"पुल के गर्डर समेत रेल लाइन बह कर कहाँ गई, यह आज तक किसी को पता नहीं लगा."
इस अध्ययन के क्रम में मेरी बातचीत श्री मदन मोहन सिंह, ग्राम सरबदीपुर, पोस्ट कहलगाँव, जिला भागलपुर से हुई. उन्होंने मुझे 1995 में उस इलाके में आयी बाढ़ के बारे में बताया. यह वार्ता उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ.
मेरा गाँव गंगा के दाहिने किनारे पर कहलगांव स्टेशन से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर है. हमारा प्रखंड भी कहलगाँव ही है. पहले हमारा गाँव महेशमुंडा पंचायत में पढ़ता था अब यह ओगरी पंचायत में आ गया है. 15-20 घरों की बस्ती है जो गंगा से करीब एक किलोमीटर के फासले पर है. 1995 में हमारे गाँव में भयंकर बाढ़ आयी थी. गंगा के किनारे होते हुए भी हमारे गाँव में अमूमन बाढ़ नहीं आती क्योंकि गाँव और गंगा के बीच में एन.एच.-80 और रेल लाइन पड़ती है. उन पर बने पुलों पर से होकर अगर पानी कभी इस तरफ आ गया तो भी कोई ख़ास नुकसान नहीं करता है.
लेकिन हमारे गांव की 1995 वाली बाढ़ में पानी गंगा का न होकर झारखण्ड से जो नदियाँ गंगा की तरफ आती हैं उन पर बने बांधों के टूटने से इधर आया था. मेरे घर से लगभग 50 मीटर की दूरी पर मेरे बड़े भाई का मकान है. एक रात मेरा भतीजा मेरे पास रात में दौड़ा-दौड़ा आया और बोला कि चाचा, बाढ़ आ गयी है. मैं इसके लिए एकदम तैयार नहीं था. घबरा कर पलंग से उठा और चलने के लिए पैर ज़मीन पर रखा तो पलंग के पास घुटने भर पानी था. यह हमारे लिए असंभव सी बात थी. घर में सीढ़ी पर बैठ कर परिचितों और नाते-रिश्ते वालों को फोन करना चाहा.
मेरे कुछ रिश्तेदार पास के पकड़तल्ला गाँव में रहते हैं जो गंगा से सिर्फ 300-400 मीटर ही दूर है. कुछ घर तो केवल 200 मीटर के फासले पर ही होंगे. मेरा ख्याल था कि पानी आएगा तो गंगा की तरफ से आएगा और वो लोग तो डूब ही गए होंगें. उनकी एक मंजिल तो पानी में चली गयी होगी. पर वैसा वहां कुछ भी नहीं हुआ था. गंगा उस समय भी नीचे ही बह रही थी और यह जो पानी था वह बगल के रास्ते से गंगा में जा रहा था तो उनको भी इसकी खबर नहीं थी. पानी बड़े भाई के घर में भी नहीं था. उनके घर को भी बाईपास कर के बह रहा था. पानी मेरे ही घर और अगल बगल से होकर जा रहा था. गाँव के कई दूसरे घर भी इस पानी की चपेट में थे. आगे गंगा से एक धारा फूटती है जिसे हम कोआ नाला कहते हैं. इसके ऊपर रेल लाइन में एक पुल था जिसके दो पायों के बीच में एक बरगद का पेड़ फँस गया था जिसकी वजह से पानी पार नहीं कर पा रहा था. बरगद और पानी के दबाव से पुल टूट गया और उसके भारी भरकम गर्डर समेत रेल लाइन बह कर कहाँ गई यह आजतक किसी को पता नहीं लगा. पुल फिर नया बना. उस बाढ़ में कई आदमी मरे और हमारे घर में जितना भी अनाज था वह पानी के कारण गल कर सड़ गया.
