गंडक तटबन्ध की दरार-ग्राम मटियारी, जिला गोपाल गंज, 1949
चंद्रमा सिंह, ग्राम/पोस्ट मटियारी, प्रखण्ड बैकुंठपुर, जिला गोपालगंज से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश। वह बताते हैं कि,
मेरी उम्र उस समय 12-13 साल की रही होगी पर वह घटना मुझे याद है। गंडक नदी का बाँध मटियारी के उत्तर-पश्चिम कोन पर टूटा था। यह बाँध टूट जायेगा इसका किसी को कोई अंदाजा नहीं था। वहाँ एक रिंग बाँध हुआ करता था जिस पर नदी ने पहले हमला करना शुरू किया। पहले रिंग बाँध में दरार पड़ी और उसके बाद हमारे गाँव के गणेश मास्टर जी के घर के पास तटबन्ध से रिसाव होना शुरू हुआ और सुबह छः बजे के आसपास बाँध टूट गया। नदी रिंग बाँध के पश्चिम में थी और दरार से जब पानी निकलना शुरू हुआ तो लगभग दस घंटे बाद यह बाँध भी टूट गया जिसे बचाने की भरपूर कोशिश की गयी थी।
विभाग की सारी कोशिश किसी तरह से रिंग बाँध को बचाने की थी पर वह हो नहीं पाया। यह जगह ऐसी है कि यहाँ अगर बाँध टूट जाये तो नदी का पानी मशरख, मढ़ौरा होते हुए सोनपुर तक चला जायेगा और वही हुआ। बहुत से लोग डर से पहले ही शरण लेने के लिए बाँध पर चले आये थे। वह एक कठिन काम था क्योंकि लालटेन उन दिनों सभी के पास नहीं होती थी। ज़्यादातर काम ढिबरी से ही चलता था।
आप 18 गाँवों में बाढ़ का पानी फैलने की बात करते हैं, यह पानी उससे कहीं ज़्यादा गाँवों में गया होगा। बाढ़ का पानी मढ़ौरा में भी घरों की खिड़की तक गया बताते हैं। नाव की परेशानी हम लोगों को नहीं थी क्योंकि हम लोग तो दियारे में बसने वाले लोग हैं। यहाँ घर-घर में नाव रहती है। 10-12 दिन तक पानी यहाँ रहा था। नदी में जब पानी बढ़ता है तो पहले बाँध की तरफ बढ़ता है और उसका कटाव करता है। बहुत ज़्यादा पानी होने पर बाँध के ऊपर से निकल जाता है और उसे तोड़ देता है। नदी में पानी कम होने पर सारा पानी इसी दरार के रास्ते वापस लौटता है और हम लोग सुरक्षित हो जाते हैं। पानी गाँव में आयेगा तो जायदाद का नुकसान तो होना ही है लेकिन नई मिट्टी पड़ जाने से रब्बी की जबर्दस्त फसल उस साल हुई थी। बाँध टूटने के बाद मिट्टी के बने बहुत से घर बैठ गये थे। हमारे घर को भी नुकसान पहुँचा था भले ही हमारा घर तटबन्ध से 500 मीटर दूरी पर था। पानी उतरने के बाद बाँध की मरम्मत का काम शुरू हुआ।
यहाँ अरेराज के पास सल्लेहपुर गाँव का एक ठेकेदार काम करवा रहा था। उन दिनों दिहाड़ी डेढ़ रुपये थी और चार आना ख़ुराकी मिलती थी। दिहाड़ी को लेकर ठेकेदार और मजदूरों के बीच कहा-सुनी हो गयी थी तो ठेकेदार को मजदूरों ने मिल कर पीट दिया था। मेरे पिताजी ही इस घटना की कलक्टर को तार से रिपोर्ट देने के लिये मशरख गये थे और कलक्टर खुद जाँच करने के लिये यहाँ आये थे। ठेकेदार की शिकायत थी कि गाँव वालों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। गाँव वालों का तर्क था कि अगर गाँव वाले ही पिटाई करते तो खुद कलक्टर के पास शिकायत करने क्यों जाते?
चोर किसी के घर में सेंध लगाने जाता है तो घर वाले से ही कुदाल मांगता है क्या?
इस तरह से मामला रफा-दफा हो गया।
श्री चन्द्रमा सिंह