जल-जमाव से त्रस्त गांव की कहानी
1956 सितम्बर महीने में बिहार में बहुत भीषण वर्षा हुई थी, जिससे पूरे प्रान्त में काफी क्षति हुई थी। इस साल इस साल शाहाबाद जिले के बक्सर अनुमण्डल में बरुणा स्टेशन के पास दक्षिण की पहाड़ियों से दुर्गावती, काव, ठोरा, भैंसहा आदि कई नदियों का पानी हावड़ा-मुग़लसराय रेल लाइन पर आकर अटक गया था। यह पानी बगल के बरुणा समेत की गाँवों में फैल गया था। इन गाँवों के बाशिंदों ने आजिज आकर रेल लाइन को काट देने का निर्णय लिया क्योंकि उनका जीवन खतरे में आ गया था। हमने बरुणा गाँव के एक बुजुर्ग श्री अग्नि सिंह से इस घटना के बारे में जानकारी हासिल की। उन्होनें जो कुछ भी बताया हम उसे उद्धृत कर रहे है।
हमारा गाँव बरुणा, प्रखंड और जिला बक्सर मुगलसराय-हावड़ा रेल लाइन पर बरुणा रेलवे स्टेशन से लगा हुआ दक्षिण की ओर स्थित है। 1956 में मैं तो एक तरह से बच्चा ही था। उस समय 15-16 साल की उम्र रही होगी। उस साल यहाँ दक्षिण के पहाड़ों की तरफ से दुर्गावती, काव, ठोरा, भैंसहा आदि नदियों का पानी हमारे गाँव की तरफ भयंकर रूप से आया था। गाँव के बगल से यह रेल लाइन गुजरती है। जिसकी वजह से बरुणा गाँव के साथ-साथ चौसा, बनारपुर आदि गाँव भी उस पानी में फँसे थे। रेल लाइन के उस पार उत्तर तरफ गंगा का कछार पड़ता है और यह सारी नदियाँ उसी दिशा में जाती हैं।
उस साल पानी इतना आया था कि कर्मनाशा और सोन का फैला हुआ पानी भी किसी न किसी तरह से उसमें मिल गया था और दो पोरसा (दो पुरुष जितना ऊँचा) पानी गाँव में आ गया था। हमारा गाँव निचाट में है, इसलिये पानी तो अभी भी हर साल आता है और उससे निपटने की तैयारी सभी लोगों की रहती है। गाँव की कुछ जमीन ऊँची भी है, जहाँ इन नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है। बरसात के मौसम में जरूरत पड़ने पर वहीं डीह पर लोग शरण लेने के लिये चले जाते हैं। हमारे यहाँ इस रेल लाइन में एक मील के अन्दर आसपास में 27 पुल हैं, जिनकी चौड़ाई 20 फुट तक है। इसी से आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि साधारण समय में भी यहाँ कितना पानी आ जाता होगा। एक पुल में यहाँ अभी भी 1956 की बाढ़ का लेवल दिया हुआ है।
भारी बारिश के बाद दक्षिण से इन नदियों का पानी आना शुरू हुआ और गाँव में प्रवेश करने लगा। कुछ घर भी गिरे। उन दिनों ज्यादातर घर मिट्टी के हुआ करते थे। परेशानी केवल हमारे गाँव की ही नहीं थी बल्कि चौसा, बनारपुर आदि गाँवों समेत पूरा जवार उसकी चपेट में था। सारे पानी की निकासी का रास्ता हमारे गाँव से ही होकर जाता है।
उस साल जब हमारे गाँव के घर बाढ़ के पानी से धड़ाधड़ गिरने लगे, तब सबको चिन्ता हुई कि यह जो मुगलसराय-हावड़ा रेल लाइन है। वही पानी को रोक कर रखती है। तब गाँव के लोगों ने यह तय किया कि चल कर लाइन को काट देते हैं तो पानी बह कर गंगा जी में चला जायेगा। गाँव जितना तबाह होना था हो गया, अब इसे और तबाह नहीं होने देंगे। तब लोग अपना-अपना औजार लेकर स्टेशन के पास रेल लाइन काटने के लिये आ गये। प्रशासन को खबर हो गयी थी कि ऐसी तैयारी हो रही है। रेल प्रशासन को तो खबर मिल ही गयी थी।
14 सितम्बर के दिन ग्रामीण और प्रशासन आमने-सामने आ गये। तब डाउन लाइन पानी के दबाव से बैठ चुकी थी और केवल अप लाइन काम कर रही थी। दोनों तरफ की गाड़ियों को उसी लाइन से गुजारा जा रहा था। प्रशासन के अधिकारियों ने लाइन काटने आये ग्रामीणों को समझाया कि रेल लाइन को अगर आप लोगों ने काट दिया तो पानी तो निकल जायेगा पर रेल लाइन को फिर से तैयार करने में महीनों लग जायेंगे और आवाजाही में बहुत मुश्किलें पैदा होंगी, जिसका असर आप लोगों पर भी पड़ेगा। ऐसे तो पानी पुलों के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा हफ्ता-दस दिन में निकल जायेगा। आप लोग रेल लाइन काट देंगे तो इसका असर दूसरी तरफ मीलों दूर तक पड़ेगा। वैसे भी आप लोग लाइन को तो थोड़ी दूर तक काटेंगे मगर दक्षिण से आने वाला पानी कम से कम चार किलोमीटर तक लाइन को खोखला कर देगा। इसका असर आप लोगों पर भी अच्छा नहीं पड़ेगा। जैसे-तैसे प्रशासन काटने वालों को समझाने में सफल हो गया।
रेल लाइन काटने का कार्यक्रम स्थगित हो गया। सारा मामला बातचीत से सुलझ गया और किसी प्रकार का झगड़ा-झंझट या बल प्रयोग नहीं हुआ। पुलों से तो पानी निकल ही रहा था, उसने गंगा जी की तरफ का अपना रास्ता पकड़ लिया था, ऐसा सोच कर लोग मान गये पर फिर भी हमारे गांव के कम से कम पचास घर तो गिर ही गये होंगे।
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हमारे गाँव का दक्षिण वाला हिस्सा काफी ऊँचा है, जिसे जरूरत पड़ी वह ऊँचे पर आ गया। गाँव का यह हिस्सा हमारे मुख्य गाँव से, जो निचली जमीन पर है, कम से कम दस-बारह फुट ऊपर ही होगा। जिनके घरों में पानी घुस गया या गिर गया, वह इसी ऊपर की जमीन पर आ गये और अपना जरूरी सामान और जानवर आदि को लेकर वहाँ रहने लगे थे। किसी आदमी या जानवर का कोई नुकसान नहीं हुआ था। फसल जरूर पूरी समाप्त हो गयी थी। इतने पानी में कहीं फसल बचती है? वैसी बाढ़ फिर हमारे यहाँ अब तक नहीं आयी।
सरकार की तरफ से गाँव को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली थी। तब सरकार की इतनी क्षमता भी नहीं थी और इतना संसाधन भी उसके पास नहीं था कि वह मदद करती। पानी की निकासी हमारी जरूरत तब भी थी और आज भी है पर फ़िक्र किसको है?
श्री अग्नि सिंह