60 साल तो हो गए...
20 मार्च, 1958 के दिन बिहार विधान सभा में राज्यपाल डॉ. जाकिर हुसेन के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस चल रही थी. वक्ता थे सहरसा के तुल मोहन राम.
क्या कहा था उन्होनें सुनिए, " गत वर्ष 1957 में कोसी में सिर्फ दो लाख तीस हज़ार क्यूसेक पानी आया था और तटबंधों के बीच वाली जो जनता थी उसकी हालत और भी बदतर हो गयी... बाढ़ के ज़माने में लोगों को छप्परों पर रहना पड़ रहा है महीनों तक. जितने जानवर थे वह भी मर गए, हमारी माँ और बहनें जो गर्भवती थीं उन्हें भी महीनों तक बाँध पर रहना पड़ गया. छप्पर पर से पानी बह रहा था और इन लोगों के लिए कोई सही इंतज़ाम नहीं किया गया...कोसी वालों के साथ जो वायदा किया गया था, खासकर ( तटबंधों के) बीच बालों के साथ उसे आज तक पूरा नहीं किया गया. यह बहुत ही गैर-मुनासिब बात है....सहरसा जिले की चार लाख एकड़ ज़मीन मरुभूमि बनने जा रही है.जिसको उपजाऊ बनाने के लिए अभी तक कोई योजना नहीं बनी है.सरकार को समझना चाहिए कि वहां की जनता (सरकार पर) विश्वास करके अपनी ज़मीन बिना किसी हिचकिचाहट के दे रही है.और उसके लिए वह (सरकार) कोई इंतज़ाम नहीं कर रही है... सरकार को चाहिए कि इसके लिए प्रबंध करे ताकि वह बंजर न हो जाए."
सुना है अभी भी वहाँ तटबंधों के बीच वाले लोगों के जीवन सुधार के लिए कुछ आन्दोलन चल रहे हैं.