1963 - जब पहली बार कमला नदी का नवनिर्मित तटबन्ध मधेपुर प्रखंड, जिला दरभंगा में 2 अगस्त के दिन स्थानीय लोगों द्वारा काटा गया।
बिहार की बाढ़ और सुखाड़ का इतिहास लिखते समय हमने समाचार पत्रों में बहुचर्चित इस घटना की जानकारी एक प्रत्यक्षदर्शी श्री राम खेलावन मण्डल (आयु 73 वर्ष), ग्राम प्रसाद टोले खैरी, प्रखंड मधेपुर, (तब जिला दरभंगा) से ली। उन्होनें जो कुछ हमें बताया उसे हम नीचे उद्धृत कर रहे हैं।
1963 में कमला का बाँध जो यहाँ काटा गया था, उस समय मैं 11वीं कक्षा में जवाहर उच्च विद्यालय, मधेपुर में पढ़ता था। हमारा स्कूल हमारे गाँव से कोई चार-पाँच किलोमीटर होगा। हमारे स्कूल में भी उस साल तीन फुट पानी भर गया था। हुआ यह था कि कमला नदी पर तटबन्ध बन जाने से गेहुमाँ नदी, जो कमला में आकर मिलती थी, का मुहाना बन्द हो गया था और उसका पानी अगल-बगल और पीछे की ओर फैलने लगा था, जिसकी चपेट में बहुत से गाँव आ गये थे और वहाँ भीषण जल-जमाव हो गया था। धान की फसल भी डूब गयी थी। तब आसपास के पचही, प्रसाद, खजुरा, खैरी, फैटकी, उमरी और बलिया गाँव के लोगों ने आपस में मिल कर तय किया कि कमला के तटबन्ध को काट दिया जाये तो यह पानी निकल जायेगा और इन गाँवों के लोगों के सहयोग से इस बाँध को काटा गया था।
जब यह तटबन्ध बन रहा था तभी यहाँ के चार्ज में जो इंजीनियर था, वह यहाँ के गाँव के लोगों से कहता था कि आप लोग इस बाँध के निर्माण का विरोध कीजिये। यह बाँध नहीं होना चाहिये। बाँध बनने के बाद कमला नदी की पेटी ऊपर उठेगी, पानी का लेवल बढ़ जायेगा और आपकी जमीन नीचे चली जायेगी। कमला यहाँ देने के लिये आयी है, लेने के लिये नहीं आयी। उस समय आप लोग परेशान हो जाइयेगा। उस समय तो उनकी सलाह किसी ने नहीं मानी मगर यह परेशानी 1963 में सचमुच यह हुआ और बाँध को पानी की निकासी के लिये काटना ही पड़ा।
बाद में प्रशासन ने उस इलाके को घेर कर पुलिस लगा कर बाँध को बंधवा दिया था। तब इसका विरोध गाँव वाले नहीं कर पाये क्योंकि प्रशासन और पुलिस से तो सब डरते ही थे। उस समय तटबन्ध मेँ फाटक नहीं बना था, वह बाद में बना। बाँध काटने का नेतृत्व श्यामानन्द झा कर रहे थे और इसके पीछे उनके चाचा हक्कर झा लगे हुए थे। उनका परिवार हमारे ही गाँव का था। बाँध जब काट दिया गया तो 50-60 लोगों के खिलाफ नामजद एफ.आई.आर. थाने में की गयी और हजार-पाँच सौ अज्ञात लोगों का हवाला भी इस रिपोर्ट में दिया गया था।
उस समय हमारे यहाँ के मुखिया जमीर अहमद कुरेशी हुआ करते थे। वह एकदम ठोस आदमी थे और उन्होंने बाँध काटने वालों की जमानत अपने प्रभाव से करवा ली थी। थाना-पुलिस सब हुआ था लेकिन कोई जेल नहीं गया। हमारे गाँव प्रसाद के ही जानकी नन्दन सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे जो बाद में विधायक और मंत्री भी बने। वह भी बहुत प्रभावशाली थे और उनकी वजह से हम लोगों को थोड़ी सहूलियत हो गयी थी। उसके बाद अगर कभी बाँध कहीं टूट जाये तो यहाँ विभाग अपनी जान बचाने के लिये कुछ लोगों पर एहतियातन एफ.आई.आर. करवा दिया करता था कि बाँध टूटा नहीं है, लोगों ने काट दिया है।
बाँध जब काट दिया तो गेहुमां का पानी कमला में होता हुआ चला गया। हम लोगों की धान की फसल का उस साल नुकसान हो गया था क्योंकि गेहुमाँ के पानी के लम्बे समय तक बाहर रह जाने के कारण फसल डूब गयी थी मगर उसके पानी के साथ खेतों में जो नयी मिट्टी पड़ गयी थी तो रब्बी की बहुत अच्छी खेती उस साल बिना खाद पानी के हुई थी और बाँध काट देने के बाद पानी भी सूख गया था। रब्बी की सफलता से बहुत से लोग, जो खेती नहीं करते थे, वह भी किसान बन गये थे। हमारे यहाँ से तो बाँध काट देने के बाद जल-जमाव घट गया लेकिन वह बगल के भगवानपुर पर चोट करने लगा।
वहाँ के लोगों ने भी कई साल तक इसे बर्दाश्त किया पर बाद में उन लोगों ने भी बाँध को काटा। "नवटोल, झंझारपुर, गंगापुर, बेलही, गुणाकरपुर, खैरी, फैटकी, भगवानपुर" आदि में यह बाँध टूट चुका है या काटा जा चुका है। बाँध जब टूट जाता है तो बाहर की कंट्रीसाइड की जमीन को नदी की मिट्टी/बालू से पाट देता है और वह ऊँची हो जाती है। तब बाढ़ का पानी दूसरे गाँव का रास्ता पकड़ता है। पानी रास्ता तो खोज ही लेता है पर उसका इलाका बदल जाता है।
अभी हालत यह है कि बाँध अगर टूटेगा तो नदी का पानी हमारे गाँव में आयेगा लेकिन यहाँ मिट्टी भर जाने से दूसरी ओर चला जायेगा। साथ ही बाहर का पानी अब कमला में नहीं जायेगा क्योंकि उसकी पेटी ऊपर उठ गयी है।
अनिश्चितता का यह दौर अब हमारी आदत बन चुकी है।
श्री राम खेलावन मंडल