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कोसी नदी अपडेट : 1975 की बाढ़ - पूर्व मुख्य सचिव श्री वी. एस. दुबे से की गयी बातचीत के अंश, भाग - 2

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • November-08-2019
पिछले साल 1975 की पटना की बाढ़ के बारे में पटना के तत्कालीन जिलाधिकारी और बाद में बिहार के मुख्य सचिव बने श्री वी. एस. दुबे से मेरी बातचीत के कुछ अंश.

गाँधी मैदान में पानी था मगर अशोक राज पथ और कारगिल चौक के पूरब का इलाका बचा हुआ था. पुलिस के जवानों को उधर भेजा गया कि अगर कोई टेलिफोन काम करता हो तो उससे जहां– जहां से साम्पर्क हो सकता हो वहाँ से हाल-चाल का पता लगायें. रेडियो स्टेशन की हालत यह थी कि 26 अगस्त को उसमें भी पानी भर गया था. उस दिन साढे आठ बजे रेडियो स्टेशन से आखिरी घोषणा की गई कि रेडियो स्टेशन में पानी भर गया है और और अब यहाँ से अगली सूचना तक कोई घोषणा नहीं होगी. अगले दिन रेडियो स्टेशन को जैसी भी हालत में फतुहा स्थानांतरित किया गया. 26 अगस्त की रात भर तो हम लोग घूम ही रहे थे तो रेडियो स्टेशन के पास उसके डायरेक्टर मिल गए. उनका कहना था कि कुछ आदमी अगर मिल जाएँ तो हम रेडियो स्टेशन शिफ्ट करके कहीं और ले जाएँ ताकि प्रसारण शुरू हो सके. मेरे पास वह पुलिस वाले थे मैंने उन्हें कुछ खाने के सामान दे दिए और रेडियो स्टेशन के डायरेक्टर की मदद में लगा दिया. अगले दिन रेडियो स्टेशन फतुहा चला गया. वहाँ से हमें बाढ़ के बारे में घोषणा करना संभव हो सका. रेडियो तो कितना काम कर रहे होंगे कह पाना मुश्किल था मगर जिनके पास ट्रांजिस्टर था उनको खबर मिलने लगी.

पटना एयरपोर्ट पर पानी था जहां से हेलीकाप्टर न तो उतर सकता था और उड़ सकता था. हेलीकाप्टर होते हुए भी उनका उपयोग संभव नहीं था. सबसे नज़दीक हेलीकाप्टर लखनऊ में था. सेना के अधिकारियों ने कहा कि वह लखनऊ से हेलिकोप्टर मंगा सकते हैं. 26 अगस्त को 6-7 हेलीकाप्टर लखनऊ से पटना आ गए मगर यहाँ परिस्थितियाँ उनके उतरने लायक नहीं थीं. तब हमने साइंस कॉलेज में उनके उतरने की आनन-फानन में व्यवस्था करवाई क्योंकि वही एक जगह थी जहां उन्हें उतारा जा सकता था. उसके बाद राहत कार्य संभव हो सका. फिर सेना की नावें भी आने लगीं मगर उनके साथ दिक्कत यह थी कि उनको पानी कि एक निश्चित गहराई चाहिए और शहर में वह हर जगह उपलब्ध नहीं भी हो सकती थी. कम पानी में यह नावें अटक जा सकती थीं. तब तय हुआ कि जहां पानी कम है वहाँ इनकी मशीनें खोल ली जाएँ और फिर ठेल कर या खींच कर इनका उपयोग हो. तब पूरे शहर में नावों को फैला दिया गया.

फिर एयरड्रोपिंग शुरू हुई. शहर में सिर्फ कचहरी और साइंस कॉलेज के पास ही सूखी ज़मीन थी. हम जितनी भी खाद्य या अन्य आवश्यक सामग्री इकठ्ठा कर सकते थे उसे इन दोनों जगहों पर इकठ्ठा करना शुरू किया और उनकी पैकिंग करवा कर नाव से या हेलीकाप्टर से गिराना शुरू हुआ. एयरड्रोपिंग बंद न होने पाए इसका पूरा पूरा प्रयास किया. इसी तरह राहत सामग्री का संचय हमें गंगा पार मुज़फ्फरपुर में भी शुरू करवाया. सोनपुर के बच्चा बाबू की बार्ज उन दिनों गंगा में चला करती थी. उनसे कहा गया कि वह जो भी सामान नदी के उस पार इकठ्ठा होता है उसे इस पार कचहरी या साइंस कॉलेज के पास लाने का प्रबंध करें. वह मान गए और तब सामान गंगा पार से भी पहुँचना शुरू हो गया.

एयरड्रोपिंग की हालत यह हो गई कि एक-एक दिन में एक हेलीकाप्टर 10-12 टन सामान प्रभावित क्षेत्र में गिरा रहा था.इस दक्षता से राहत सामग्री पहुंचाने का काम पहले शायद ही कभी हुआ हो. एक ही दिक्कत थी कि हेलीकाप्टर को हवा में स्थिर कर पाना मुश्किल था और इसमें खतरा था. इसलिए वह उड़ते-उड़ते ही सामान गिरा सकता था और इसलिए हमारा कुछ सामान पानी में गिर कर बर्बाद भी हुआ. बाद में हमने इसे पॉलिथीन में का इंतजाम करके पैक करना शुरू किया. 26 से 29 अगस्त तक यही आलम था.

