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कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, वर्ष (1948), परमेश्वर सिंह से हुई बातचीत के अंश

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • September-24-2020
परमेश्वर सिंह, 86 वर्ष, ग्राम कौसर, पंचायत गभिरार, प्रखंड रघुनाथपुर, जिला सिवान, से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश।


वह कहते हैं, हमारा घर घाघरा के किनारे है। 1948 में नदी पर कोई बाँध नहीं था। तब बरसात में जब नदी में पानी आता था तो चारों तरफ फैलता था। उस साल हमारा पूरा गाँव नदी के पानी से घिर गया था। थोड़ी राहत थी कि गाँव के पूरब और पश्चिम में दोनों तरफ ऊंचा डीह था जिस पर पानी नहीं चढ़ा था। ज़्यादातर लोग वहीं अपने जानवरों के साथ शरण लेने के लिये चले आये थे। गाँव के अधिकांश घर मिट्टी के बने हुए थे जिनमें से बहुत से घर बाढ़ में गिर गये। गाँव के बहुत से लोग नदी के किनारे दीयरा में रहते थे और वहीं रह कर खेती करते थे। उनकी खरीफ की फसल तो निश्चित रूप से मारी जाती थी क्योंकि नदी का पानी उनके खेतों को समेट लेता था। पानी गाँव में भी आ जाता था और अगर किसी ने निचले इलाके में कुछ लगा रखा हो तो उसको भी डुबा देता था। नदी से दूर वाले इलाके में तब भी फसल होती थी और आज भी होती है। वैसे हमारा इलाका तब खरीफ पर निर्भर न कर के रबी पर ही ज्यादा आश्रित था और रबी की फ़सल बहुत अच्छी होती थी।

दीयरा वाले लोग भी जिनका घर गिर जाता था वह पूरब या पश्चिम वाले डीह पर अपना माल-मवेशी लेकर चले आते थे। उस साल अनाज की बड़ी दिक्कत हुई थी क्योंकि सब पानी में डूब गया था। यही हाल मवेशी के चारे का भी था. गाँव में कुछ नावें थीं और बाद में एक-आध नाव सरकार की तरफ से भी मिल गयी थीं। गाँव के बहुत से लोग मिल कर इन नावों से चार कोस दूर मंदिर पर मनौती मानने के लिये चले गये थे कि भगवान बाढ़ से हमारी रक्षा करें। उस साल बाढ़ का पानी एक महीने से ज्यादा टिक गया था। नाते-रिश्ते और दोस्त-मित्र जिनके यहाँ बाढ़ नहीं आयी थी उन लोगों ने हम लोगों की बहुत मदद की थी। रबी में फसल हो गयी थी क्योंकि नदी के पानी ने परेशान तो जरूर किया पर जो ताज़ी मिट्टी खेतों पर पड़ गयी थी उसने फायदा भी कम नहीं हुआ था।

सरकार ने जब नाव का इंतज़ाम कर दिया तब उससे भी सहूलियत हो गयी थी मगर रिलीफ मिलने में बहुत देर हो गयी थी। वैसे भी उन दिनों तो सरकार अपने दलिद्दर थी तो हम लोगों को कहाँ से देती? जो मिल रहा था वह इतना कम था कि उसको लेने या न लेने से कोई फर्क नहीं पड़ता था इसलिये लोग रिलीफ लेने भी नहीं जाते थे। बहुत लोगों ने रिलीफ लेने से मना कर दिया था कि इज्ज़त भी गंवायें और कुछ हासिल भी न हो।

श्री परमेश्वर सिंह

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