ग्राम महिषी, पोस्ट और प्रखंड महिषी के 95 वर्षीय श्री तेज नारायण मिश्र (अब स्वर्गीय) से मेरी बातचीत के कुछ अंश.
1954 की बाढ़ में यहाँ बहुत तबाही हुई थी. उस वक़्त यह तटबंध नहीं बना था और उसकी केवल बातें चल रही थीं. हम लोग समझते थे कि नेपाल में बाँध बनेगा क्योंकि निर्मली में जो सम्मलेन 1947 में हुआ था उसमें नेपाल में ही बाँध बनाने की बात कही गयी थी. भादों का महीना था और कोसी का पानी अपने पूरे उफान पर था. घर के अनाज को बचाना मुश्किल हो गया था और ज्यादातर घरों में अनाज पानी के संपर्क में आकर सड़ गया. अब दो ही सहारे बाकी बचे थे. एक तो भैंस, जिससे दूध मिल सकता था और दूसरा जामुन के पेड़, जिससे जामुन मिल सकती थी. भैंस के साथ चारे की परेशानी थी पर गाँव में और उसके आसपास पेड़-पालो होने कि वजह से किसी तरह चारे का इंतजाम हो गया था. बाद में भारत सेवक समाज के लहटन चौधरी (जो बाद में मंत्री बने) कहीं से खजूर ले आये थे जो रिलीफ में बांटा गया. बहुत दिनों तक मचान बना कर रहना पड़ा था.
पानी जब उतरा तब हम लोग कुछ मूंग उगा सके. कात्यायनी स्थान की तरफ से अल्हुआ (शकरकंद) यहाँ आता था. मूंग जब तैयार हो गई तब हम लोग एक सेर मूंग के बदले 7-8 सेर अल्हुआ बदल लेते थे. उस साल बड़ी दिक्कत हो गई थी. वैसे जिसकी ज़मीन ऊपर थी उस पर तो खूब धान होता था. खाली छींट दो और जब तैयार हो जाए तो काट लो. कोई खाद नहीं देनी पड़ती थी और न ही सिंचाई का कोई खर्च था पर निचली ज़मीन वालों की फसल डूब जाती थी.
एक कलवार था जो कानपुर की तरफ से यहाँ आया था और मखाने का व्यापार करता था. बहुत पैसे उसने कमाए यहाँ से. उसके सभी भाई पटना में रहते थे और कई तरह का व्यापार इन लोगों का था. उसने यहाँ के बहुत से परिवारों को भैंस खरीद कर मुफ्त बांटी थी. कभी पैसा वापस नहीं माँगा. इन दोनों के अलावा गाँव के बीच रामशाला पर राजेंद्र मिश्र भी यहाँ आये थे जिनका भाषण भी हुआ था. उन्होनें हम लोगों को मदद करने का आश्वासन दिया था और बाद में कुछ रिलीफ सरकार से भी मिली थी.1958 में बाँध यहाँ तक पहुँच गया था और उस समय सुरक्षित हो गए थे और उसके बाद हम लोगों की कठिनाई थोडा कम हो गई थी.
यह तटबंध जब बना तब हम लोगों की समझ में ही नहीं आया कि यह हो क्या रहा है क्योंकि बाँध तो नेपाल में बनने वाला था तो यहाँ क्यों बन रहा है? बाद में पता लगा कि अभी यही बनेगा और नेपाल वाला बाँध बाद में बनेगा. इस बाँध के कारण हमारे गाँव के दो टुकड़े हो गए. काफी ज़मीन बाँध के अन्दर चली गयी थी और बहुत ज़मीन पुनर्वास में भी चली गयी. यह बाँध भी तो हमारी ही ज़मीन पर बना है. कोसी प्रोजेक्ट के एक प्रशासक टी.पी.सिंह थे जो हाथी पर बैठ कर इधर आते थे और सबको बताते थे कि इस बाँध के बनाने से क्या क्या फायदा होने वाला है
श्री तेज नारायण मिश्र.