही तब तक लोग यहाँ थे पर जब उस पर भी आफत आ गयी तब लोग घर-द्वार छोड़ कर निकलना शुरू हुए। आम तौर पर घर छोड़ कर बाहर वही गया जिसकी या तो सोच लम्बी हो या फिर फाके की नौबत आ गयी हो।
क्रमशः - 2