पद्मश्री (डॉ.)श्रीमती उषा किरण खान के साथ मेरी बातचीत के कुछ अंश -
बिहार-बाढ़-सूखा-अकाल, भाग -2
मल्लाह अगर रस्सी छोड़ देता तो हम लोगों का क्या होता?
एक विचित्र अनुभव है मेरा. हम लोग अपने गाँव से निकल कर घोघरडीहा रेल गाडी पकड़ने के लिये जाया करते थे। इस पूरे रास्ते में नाविकों को नदी की उलटी धारा में चलना पड़ता था। नाव खेकर इतनी दूरी तय करना अच्छे-अच्छे नाविकों के बस की बात नहीं होती. उनमें से एक आदमी रस्सी से नाव को बाँध कर किनारे से नाव को खींचते हुए ले जाता है। नदी बाँध से लग कर ही बहती थी इसलिए उसे तटबंध पर से खींचना आसान होता था। मैं अपने ससुर जी के साथ एक बार कई छोटे-छोटे बच्चों को लेकर र्गांव से रेलवे स्टेशन को चले। मैं उस वक़्त पटना में पढ़ती थी और घर के कुछ बच्चे दरभंगा में पढ़ते थे। घोघरडीहा तक की यात्रा पूरी नहीं हो पाई और रास्ते में अन्धेरा हो गया। उलटी धारा में चलती नाव में वैसे भी समय का अंदाज़ा नहीं हो पाता। नाव का एक मल्लाह बाँध पर रस्सी की मदद से नाव को खींच रहा था और दूसरा मल्लाह नाव में लग्गा चला कर नाव को दिशा दे रहा था।
अचानक जो आदमी बाँध पर रस्सी से नाव को खींच रहा था उसके पाँव में कोई चीज़ चुभ गयी और वह जोर से चिल्लाने लगा कि उसे किसी चीज़ ने काट लिया है। इधर से ससुर जी जोर से चिल्लाये कि किसी भी हालत में रस्सी मत छोड़ना। अगर वह रस्सी छोड़ देता तो नाव को काबू में रख पाना आसान नहीं होता। उनके पास एक पांच सेल की टोर्च थी जिसे दिखा कर उन्होनें बाँध वाले मल्लाह से कहा कि नाव को बाँध से लगाओ और हम आकर देखते हैं कि क्या हुआ है। बाँध पर जाकर ससुर जी को पता लगा कि उसे काँटा चुभा था। तब यह तय हुआ कि रस्सी को किसी पेड़ से बाँध दिया जाय और क्योंकि अब अँधेरा गहरा रहा था इसलिए आगे न जाकर यहीं कहीं रात बितानी पड़ेगी। अब आगे जाना संभव नहीं हो पायेगा।
उस बियाबान में एक घर ससुरजी को दिखाई पडा, जहां दीया जल रहा था। उन्होनें अंदाजा किया कि वहां रात में रुकने की व्यवस्था हो सकती है। ससुर जी उस ढिबरी की रोशनी की ओर अपनी टोर्च की मदद से आगे बढे और हम सभी लोग बच्चे-कुच्चों के साथ बाँध पर ही रह गए और उनके लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। जहां वह पहुंचे वह कबिराहा लोगों का मठ था। उन्होनें मठ वालों से कहा कि हम लोग दक्षिण से आ रहे हैं और घोघरडीहा जाना है। साथ में बच्चे हैं, रात में रहने का कोई इंतजाम हो जाता तो बड़ा अच्छा होता। उन लोगों ने ससुर जी से उनका परिचय पूछा तब उन्होनें बताया – मुसहरिया. उन लोगों ने दूसरा सवाल किया कि मुसहरिया दो हैं। एक मुसहरिया द्वारिका खान का है और दूसरा बहादुर खान का। आप किस मुसहरिया के हैं? ससुर जी का जवाब था कि हम द्वारिका खान वाले मुसहरिया के हैं जबकि उनका खुद का नाम बहादुर खान था और इलाके में उनकी अच्छी पहचान थी। उन्होनें इसे जाहिर नहीं किया।
तब रात भर रहने का इन्तजाम हुआ। उन लोगों ने एक चौकी और एक खाट का प्रबंध कर दिया। उस चौकी पर बच्चों के साथ मैं और खाट पर ससुर जी। अब नींद किसको आये क्योंकि मच्छर बहुत थे। बच्चे परेशान थे। उन लोगों ने पूछा कि कुछ पाइयेगा? तब ससुर जी ने बताया कि हम लोग खा-पी चुके हैं। अन्धेरा था सो रुक गये। जैसे ही सुबह हुई हम लोग वापस नाव पर आ गये।
जिस मल्लाह के पैर में काँटा चुभ गया था उसे बाद में बिरनी (ततैया) ने भी काट लिया। वह एक अलग कांड हुआ। वह मल्लाह अगर रस्सी छोड़ देता तो हम लोगों का क्या होता यह सोच कर डर लगता है।
क्रमशः - 3
श्रीमती (डॉ.) उषा किरण खान