Koshi River
  • होम
  • जानें
  • रिसर्च
  • संपर्क

कोसी नदी अपडेट - बिहार में बाढ़, सुखाड़ और अकाल, डॉ. रामदेव झा से हुयी बातचीत के अंश

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • February-21-2020
86 वर्षीय डॉ. रामदेव झा, ग्राम कबिलपुर, पोस्ट: लहेरियासराय, जिला दरभंगा से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश

1950 में पहले तो बाढ़ आई थी पर उसके बाद सूखा पड़ गया और यह लम्बे समय तक बना रहा. सत्तावन में भी भयंकर सूखा पडा था. सूखा और बाढ़ मिथिला की बहुत बड़ी आपदा है. अकाल ने दस्तक तो मिथिला में 1946 में ही दे दी थी. पंडित चन्द्रनाथ मिश्र अमर की एक रचना है ‘अल्हुआष्टक’ जिसमें अल्हुआ (शकरकंद) की अच्छी प्रशंसा की गई है और उसे पतराखन (इज्ज़त बचाने वाला खाद्य) कहा गया है. सूखा पड़ जाने पर अल्हुआ ही लोगों की जान बचाता था. यह बात अलग है कि उसे वह सम्मान नहीं मिलता था जिसका वह हकदार था क्योंकि परम्परा के अनुसार यह गरीबों का भोजन माना जाता था. आपातस्थिति में उसे सभी खाते थे मगर यह बात स्वीकार नहीं करते थे. जब भी कभी सूखा पड़ता था तब लोग अल्हुआ की फसल पर निर्भर करते थे.

वही अल्हुआ अब दुर्लभ हो गया है और देवोत्थान एकादशी के समय 60-60 रुपये किलो बिकता है. पूजा-पाठ तक के लिए अल्हुआ नहीं मिल पाता है. हमारे यहाँ इसकी खेती साल में दो बार होती थी. एक बार तो इसे कार्तिक मास में बोया जाता था और माघ में खोद कर निकाल लिया जाता था और दूसरी बार माघ में बोते थे और वैशाख मास में निकाल लेते थे. पहले वाले को माघा और दूसरे वाले को बैसाखा कहते थे. गरीबों के लिए तो यह भोजन था ही, अमीरों के लिए यह खाद्य-बीमे का काम करता था.

मड़ुआ हमारे यहां होता था पर इसको भी निम्न स्तरीय अन्न माना जाता था। इसका उपयोग भी गरीब वर्ग के लोग अधिक करते थे.

1950-52 के बीच जो भी होना था वह तो हुआ ही, सूखा राहत हमारे यहाँ 1957 तक बंटी थी. राहत सामग्री के तौर पर हमारे यहाँ गेंहू, मकई, और जनेर मिलता था. कभी कभी बाजरा भी मिलता था जिसे मिथिला के लोग जानते भी नहीं थे. बाक़ी दो चीज़ें भी बहुत प्रचलित नहीं थीं. जनेर की खेती हमारे यहाँ नहीं होती थी. उसे धान के खेत में छींट दिया जाता था और वह घास की तरह उगता था. उसका दाना हमारे यहाँ जानवरों को खिलाया जाता था जो अकाल में हम लोगों को भी खाना पड़ गया था. दो तरह का जनेर सरकार की तरफ से मंगाया जाता था, एक लाल और दूसरा सफ़ेद.

वितरण के लिए कुछ गेंहूँ भी आया था मगर जिसकी समाज में थोड़ी भी हैसियत थी और प्रतिष्ठित लोग कभी भी, राहत सामग्री लेने के लिए नहीं गए. घर में भले ही अन्न कम हो या नहीं भी हो तब भी वह लोग खैरात नहीं लेते थे. खैरात लेना मानहानि का सबब माना जाता था. गरीब लोग मजबूर थे उनके पास राहत लेने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

कपडे की हालत तो 1946 से ही बेकाबू थी. पांच गज की धोती और छ: गज की साड़ी का परमिट दिया जाता था. हमारे पिताजी कहीं से एक परमिट लेकर आये थे मगर उस कपडे को लाने के लिए 6 मील दूर जाना पडा था. लहेरियासराय के पास पिड़री घाट और छपराह घाट जैसी जगहें हैं. वहीं की दुकान से कपड़ा मिलता था. वह भी कोरा और मोटा कपड़ा होता था मारकीन का जिसे ननकिलाट कहते थे. यह वास्तव में नॉनग्लेज़्ड कपड़ा था जिसका अपभ्रंश ननकिलाट था. इस कपडे को किसी ऐसे पदार्थ में डुबो देते थे जिससे वह मोटा और खुरदुरा हो जाता था. महिलाएं भी वही कपड़ा पहनने को बाध्य थीं.

कपडे के लिए शादी-ब्याह में भारी दिक्कत आती थी, शौक़ीन और महीन कपडे खरीदने में कोई ख़ास दिक्कत नहीं थी, उसे खरीदने वाले अभिजात्य वर्ग के लोग थे और उनकी दुकानें भी अलग थीं. लहेरियासराय में एक थानमल-पाली राम की दूकान थी जहां महीन कपडे मिलते थे. बाद में उस चौक का नाम ही पालीराम चौक पड़ गया था. यह जगह आज भी उसी नाम से आबाद है. थानमल बाप थे और पालीराम बेटे. आजकल उनका कारोबार उनके पोते-पडपोते संभालते हैं.

