बाढ़ पूर्व चेतावनी का सच - भाग 2
मेरा एक बार आपदा प्रबन्धन की एक किसी मीटिंग में दिल्ली जाना हुआ जिसमें विषय से संबंधित बहुत दिग्गज लोग इकट्ठे हुए थे। बहस चल रही थी कि बाढ़ की पूर्व सूचना कैसे दी जाये। जहां तक इस मसले पर बिहार का सम्बन्ध है इसकी सूचना का केन्द्र नेपाल से शुरू होता है और वहां से सूचनाएं दिल्ली आती हैं, फिर वहां से राज्य से जिले को और जिले से प्रखंड को और वहां से थाने और मुखिया को संवाद भेजा जाता है जहां से वह गांव तक पहुंचता है।
इस स्तर पर मेरा प्रश्न था कि नदी के किनारे के ग्रामीण क्षेत्रों को अगर किसी तरीके से नदी का पानी कितनी देर में उनके गांव तक पहुंचेगा उसकी सूचना मिले तो यह उनके हक में बेहतर होगा। क्योंकि एक साधारण ग्रामीण को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपके पिछले गेज नापने वाले स्टेशन पर नदी का जलस्तर कितना है या वहां सबसे अधिक प्रवाह किस साल आया था या वहां कितने क्यूसेक या क्यूमेक पानी जा रहा है। उसे सिर्फ इतनी जानकारी चाहिए कि उसके गांव में पानी कब और कितना आ रहा है और उसे अपने घर का जरूरी सामान, बच्चों, महिलाओं, बूढ़े बुजुर्ग लोग और जानवरों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचने के लिये कितना समय मिल रहा है। नदी में पानी के प्रवाह की मात्रा कितनी है, वहां खतरे के निशान का लेवल कितना है और पानी उसके कितना बह रहा है? उससे बाढ़ का दुष्प्रभाव भोगने वाले व्यक्ति का कोई खास वास्ता नहीं होता। उसके लिये बचाव के लिये उपलब्ध समय ज्यादा मूल्यवान है। गोष्ठी में सरकार के एक बहुत ही अनुभवी और विद्वान आदमी जिनमें एक महकमे के मुखिया भी थे उन्होंने कहा कि जलस्तर का पता लग जाने पर इन सभी बातों का अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है क्योंकि उसके लिये चार्ट बने होते हैं और उसे देख कर इनकी भविष्यवाणी की जा सकती है। मैंने पूछा कि वह चार्ट कहां उपलब्ध है और क्या वह हमको अपने गांव के स्तर पर उपलब्ध हो सकता है? तब उनका कहना था कि यह सूचना गोपनीय होती है और हर किसी को नहीं दी जा सकती। मेरा प्रतिप्रश्न था कि नदी के पानी का लेवल और उसके प्रवाह का नदी के किनारे बसे गांव के लिये क्या महत्व रह जाता है अगर उसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचने के लिये उपलब्ध समय की जानकारी न हो?
उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं किस डिपार्टमेंट में काम करता था? मैंने कहा कि मैंने कभी नौकरी नहीं की है। उनका उत्तर था कि आप इसलिये सरकार की कार्यपद्धति को नहीं जानते। मैंने पूछा यह साधारण सी सूचना को गोपनीय बनाने के पीछे क्या रहस्य है उनका कहना था कि अगर आप वहां रहे होते तो आप इस बात को समझते।
मैंने उनसे बहस करना बेकार समझा और जहां तक मेरी जानकारी है कि मेरे लिए किसी भी निर्दिष्ट स्थान पर नदी के जलस्तर या प्रवाह का कोई महत्व नहीं है। मेरे लिये ज्यादा महत्वपूर्ण है कि मुझे कितना समय मिलता है कि मैं अपने जरूरी सामान परिवार के लोगों और जानवरों को हटा कर वहां से किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाऊं। यह मामूली सी बात सरकारी दफ्तरों में बैठे हुए लोगों को कैसे समझाया जाये? प्रश्न यह है कि सूचना जब दिल्ली से चलती है और हमारे थाने या प्रखंड के बी.डी.ओ. से होती हुई हमारे पास पहुंचती है तो उसके रास्ते में जितने पड़ाव पड़ते हैं वहां अगर एक भी आदमी अपनी कुर्सी पर सही समय पर मौजूद न हो और सूचना वही अटक जाये तब मेरा मेरे गांव और परिवार का क्या होगा यह किसी के समझ में आता है क्या? तब कैसी सूचना और कैसा आपदा प्रबन्धन?