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कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, 1968 में कोसी के पश्चिमी तटबन्ध का टूटना

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • October-05-2021

1968 में कोसी के पश्चिमी तटबन्ध का टूटना


आज 5 अक्टूबर है, आज के ही दिन 1968 में कोसी नदी का अब तक का सर्वाधिक प्रभाव 9.13 लाख क्यूसेक हो गया था। जब यह पानी बीरपुर बराज पहुंचा तो बराज के सारे 56 फाटक एक साथ खोल देने पड़े थे क्योंकि इतना पानी आ जाने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कोसी नदी में तब तक का सबसे ज्यादा प्रवाह 1954 में देखा गया था जबकि कोसी कैद न होकर पूरी तरह आजाद थी और उस समय भी यह 8.54 लाख क्यूसेक तक ही सीमित था। अब कोसी बराज के ऊपर और नीचे दोनों तरफ नदी पर तटबन्ध बने हुए थे जिनकी इस प्रवाह के सामने परीक्षा होने वाली थी।

उस समय राज्य में राष्ट्रपति शासन था और स्थानीय सरकार नहीं थी। इस मसले पर बहस लोकसभा में 21 नवम्बर, 1968 को हुई और वहां मोर्चा सम्भाला सहरसा से सांसद गुणानंद ठाकुर ने, जिनका गुस्सा थमने का नाम ही नहीं लेता था। उनका कहना था कि, "शुरू से हम लोग कोसी में रह गये और डॉक्टर राव (डॉ. के.एल. राव उस समय केन्द्रीय सिंचाई मंत्री थे और कोसी पर तटबन्धों के निर्माण में निर्णायक भूमिका में थे) की कृपा से सदा के लिए कोसी पीड़ित बना दिये गये। जो कोसी योजना बनी उसके लिये तो हम सरकार को बधाई देते हैं लेकिन जो सरकारी आंकड़े हैं, सरकार ने जो कोसी तटबंध के भीतर 300 गांवों के 3.50 लाख लोगों को सदा के लिये उनकी किस्मत पर छोड़ दिया है, उसकी हमें बड़ी चिंता है। किसी भी जनतांत्रिक सरकार को इसके लिए शर्म और लज्जा आनी चाहिये।"

ठाकुर का यह आक्रोश बाजिब था क्योंकि वह खुद तटबन्धों के बीच सहरसा जिले के बनैनिया गांव के रहने वाले थे। कोसी योजना में पुनर्वास का काम बड़ी मंथर गति से चल रहा था और उसमें भी बहुत से परिवार पुनर्वास में जाकर वापस तटबन्धों के अन्दर अपने पैतृक गांव चले आये थे। ऐसे लोगों की हालत अब सांप छछूंदर जैसी हो गयी थी। घर छोड़ कर पुनर्वास में गये और वह रास नहीं आया तो फिर अपने गांव तटबन्धों के बीच लौट आये। उन पर तटबन्धों की वजह से कोसी की सरकारी मार पड़ी और सरकारी चीजें मान्यता प्राप्त होती हैं मगर दुर्योग और विपत्ति के समय सरकार बड़ी विनम्र होती है। उसी विनम्रता में सरकार ने तटबन्ध टूटने की जिम्मेवारी खालिस लखनवी अन्दाज में अदना से चूहों और लोमड़ियों के नाम कर दी, जो तटबन्धों में अपने बिल बना दिये करते हैं।


इस दुर्घटना की जांच करने के लिए केंद्रीय जल आयोग के एक इंजीनियर कुमरा साहब भेजे गये जिन्हें पश्चिमी कोसी तटबन्ध में जमालपुर के पास पड़ी पांच दरारों का अध्ययन करके उसके कारणों पर रिपोर्ट और इस दुर्घटना के लिये कौन जिम्मेवार था, यह तय करना था।

कुमरा साहब ने जो रिपोर्ट दी थी उस पर भी गुणानंद ठाकुर जम कर बरसे और कहा कि बहुत से संसद सदस्य उस इलाके में घूमे हैं और देखा है कि कोसी से कैसी बर्बादी हुई लेकिन कुमरा साहब जब तटबन्ध टूट गया उसके पांच दिन बाद वह रिपोर्ट करते हैं और कहते हैं कि सियार के छेद से सरकार की यह योजना फेल कर गई पांच जगह। जरा बहानाबाज़ी देखिये। दरभंगा जिले की लाखों की पापुलेशन खत्म हो गयी, हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गयी, पांच जगह सियार के छेद से तटबन्ध का यह हाल हो गया।

गुणानंद ठाकुर ने डॉक्टर के.एल. राव को भी नहीं बख्शा और कहा कि जैसा कि हम जानते हैं तटबन्ध बनने के पहले कोसी अनेक धाराओं से होकर बहती थी। उस समय परेशानी यह थी कि नदी की कौन सी धारा मुख्यधारा बन जायेगी इसका अंदाज नहीं हो पाता था मगर इतना जरूर होता था कि बहुत सी धाराओं में बहने के कारण नदी की मारक शक्ति घट जाती थी। तटबन्धों के निर्माण ने नदी को वह ताकत दे दी है।

ठाकुर ने आगे कहा कि 1954 में 8.15 लाख क्यूसेक तक बाढ़ का पानी आया था और अबकी बार 1968 में जो बाढ़ आई उसमें 9.13 लाख क्यूसेक पानी आ गया। आप स्वयं अंदाजा कीजिये कि उस 8.15 लाख क्यूसेक पानी में, जबकि तटबन्ध नहीं बना था, पूरा दरभंगा और सहरसा जिला बर्बाद हुआ था। अब जबकि 9.13 लाख क्यूसेक पानी 10 मील (16 किलोमीटर) के अंदर आ गया है तो उसके परिणाम स्वरूप वहां के बसने वालों की कैसी दुर्दशा हुई होगी? क्या गारंटी है कि वहां पर 10 लाख क्यूसेक पानी नहीं आ सकता है? क्या राव साहब ऐसी गारंटी दे सकते हैं?


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