हम लोगों के घर से थोड़े फासले पर बिहार विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर सदानंद बाबू का का गाँव है धोआवै, जिनके यहाँ बाढ़ के बाद बहुत से पत्रकार नुकसान का जायजा लेने के लिए आये थे. स्पीकर साहब ने मुझे उनके साथ लगा दिया था कि यह इलाका मैं उन्हें दिखा दूं. मैं उन पत्रकारों को लेकर इलाके में घूमने के लिए निकला. सड़क के दोनों तरफ मरे हुए जानवरों की लाशें बिखरी हुई थीं और उनसे बहुत दुर्गन्ध आ रही थी. आदमी भी बहुत मरे थे और बाढ़ के बाद तो हमने भी बहुत सी लाशों को बहते हुए देखा था पर पानी का वेग इतना था कि किसी की हिम्मत ही नहीं हुई कि उन्हें बचाने के लिए पानी में जाए.
उस समय यहाँ नेशनल थर्मल पॉवर कार्पोरेशन (एन.टी.पी.सी.) के पॉवर हाउस का निर्माण हो रहा था और उसके कार्यालयों में ए.सी. लगाने का काम चल रहा था जिसका काम किसी प्राइवेट कम्पनी को दिया गया था. इस कंपनी का एक इंजीनियर कहल गांव आया हुआ था. यहाँ का काम समाप्त करके वह आगे जाना चाहता था. उस समय पानी बहुत ज़ोरों से बरस रहा था. लोगों ने उसे जाने से मना किया मगर वह माना नहीं, आगे बढ़ गया. पीरपैंती में उसे रेलवे के एक परिचित टी. सी. मिले और वह दोनों वहाँ से ललमटिया के लिए निकले जहां जाने के लिए पीरपैंती से रास्ता फूटता था. पानी अभी भी ज़बरदस्त बरस रहा था और अब सडकों पर भी बहने लगा था. बहुत से लोगों ने उन्हें आगे न जाने की हिदायत दी मगर वह नहीं माने. ड्राईवर ने भी आगे न जाने के लिए आगाह किया पर इंजीनियर साहब ने उससे पीछे बैठने को कहा और खुद गाड़ी चलाना शुरू किया. रास्ते में धनौरा गाँव के पास उनकी कार पानी में बह गयी और इंजीनियर साहब की लाश कुछ दिन बाद गन्ने के खेत में अटकी हुई मिली. टी.सी. साहब के हाथ एन. टी.पी.सी. की बिजली की टावर के एक फ्रेम का हिस्सा आ गया और उन्होनें उसे पकड़ कर अपनी जान बचाई. वह अगर जिंदा न बचते तो यह किस्सा भी किसी को नहीं पता लगता और लाश की शिनाख्त में भी बहुत मुश्किल होती. ड्राईवर का क्या हुआ यह किसी को नहीं मालूम.
इस बाढ़ के बाद 2001 में हमारे यहाँ फिर बाढ़ आयी थी मगर यह उतनी भयंकर नहीं थी. छोटी-मोटी तो यहाँ हर साल आती है जिसकी कोई गिनती ही नहीं है.
हमारे यहाँ बाढ़ आने का मुख्य कारण फरक्का में गंगा नदी पर निर्मित बराज है. एक तो बराज का फाटक बंद रहने से पानी की निकासी में बाधा पड़ती है और दूसरे पानी देर तक टिकने की वजह से नदी की पेटी में बालू भी ज्यादा जमा होता है जिससे नदी की पेटी ऊपर उठ रही है. यही वजह है कि अब यहाँ बाढ़ आये दिन की घटना होती जा रही है. गंगा ने पहले से ज्यादा कटाव भी शुरू कर दिया है. पास के रानी दियारा और उसके बहुत से गाँव कट कर समाप्त हो चुके हैं. हम लोग सुरक्षित इसलिए हैं कि हमारे और गंगा के बीच यह एन.एच.-80 और रेलवे लाइन मौजूद है वरना हमारा भी गांव कट कर कब का रानी दियारा हो गया होता.
श्री मदन मोहन सिंह