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कोसी नदी अपडेट - 1967 में बिहार बाढ़, सुखाड़, अकाल

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • November-19-2019
पिछले दिनों बाढ़, सूखे, अकाल की तलाश मुझे सारण जिले के महात्मा गांधी विद्यापीठ, जलालपुर, जिला सारण के संरक्षक और पुराने समाजकर्मी 86 वर्षीय विजय भाई के पास ले गयी. उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश यहाँ उद्धृत हैं.

1966-67 में बिहार में भीषण अकाल पडा था. बिहार में महामाया बाबू की सरकार थी. जय प्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में बिहार रिलीफ कमिटी का गठन हुआ. हालत ऐसी हो गई थी कि देहाती क्षेत्रों में लोगों पर खासकर नज़र रखनी पड़ती थी कि कोई भूख से न मर जाए. लगातार दो साल सूखा पड़ने के कारण लोगों के लिए भोजन की समस्या खड़ी हो गई थी, पानी की समस्या विकट हो गई थी. हालात इतने बुरे हो गए थे कि इस बार सरकार को विधिवत अकाल की घोषणा करनी पड़ी थी. यह बात सच है कि महामाया बाबू समाजवादी विचारधारा के संवेदनशील व्यक्ति थे अगर वह सत्ता में नहीं भी होते और किसी और की भी सरकार रही होती तो इस अकाल को तोला जाना संभव नहीं था. महामाया बाबू ने कुछ अकाल की घोषणा कुछ पहले कर दी थी बस इतना ही फर्क था.

इस परिस्थिति में बिहार रिलीफ कमिटी की तरफ से गाँवों में खासकर मुफ्त भोजन के केंद्र चलाये गए. जहां जहां राहत केंद्र था वहां वहां खाने वालों की लाइन लगती थी. संयोग से जेपी ने मुझे सारण में बिहार रिलीफ कमिटी का प्रभारी बना दिया था तो मैंने उस समय सारण जिले के पश्चिमी क्षेत्र में सघन रूप से काम किया. उसके बाद कई दूसरी संस्थाएं भी राहत काम में जुटीं. कैथोलिक रिलीफ कमिटी की तरफ से अनाज दिया जाता था. उनके द्वारा गाँव-गाँव में सेंटर बना कर गेहूं, मसूर, दलिया दूध आदि बंटता था. यहाँ उनका सामान हमारे माध्यम से बंटता था. कहीं-कहीं भारत सेवक समाज के माध्यम से बंटता था. ऐसी कई संस्थायें उनकी मदद में थीं. मेरा संपर्क भारत सेवक समाज से भी था. बड़ा ही दर्दनाक दृश्य हुआ करता था. अच्छे-अच्छे घरों के लोग भी लाइन लगा कर रोटी लेते थे.

बाद में जेपी ने सिंचाई का प्रबंध भी करने का कार्यक्रम चलाया. इसके लिए कैविटी बोरिंग का काम शुरू किया गया. उस समय जेपी के प्रभाव से हमारी मदद करने के लिए जापान से इंजिनियर आये थे और उनके साथ मशीनें भी आई थीं . उसके पहले खुली बोरिंग हुआ करती थी मगर उसमें हमें सफलता नहीं मिली. चार हजार से ज्यादा कैविटी बोरिंग तो हमने बिहार रिलीफ कमिटी की तरफ से सारण और आज के सीवान जिले के क्षेत्र में लगवाई थी. 1967 के बाद भी कई वर्षों तक यह काम चलता रहा क्योंकि यह सूखा ही नहीं था, यह तो दुर्भिक्ष था. दुर्भिक्ष यानी जब माँगने पर भी भीख ना मिले, ऐसी हालत हो गयी थी.

सरकार भी अपनी तरफ से राहत का काम कर रही थी पर उसका हम लोगों जैसी संस्थाओं से अच्छा सामंजस्य था. सामंजस्य नहीं होता तो सरकार के अकेले का बस नहीं था कि वह इतनी बड़ी आबादी को भोजन दे पाने का इतना बड़ा काम कर लेती. सरकार के अधिकारी जैसे बी.डी.ओ.और अन्य अधिकारी हम लोगों से संपर्क रखते थे. सरकार की तरफ से बिहार रिलीफ कमिटी को कोई अनुदान नहीं मिला था. कमिटी के पास जो भी संसाधन जुटा वह तो जेपी की अपील के प्रत्युत्तर में देश-विदेश से मिला था. बाद में जो ट्यूबवेल बोरिंग का काम किसानों के लिए शुरू किया गया उसमें कुछ तो सरकार की तरफ से अनुदान दिया जाता था और अगर किसान के पास पैसा कम पड़ जाता था तो उसको बैंक से क़र्ज़ दिया जाता था.

हमारे यहाँ एक परिवार का एक आदमी भूख से मर गया, यहीं जलालपुर प्रखंड के एक गाँव मंगलापुर में जो नोनियां लोगों का गाँव है. हम लोगों को जब इसकी सूचना मिली तो जिलाधिकारी को संपर्क किया गया. उनको खबर मिली तो अनुमंडल अधिकारी की टीम रातों-रात उस गाँव में पहुंची. हम लोग भी गए. उस घर की तलाशी ली गई तो ऊपर एक मिटटी के बर्तन में कुछ मकई मिली और घर में कुछ बर्तन थे भर थे. अधिकारी का कहना था कि यह परिवार बरतन बेच कर तो कुछ खाने का सामान ले ही सकता था. ऐसा तो नहीं था कि उसके पास कुछ था ही नहीं. फिर मकई भी तो थी उनके पास. तब मर कैसे गया? इसलिए इसको भुखमरी नहीं कहा जाएगा. यह अधिकारी का तर्क था. हम लोगों ने बात रखी कि बरतन इतना तो नहीं था कि उसे बेच कर भोजन खरीदने भर पैसा उसे मिल जाता. सवाल यह भी था कि अगर वह बरतन बेचना भी चाहता तो उसे खरीदने वाला कौन होता? रही मकई की बात तो वह तो टांड़ पर हंड़िया में रखी हुई थी और मुमकिन है यह आदमी भूल गया हो कि उसके पास मकई है या फिर उस मकई को बीज के लिए रखा हो. खैर, यह बात अधिकारी की समझ में आ गई और उसने परिवार को पच्चीस किलो आटा दिया जो वह अपने साथ लेकर आये थे. हम लोगों ने भी उस परिवार की अगले दिन कुछ मदद की.

"यह घटना तो हमारे सामने हुई इसलिए हम इसे जानते हैं पर सारण जिले में अट्ठारह सौ गाँव हैं, सबकी खबर हमें रखना या मिल पाना तो संभव नहीं था फिर भी अपने स्तर से हम जो कुछ भी कर सकते थे किया जरूर."


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