लक्षणदेव प्रसाद सिंह, ग्राम पुरुषोत्तमपुर, प्रखंड कुरहन्नी, जिला मुजफ्फरपुर से हुई बात चीत के कुछ अंश।
1967 में बिहार में बहुत बड़ा सूखा पड़ा था, कुछ हिस्सों में तो अकाल की विधिवत घोषणा भी की गई थी। ऐसा लगने लगा था कि इस अकाल में बहुत से आदमी और जानवर मारे जायेंगें। पानी की नितांत कमी हो गयी थी। मजदूरों को कोई काम नहीं मिल पा रहा था और जो रोज़ कमा कर खाने वाले लोग थे उनके सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी थी। इसका मुकाबला करने के लिए जय प्रकाश नारायण (जेपी) जी ने बिहार रिलीफ कमिटी के नाम से एक संस्था गठित की थी। जेपी ने देश और दुनिया को संबोधित करते हुए एक अपील जारी की कि यह एक मानवीय त्रासदी है जिससे लोगों को बचाने के लिए कोशिश की जानी चाहिए। वह उस काम में स्वयं लगे और उनकी अपील की प्रतिक्रया में उन्हें काफी सामान, धन और जन सहयोग देश और विदेश दोनों से मिला।
जेपी ने बहुत ही संगठित रूप से राहत कार्य की शुरुआत की। उनके इस काम को दो भागों में देखा जा सकता था। एक तो यह कि जो लोग भूख से मर रहे हों उनके लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था की जाए। सामान्य भोजन जैसे दलिया या खिचड़ी आदि बना कर उन लोगों को खिलाया जाए ताकि हर व्यक्ति की जीवन रक्षा हो सके और कोई मरे नहीं। दूसरा कार्यक्रम था कि पशुओं के लिए चारे और पानी की पर्याप्त व्यवस्था की जाए। पशु चारे की उस साल ऐसी स्थिति हो गयी थी कि लोगों को शीशम की पत्तियाँ तोड़ कर जानवरों को खिलाना पड़ गया था जिनकी ओर पशु साधारणतः देखते भी नहीं हैं। इन दोनों मोर्चों पर काम उन्होनें शुरू किया।
मैं उन दिनों बिहार रिलीफ कमेटी का जॉइंट सेक्रेटरी था और कुरहन्नी प्रखंड का प्रभार मेरे जिम्मे था। बगल का प्रखंड वैशाली है जिसे लोकतंत्र की जन्मस्थली कहा जाता है। जेपी का इस जगह के प्रति विशेष अनुराग था। वहाँ का जो राहत कार्यों का प्रबंधन था वह दुरुस्त नहीं था जिससे लोगों में असंतोष था। एक दिन संगठन के वरिष्ठ नेता सिद्धराज ढढ्ढा जी का मेरे पास तार आया जिसमें मुझे जेपी से मिलने की हिदायत थी। मैं जब उनसे मिलने के लिए गया तब उन्होनें मुझसे वैशाली का भी काम देखने के लिए कहा। मैंने उनके आदेश का सम्मान करते हुए वैशाली के काम को भी संभाला और वहाँ की मुफ्त भोजन और अन्य कामों में सुधार हुआ। कुरहन्नी का काम तो चल ही रहा था। इस कार्यक्रम में दोनों प्रखंडों में बाहर से आये कपड़े का जो वितरण हुआ उसका बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
उस समय बिहार में संविद सरकार का शासन था जिसमें बसावन सिंह एक मंत्री हुआ करते थे। वह समाजवादी विचारधारा के व्यक्ति थे और उनसे हम लोगों का वैचारिक साम्य था। उस समय हम लोगों ने मनिहारी (पूर्णियाँ) में एक बैठक की थी जिसमें उनको आमंत्रित किया गया था। उस बैठक में बसावन बाबू ने कहा था कि अगर जेपी ने यह काम शुरू नहीं किया होता तो बिहार में कम से कम एक लाख लोग काल के गाल में समा गए होते। इस कार्यक्रम की उन्होनें बड़ी प्रशंसा की थी।
जेपी बराबर कहा करते थे कि हमारी पृथ्वी माता अन्तःसलिला है। जैसे परिवार में लोग विपरीत समय की दुस्सह परिस्थितियों का सामना करने के लिए कुछ न कुछ संग्रह करके रखते हैं उसी तरह से पृथ्वी माता भी प्राणिमात्र के कल्याण के लिए पानी बचा कर रखती है। इसी तरह से हम लोगों को भी पानी बचा कर रखने की आदत डालनी चाहिए और इस संचित पानी का उपयोग विपरीत परिस्थितियों में ही करना चाहिए। तभी बिहार रिलीफ कमिटी ने पेयजल के लिए भूगर्भ जल के उपयोग का एक कार्यक्रम चलाया था। जेपी ने एकदम सतर्कता बरतते हुए कहा था कि भूगर्भ जल का उपयोग हम सिर्फ उतना ही करेंगें जितने से मनुष्यों और अन्य प्राणियों की प्यास बुझाने, और उनके लिए आवश्यक अन्न का उत्पादन करने के लिए जरूरी होगा ताकि कोई भी भूखा-प्यासा ना रहे। इसके आगे पानी के किसी भी उपयोग पर सावधानी बरती जानी चाहिए। वह पानी के पुनर्भरण की भी बात करते थे कि पृथिवी से जो भी जल हम क़र्ज़ के रूप में लेते हैं उसे लौटाना हमारा फ़र्ज़ बनता है। मैं समझता हूँ कि बिहार रिलीफ कमेटी ने 1966-67 एक ऐतिहासिक भूमिका अदा की कि मुसीबत के समय लोगों की जीवन रक्षा का क्या क्या काम हो सकता है, उसका उदाहरण रखा।
सरकार भी अपने तरीके से राहत का काम कर रही थी पर उसकी विडम्बना यह है कि ऐसे कार्यक्रमों के बारे में जितना प्रचार-प्रसार किया जाता है उतना ज़मीन पर उतर नहीं पाता है। यह बात जितनी तब सत्य थी उतनी ही आज भी है। जब आप सुशासन की बात करते हैं तो उससे पहले शासन की बात करनी चाहिए, सुशासन या कुशासन की बात बाद में कर लेंगें। उस समय भी सरकार का काम आकाश बांधों, पाताल बांधों, पूरब बांधों, पश्चिम बांधों आदि कहा तो जरूर जाता था पर वास्तव में क्या बांधा जा रहा है वह तो दिखाई पड़ना चाहिए।
बिहार रिलीफ कमिटी ने अपने साधन से गाँव-गाँव में जाकर मुफ्त रसोई का इंतजाम किया, पोखर, तालाब, कुएं खुदवाए, पीने के पानी के लिए हैण्ड पम्प गाड़े, कपड़े बंटवाये, दवा-दारु का प्रबंध किया मगर सरकार जितना कर सकती थी उतना वह कर नहीं पायी। इतना जरूर था कि उसने बिहार रिलीफ कमिटी का सहयोग किया। स्थानीय स्तर पर कोई बाधा आती थी तो उसके निराकरण में वह मदद करती थी. हमलोगों की वार्ता भी उस समय के मंत्रियों कर्पूरी ठाकुर, बसावन सिंह आदि जैसे नेताओं के साथ चलती रहती थी। उन लोगों के साथ वैचारिक साम्य तो था ही।
श्री लक्षणदेव प्रसाद सिंह