कुसहा त्रासदी की पन्द्रहवीं वर्षगांठ, 18 अगस्त, 2022
कोसी के टूटते तटबंध
1. डलवा – नेपाल 21 अगस्त, 1963
2. जमालपुर – दरभंगा 5 अक्टूबर, 1968
3. भटनिया – सुपौल 14 अगस्त, 1971
4. बहुअरवा – सहरसा, अगस्त 1980 (सही तारीख खोजनी पड़ेगी)
5. हेमपुर – नवहट्टा, सहरसा, 5 सितम्बर 1984
6. गन्डौल/समानी, सहरसा, 16 अगस्त, 1987
7. जोगिनियाँ, नेपाल 18 जुलाई, 1991
8. कुसहा, नेपाल, 18 अगस्त, 2008
2008 में मैं कुसहा क्षेत्र में काफी घूमा था। सरकार के साथ-साथ वहां देश-विदेश से कटाव पीड़ितों की मदद करने के लिये बहुत से लोग और संस्थाएं आयी थीं और उसके लिये बिहार वासियों को उनका कृतज्ञ रहना चाहिये।
मैंने उन लोगों और संस्थाओं से बहुतों से पूछा था कि यह पानी अगर कुसहा से निकल कर कटिहार तक गंगा से मिलने के लिये नहीं जाता और पूरे रास्ते को तबाह नहीं करता तो कहां गया होता। आमतौर पर उनका कहना होता था कि पानी कहां जाता, यह तो उन्हें नहीं मालूम पर इस समय लोग मुसीबत में हैं इसलिये हम उनकी मदद करने के लिये आये हैं। उनमें से बहुत से लोग यह भी कहते थे कि यह इलाका बहुत पिछड़ा हुआ है, अब हम यहीं रहेंगे और लोगों के साथ मिल कर विकास मूलक काम करेंगे। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है कि सब शान्त हो जाने के बाद वह अपनी बात रखने के लिये कभी वापस नहीं आये।
कोसी तटबन्धों का काम 1963 में पूरा कर लिया गया था और उसके बाद यह तटबन्ध 2008 तक आठ बार टूट चुके थे, जिसकी सूची ऊपर दी हुई है। कोसी तटबन्धों के बीच सहरसा, सुपौल, मधुबनी और दरभंगा जिलों के सरकार के अनुसार 1963 में 304 गांव बसे हुए थे, जिसकी आबादी 1.92 लाख बताई जाती थी। हमारे अनुसार तटबन्धों के बीच गांवों की संख्या 380 है और उसकी आबादी 2001 की जनगणना के अनुसार 9.88 लाख थी।
गांवों की संख्या इस लिये बढ़ी क्योंकि यह तटबन्ध पहले पूरब में भारत के बीरपुर से बनगांव और पश्चिम में नेपाल के भारदह से भारत के भंथी तक ही बनने वाले थे, जिन्हें बाद में बढ़ा कर पूरब में कोपड़िया और पश्चिम में घोंघेपुर तक कर दिया गया था। बीरपुर के ऊपर नदी पर 34 किलोमीटर तक अफ्लक्स बांध का नेपाल में विस्तार है और पश्चिम में भारदह के ऊपर 9 किलोमीटर तटबन्ध बना हुआ है। कुसहा नेपाल में बीरपुर बराज से 14 किलोमीटर पर स्थित है। इस वृद्धि के कारण गांवों की संख्या रजिस्टर में बढ़नी चाहिये थी, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया और सुई 304 पर ही अटकी हुई है।
अब वापस आते हैं अपने सवाल पर कि कुसहा में पूर्वी तटबन्ध के टूटने जो पानी सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार के 35 प्रखंडों के 1167 गांवों को डुबाता और 4.5 लाख हेक्टेयर भूमि को तबाह करता हुआ गंगा से जा मिला, जिसमें प्रभावित लोगों की मदद के लिये देश-विदेश से लोग और संस्थाएं बिहार पहुंच गयी थीं। उनको यह मालुम ही नहीं था कि वह पानी अगर उधर न जाता तो कहां जाता।
1963 से लेकर 2008 के बीच 45 वर्ष का समय बीत गया था और यह तटबन्ध इस दौरान 8 बार टूटे। इसका सीधा अर्थ है कि 37 बार कोसी का पानी इन्हीं 380 गांवों के ऊपर से गुज़रा और वहां बसे लोग अपनी सामर्थ्य भर धरना-प्रदर्शन कर के चुप बैठ गये। हम यहां ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि कुसहा की दरार से निकले पानी को यह आजादी थी कि वह जहां तक चाहे, वहां तक फैल सके पर कोसी तटबन्धों के बीच का क्षेत्र सीमित है और वहां नदी तय करती है कि वह कितनी तबाही पैदा करना चाहती है।
इस नाइंसाफी कोई जवाब किसी सभ्य समाज के पास है?
पुनश्च: हमने यहां केवल 1963 से 2008 तक की चर्चा की है और केवल 37 बार तटबन्धों के सुरक्षित रहने का जिक्र किया है। अब तक का अगर हिसाब किया जाय तो अपने जीवन काल में कोसी के तटबन्धों ने 51 बार उनके बीच रहने वालों को कुसहा जैसी विपत्ति के सम्मुखीन किया है। वह ऐसी जगह है जहां हर साल कुसहा घटित होता है।