जेपी उस समय जेल में थे और उन्होनें वहीं से अपील जारी की कि इस विपत्ति के समय सभी लोग मिलजुल कर उसका मुकाबला करें. उन्होनें सभी कलक्टरों से भी अपील की थी कि वह यथाशक्ति एक दूसरे की दहायता करें ताकि पटना के बाढ़ पीड़ितों की मदद हो सके. मैं उनको साधुवाद देता हूँ कि उनकी अपील का सभी लोगों पर अच्छा असर पड़ा. लोगों ने आपस में राहत सामग्री बांटी क्योंकि उनको भी भरोसा था कि दो-तीन घंटे के बाद मदद की अगली खेप आती होगी. आर.एस.एस. के बहुत से वालंटियर हमारे साथ आ गए थे जिनको हमने सर पर रख कर राहत सामग्री के साथ उन इलाकों में भेजा जहां न तो हेलीकाप्टर और तो नावें पहुँच सकें. उन्होनें यह काम बखूबी किया. पता नहीं इस संस्था के प्रति लोगों में इतना नकारात्मक विचार क्यों है?

तार्पौलीन राहत सामग्री की सबसे विवादास्पद सामग्री है. इस पर हाथ लगाइयेगा तो आप की आलोचना होगी और हो सकता है कि जांच भी बैठा दी जाय. भाग्यवश और समाज के सभी तबकों की मदद से हमलोग इसकी आपूर्ति से लेकर बटवारे तक इसे वितरित कर पाए और इसकी कमी नहीं होने दी. तार्पौलीन वितरण को लेकर कोई लांछन प्रशासन पर नहीं लगा. बिन्देश्वरी दुबे उस समय स्वास्थ्य मंत्री थे. उन्होनें अपने विभाग के डाक्टरों को संगठित कर के शहर के हर चौराहे पर टीका लगाने, डाक्टरी सुविधा मुहय्या करने और दवाओं का प्रबंध 27 अगस्त से करवा दिया था. दवाओं और इंजेक्शन की कोई कमी प्रशासन ने नहीं होने दी. बहुत सी दवाएं बाहर से भी हमें मिल गई थीं.

शुरू-शुरू में पटना रेलवे स्टेशन पर गाड़ियों का आना-जाना बंद था मगर यह शीघ्र ही ढर्रे पर आ गया. तब हेलिकोप्टरों के उपयोग में हमें थोड़ी सहूलियत हो गई. पानी घटने के साथ-साथ पूरे देश, विशेषकर हरयाना और पंजाब से हमें राहत और जरूरी सामग्री आना शुरू हुआ. इसमें भोजन सामग्री, महिलाओं और बच्चों के कपडे, दवाइयां आदि सब कुछ शामिल था. ट्रक के ट्रक चना, सत्तू, चूड़ा आदि आना शुरू हुआ. पंजाब के लोगों, आर.एस.एस., रामकृष्ण मिशन, भारत सेवाश्रम संघ, रेडक्रॉस, कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने हमारी बड़ी मदद की. अब हमारे सामने समस्या आने लगी थी कि इतना सामान कहा रखें? एक समय बनारस, रांची, धनबाद, मुजफ्फरपुर आदि न जाने कितनी जगहों से पूरी-सब्जी के अनगिनत पैकेट आते थे, हरयाणा और पंजाब से उनकी बड़ी-बड़ी रोटियों के पैकेट आते थे जिन्हें लेने में स्थानीेय लोग संकोच करते थे. बाद में हमें सबको धन्यवाद देते हुए कहना पडा कि अब हम स्थिति को खुद सम्हाल लेने की स्थिति में आ गए हैं और अब और अधिक सामान न भेजें. फिर भी यह सिसिला 20-22 दिन तक चलता रहा.

मैं और गोपालाचारी दोनों ही 30 साल की कम उम्र के थे. वह जोश वाली उम्र थी और खतरा उठा सकने वाली उम्र थी. अब वही काम करने के लिए कहिये तो शायद हम नहीं कर पायेंगें, अब उतना उत्साह भी नहीं है. जहां तक मेरी जानकारी है पटना की इस बाढ़ में कोई मरा नहीं था. घर गिर जाने से कोई उसमें दब गया हो या ऐसी ही किसी दूसरी दुर्घटना में कोई मरा हो तो अलग बात है. कोई चोरी-डकैती या छिनताई की खबर नहीं थी. सबको डर था कि हो सकता है एस. पी. या कलक्टर यहीं कहीं पास में न हो. वीमेंस कॉलेज की चारदीवारी 25 अगस्त की रात में ही ढह गई थी. हम लोग उस समय उसी इलाके में थे पर वहाँ अटकी लड़कियों से कोई बदसलूकी की कोई घटना हुई हो ऐसा सुनने में नहीं आया.

क्रमशः

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