महंगाई का आलम यह था कि हमारे स्थानीय कवि महाबीर पासवान ने एक गाना लिखा था कि, “एक पाई में टी ड़ी ड़ी ड़ी, दुई पाई में तीन टा बीड़ी, चार पाई में भेंटै छै सलैया हो जवाहर भैया.” इस तरह के बहुत से गाने उन दिनों लोगों की जबान पर रहते थे।

उपज उन वर्षों में हुई नहीं थी, पैसा किसी के पास था नहीं तो ऐसे बहुत से गाने बड़े प्रसिद्ध हुए थे. एक आना जिसके पास हो गया उसका चार दिन के भोजन का प्रबंध हो जाता था. हम लोग तो बच्चे थे, उतना बोध नहीं था पर यह सब हम लोगों ने भोगा था सो अभी तक याद है.

डॉ. राम देव झा

हमसे ईमेल या मैसेज द्वारा सीधे संपर्क करें.

क्या यह आपके लिए प्रासंगिक है? मेसेज छोड़ें.

More

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री मुन्नर यादव से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री मुन्नर यादव से हुई बातचीत के अंश

बिहार-बाढ़-सूखा-अकालमुन्नर यादव, 84 वर्ष, ग्राम बहुअरवा, पंचायत लौकहा, प्रखंड सरायगढ़, जिला सुपौल से मेरी बातचीत के कुछ अंश।हम लोग अभी अपने ...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री भोला नाथ आलोक से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री भोला नाथ आलोक से हुई बातचीत के अंश

बिहार बाढ़-सूखा - अकालपूर्णिया के ग्राम झलारी के 88 वर्षीय श्री भोला नाथ आलोक से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश।1957 में यहाँ अकाल जैसी स्थितियां...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री केदारनाथ झा से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री केदारनाथ झा से हुई बातचीत के अंश

बिहार बाढ़-सूखा-अकालश्री केदारनाथ झा, आयु 92 वर्ष, ग्राम बनगाँव, प्रखंड कहरा, जिला सहरसा से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश।"उस साल यह पानी तो आश...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री शिवेन्द्र शरण से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री शिवेन्द्र शरण से हुई बातचीत के अंश

बिहार-बाढ़-सूखा-अकालशिवेंद्र शरण, ग्राम प्रताप पुर, प्रखण्ड और जिला जमुई से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश। 94 वर्षीय श्री शिवेंद्र शरण जी स्वत...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, गंडक तटबन्ध की दरार (वर्ष 1949), श्री चंद्रमा सिंह से हुई चर्चा के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, गंडक तटबन्ध की दरार (वर्ष 1949), श्री चंद्रमा सिंह से हुई चर्चा के अंश

गंडक तटबन्ध की दरार-ग्राम मटियारी, जिला गोपाल गंज, 1949चंद्रमा सिंह, ग्राम/पोस्ट मटियारी, प्रखण्ड बैकुंठपुर, जिला गोपालगंज से हुई मेरी बातची...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री कृपाल कृष्ण मण्डल से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री कृपाल कृष्ण मण्डल से हुई बातचीत के अंश

बिहार-बाढ़-सूखा-अकाल-1949श्री कुणाल कृष्ण मंडल,ग्राम रानीपट्टी, प्रखंड कुमारखंड, जिला मधेपुरा से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश "दोनों धारों के ...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री रमेश झा से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, श्री रमेश झा से हुई बातचीत के अंश

बिहार-बाढ़-सुखाड़-अकालश्री रमेश झा, 93 वर्ष, ग्राम बेला गोठ, प्रखंड सुपौल सदर, जिला सुपौल से मेरी बातचीत के कुछ अंश- जेल तो तटबन्धों के भीतर...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, वर्ष (1953), पारस नाथ सिंह से हुई बातचीत के अंश

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, वर्ष (1953), पारस नाथ सिंह से हुई बातचीत के अंश

बिहार- बाढ़- सुखाड़- अकालपारस नाथ सिंह, आयु 86 वर्ष, ग्राम कौसर, पंचायत गभिरार, प्रखंड रघुनाथपुर, जिला – सिवान से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश। ...
कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, वर्ष (1965), रघुवंश शुक्ल से हुई बातचीत के अंश, भाग - 2

कोसी नदी अपडेट - बिहार बाढ़, सुखाड़ और अकाल, वर्ष (1965), रघुवंश शुक्ल से हुई बातचीत के अंश, भाग - 2

बिहार- बाढ़ - सुखाड़-अकालरघुवंश शुक्ल, 61 वर्ष, ग्राम जयनगरा, प्रखंड तिलौथु, जिला रोहतास.से हुई मेरी बात चीत के कुछ अंश। भाग - 2सोन नहर का फ़ाय...

रिसर्च

©पानी की कहानी Creative Commons License
All the Content is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Terms | Privacy