बिहार-बाढ़-सूखा-अकाल-1949
श्री कुणाल कृष्ण मंडल,ग्राम रानीपट्टी, प्रखंड कुमारखंड, जिला मधेपुरा से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश "दोनों धारों के बीच हम लोग फँसे थे.."
मैंने खुद तो 1949 की तबाही तो नहीं देखी थी मगर बाबा और दादी से उसके किस्से जरूर सुने हैं। इस मसले पर मेरी बचपन से ही रुचि रही है। हमारे इलाके में 1948 और 1949 में कोसी पश्चिम की ओर जा चुकी थी जिसका मतलब सामान्यतः यह निकाला जा सकता है कि सारी तबाही पश्चिम की ओर ही हुई होगी। पर यह सच नहीं है। कोसी की तेज धारा के अलावा हमारे यहाँ उसकी एक छाड़न तिलावे भी सक्रिय थी और उसने हमारे पूर्व वाले क्षेत्र को भी तबाह किया था। इन दोनों धारों के बीच हम लोग फँसे थे।
हमारा गाँव रानी पट्टी है और मेरे पिताजी तथा प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और समाज कर्मी भूपेंद्र नारायण मंडल चचेरे भाई थे। हमारा अच्छा खासा महल टाइप का घर था जो 1948 के बाढ़ में पूरी तरह से बह गया था। नतीजा यह हुआ कि हमें अपने ही गाँव में दूसरी ऊँची जगह पर जाकर घर बनाना पड़ गया था। हम लोग यहाँ अपना अनाज, माल-मवेशी और वह सभी कुछ लेकर चले आये जो लाया जा सकता था। इस नयी जगह पर हम लोगों ने अपना घर खर, बाँस आदि का ही बनाया क्योंकि नदी और बाढ़ का डर हम लोगों में इतना समा गया था कि बाढ़ फिर आयेगी और इसी तरह से सब ले-दे कर चली जायेगी। गाँव के दूसरे बहुत से परिवार जिनका घर इस साल की बाढ़ में कट गया था वह भी ऊँची जगहों पर चले आये थे।
बाद के वर्षों में जब सब कुछ सामान्य होने लगा तो हम लोग वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ गये। जब हम लोग इस गाँव में आये थे तो भूपेंद्र नारायण मंडल जी सक्रिय और सक्षम थे। उन्होंने साथ लाया हुआ अनाज गरीब लोगों में बँटवा दिया था। उनके पिताजी यानी हमारे बाबा रईस थे और सामन्तवादी विचारधारा के थे जबकि भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवादी थे।
हमारे घर में भी विचारधारा का द्वंद्व चलता रहता था। बाबा को लगता था कि भूपेंद्र सब कुछ लुटा देगा जबकि भूपेंद्र चाचा को लगता था कि जब लोग ही नहीं बचेंगे तो हम जीकर क्या करेंगे? सिर्फ भोजन की व्यवस्था ही उन्होंने सबके लिये नहीं की, दवा-दारू का भी प्रबन्ध उन्होंने सबके लिये करवाया था। परेशानी तो छोटे-बड़े सभी को हुई थी और वह चार साल 1948, 1949, 1950 और 1951 हम लोगों की तबाही के साल थे। 1948 और 1949 में हम लोग बाढ़ से परेशान हुए थे और 1950 और 1951 में सूखा पड़ गया था। ऐसी परिस्थिति में आम आदमी को भूखा मरना ही था। जिस तिलावे नदी से हमलों से इतनी तबाही हुई वह आजकल मधेपुरा जिले के गम्हरिया प्रखंड से होकर गुजरती है।
श्री कुणाल कृष्ण मंडल