तीन साल पहले की पोस्ट
1954 का सीतामढ़ी का नाव हादसा और नवाब परसौनी की मौत
अस्सी वर्ष के गुलाम रसूल जो नवाब परसौनी (सीतामढ़ी) की हवेली के बगल में रहते हैं, उन्होनें 1954 में हुए एक हादसे के बारे में मुझे जानकारी दी, जिसमें नवाब साहब की जान चली गई थी।
उन्होनें बताया कि, "ये 1954 की घटना है। मैं यहीं गन्ने के खेत के पास भैंस चरा रहा था कि एकाएक नदी में पानी बहुत तेज़ी से बढ़ गया और मैं भैस लेकर घर की तरफ भागा। उधर हल्ला हुआ कि नवाब साहब गाडी से नदी पार करते वक़्त गुम हो गए हैं। बाद में पता लगा कि परसौनी के नवाब सलाउद्दीन बाबू और उनके छोटे भाई अनीस बाबू मुजफ्फरपुर से अपनी जीप से सीतामढ़ी आ रहे थे। यहाँ भनसपट्टी के पास लचका में पानी बहुत तेज़ी से चल रहा था और वहाँ जो लोग मौजूद थे उन्होनें उन्हें बहुत रोका कि आगे मत जाइए, खतरा है। गाडी के साथ ड्राईवर था मगर उसने भी मना किया कि जाना ठीक नहीं होगा। लेकिन नवाब साहब की क़िस्मत में कुछ और बदा था और वह माने नहीं।
तब कहते हैं कि ड्राईवर को उतार दिया गया और अनीस बाबू ड्राईवर की सीट पर बैठे और जीप लेकर आगे बढ़ गए। एकाएक पानी की धारा बहुत तेज़ हो गयी और उनकी जीप कुछ दूर जाकर पानी में बह गई। इस हादसे में अनीस बाबू तो बच गए, उन्हें तैरना आता था सो जैसे तैसे निकल आये मगर सलाउद्दीन साहब का कुछ पता नहीं लगा।
नदी का किनारा होने की वजह से बहुत से मल्लाह वहाँ मौजूद थे। एक लाइन से मल्लाह नदी में कूद पड़े और उन्होनें नवाब साहब को बचाने और खोजने की बड़ी कोशिश की मगर वह बह कर दूर चले गए थे जबकि जीप ज्यादा दूर पानी में नहीं गई थी। उनकी लाश तीन दिन के बाद बहुत दूर आगे के किसी गाँव में मिली थी जिसका नाम अब मुझे याद नहीं है। जब उनको खोज लिया गया तब उनकी घडी चल रही थी, ऐसा सुनने में आया।
इस तरह की न जाने कितनी वारदातें बाद में भी हुईं। कभी कार, कभी बस, कभी नाव यहाँ बहती ही रहती है। पता नहीं, कैसे जिन्नात का साया यहां पड़ा हुआ है।
जनाब गुलाम रसूल