बिहार-बाढ़-सूखा- अकाल
श्री सियाराम यादव, आयु 85 वर्ष, भूतपूर्व विधायक, बिहार विधानसभा, ग्राम मोहनपुर, प्रखंड पण्डौल, जिला मधुबनी से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश उन्हीं के शब्दों में।
मधुबनी के पास पूरब में एक गांव है चकदह और उसके पूरब में एक गांव है पलिवार। कमला नदी 1954 उधर से ही होकर बहने लगी थी। हमारा गांव मोहनपुर रेल लाइन के पश्चिम में पड़ता था। मैं उस समय मैट्रिक में पढ़ता था और बीच में हमारे गांव और इन दोनों गांव के बीच में जो रेलवे लाइन थी उस तक पानी आ गया था। इस रेलवे लाइन पर पानी की निकासी के लिये एक कलवर्ट बना हुआ था और रेलवे लाइन को बचाने के लिए वहाँ एक वाटसन चैनल बना दी गयी थी जिसके माध्यम से वह पानी निकल जाता था।
हम लोग जब गांव से मधुबनी पढ़ने के लिये आते थे तब उन दिनों बरसात के मौसम में नाव से ही आया-जाया करते थे। हमारा गांव मधुबनी से 6 किलोमीटर के आसपास है उस समय कमला नदी हमारे गांव के पास से होकर बहती थी। हम लोग तेरह नम्बर गुमटी पर नाव से उतर जाया करते थे और वहीं से स्कूल चले जाते थे। उस समय नाव वाला हम लोगों से दो आना पैसा मांगता था जो हम लोग कभी दे देते थे और कभी पैसा पास में नहीं होने पर हम लोग गमछा लपेट कर के उस पुल को पार कर जाया करते थे। रेलवे लाइन की वजह से पानी की निकासी होने में दिक्कत आती है चकदह और पलिवार जैसे गांव में पानी लगा रहता था। भीषण जल-जमाव के कारण हम लोगों के यहाँ धान नहीं हो पाता था। केवल रब्बी होती थी। गांव की स्थिति बहुत खराब थी और अधिकतर लोगों का काम मजदूरी से ही चलता था। बाढ़ के समय काम पाने में और भी ज्यादा दिक्कत हो जाती थी।
काम न मिल पाने पर मजदूर कोलकाता की ओर पलायन कर जाते थे। वहाँ भी समय से और ठीक-ठाक पैसा नहीं मिल पाता था तो लोग वहीं अटक जाते थे और गांव लौटने में लोगों को कई-कई साल लग जाते थे। लम्बे समय तक वापस न आ पाने के कारण कुछ लोग तो वहीं शादी कर लेते थे और वापस आते ही नहीं थे और आते ही थे तो बहुत से मामलों में उनके साथ उनकी नयी पत्नी भी होती थी। ऐसा होने पर पारिवारिक क्लेश बढ़ता था और प्रवासी को वापस चला जाना पड़ता था और वह कलकत्ता का ही निवासी हो जाता था। कभी-कभी ऐसे थोड़े गांव में ही रह जाते थे।
कभी-कभी ऐसा भी होता था कि आदमी कई वर्षो के बाद वापस लौटता था तो उसे पता लगता था कि उसकी पत्नी की दूसरी शादी हो गयी है और अब वह न सिर्फ दूसरे आदमी के साथ रह रही है वरन् उसके बच्चे भी हैं। विवाद इसमें भी कम नहीं होता था पर स्थिति को स्वीकार कर लेने के अलावा कोई रास्ता बचता ही नहीं था। समाज इसे सुलझाने में मदद करता था पर अधिकतर मामलों में आदमी को वापस लौट जाना पड़ता था। ऐसे लोग लौट कर शादी कर लेते थे।
श्री सियाराम यादव