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कोसी नदी अपडेट - वर्ष 1976 की बेगूसराय की बाढ़, पद्मश्री श्रीमती उषाकिरण खान जी से हुई चर्चा के अंश

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • January-04-2023
बेगूसराय की बाढ़ - 1976

इस बाढ़ के बारे में मुझे प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री श्रीमती उषाकिरण खान ने बताया।
उनका कहना था कि, सन् 1976 में मैं बेगूसराय में थी। बेगूसराय के पुलिस आरक्षी अधीक्षक मेरे पति श्री रामचंद्र खान थे। सन 1975 में पटना में जो बाढ़ आयी थी, ऐसी बाढ़ जो काफी लम्बे अन्तराल पर ही आया करती है, वह भी तब जब गंगा सोन और पुनपुन का पानी साथ-साथ बढ़ने लगे। रामचन्द्र जी लगातार पटना की बाढ़ का मुकाबला करते रहे थे यद्यपि बेगूसराय भी बाढ़ग्रस्त जिला है पर वह उस वर्ष वह बचा हुआ था। सन 1976 में उसकी बारी थी।

उस साल यहां का बछवारा अंचल का इलाका सर्वाधिक पीड़ित था। गांव के गांव जलमग्न हो गये थे। अधिकांश लोग गांव छोड़ कर किसी न किसी बांध पर या सड़क पर चले आये थे। फिर भी कुछ गांव टापू की तरह घिरे हुए थे। जहां खाना ही नहीं, पीने का पानी मिलना तक मुहाल हो गया था। वहां हम लोगों ने एक महिला समिति गठित कर रखी थी। उस जमाने में वहां की स्त्रियां घरों से बाहर नहीं निकलती थी यद्यपि स्कूल कॉलेज का पढ़ने और पढ़ाने वाली स्त्रियों की हमने जो समिति बनायी थी उसमें अग्रवाल तथा उच्च जाति वर्ग की स्त्रियां थीं। बाजार के लोगों की पत्नियां तो थी हीं। हमने विचारा कि अगर हम स्वयं वस्त्र और जरूरी सामग्री इकट्ठा करके बाजार में निकलेंगे तब कुछ अधिक राहत सामग्री मिल जायेगी। सारी अवगुंठन वाली स्त्रियां मेरे ही नेतृत्व में बाजार में निकल पड़ी।

दो ट्रक अन्न, वस्त्र और माचिस-मोमबत्ती, बिस्कुट-ब्रेड आदि सामग्री जमा हो गयी थी। यह सब अप्रत्याशित था। अब जरूरत थी राहत पहुंचाने की। गेहूं पिसवा कर पूड़ी वगैरह बनवा लिया। कपड़े तथा अन्य सामान लेकर हम लोगों ने प्रभावित गांवों की सीमा पर बांध पर बसे लोगों को यह सब सामग्री बांटी। द्वीप बने गांव तक जाने के लिये हमें नाव पर चढ़ कर जाना होता था। बहुत सी स्त्रियां नाव में जाने से बेहद डरती थीं। मैं तो नदी-नाले के बीच की रहने वाली थी तो मुझे डर कैसा? बहुत कम स्त्रियां साथ चलने को राजी हुईं। हम नाव पर चढ़ कर गांव-गांव घूमते रहे। पीड़ित स्त्रियों को ढांढ़स बंधाते रहे। क्या करते?


द्वीपों में पानी में फंसी महिलाएं हमारी प्रतीक्षा करती थीं। उनमें से बहुत सी अच्छे और संपन्न घरों की महिलाएं भी थीं जिनका घर धन-धान्य से भरा हुआ था मगर उनका सब कुछ नष्ट हो गया था, यहां तक कि उनका बक्सा-पेटी वगैरह भी सब बह गया था। कपड़े बदलने को भी नहीं बचे थे। राहत की सामग्री लेने के लिये वह लज्जा वश हाथ आगे नहीं कर पाती थीं। हम लोग दिन-भर उनके साथ रह करन उन्हें मनाते, खिलाते और राहत देने को रिझाते रहते। यह कार्य महिला समिति की बहनें, कुछ नवयुवक और स्थानीय पुलिस कर रही थी। एकजुट होकर यदि प्रयास न हुआ होता तो बहुत गड़बड़ हो गयी होती।

हमारे दो दिन के राहत कार्य करने के बाद सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की टीम, मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टरों की टीम वहां पहुंची। मेडिकल एसोसिएशन की टीम दवाई लेकर गांव-गांव घूमने लगी। प्रशासन ने बांध पर रहने वालों को अस्थायी छप्पर मुहैया कराया। म्यूनिसिपैलिटी के लोग गांवों की ओर डी.डी.टी. वगैरह लेकर छिड़काव करने के लिये बढ़े। हमारे पीछे-पीछे इंडियन ऑयल, इंडियन फर्टिलाइजर इंडस्ट्री की महिला समिति की बहनें भी अपनी तरफ से राहत सामग्री लेकर सामने आईं। उसी समय, मुझे याद है, रूस से पानी की निकासी के लिये पाइप और उसके संचालनकर्ता बुलाये गये थे। गांवों में जमे हुए पानी को लेकर बाया नदी में गिराने के लिये उनकी सेवाएं ली गईं। बाढ़ राहत कार्य हमने लगभग एक माह तक किया और जब स्थिति सामान्य हुई तथा प्रशासन ने पूरी तरह ध्यान देना शुरू किया तब हम लोग लौट आये।

उस समय की बात चली तो मुझे याद आया कि स्त्रियां चाहें तो अपने काम और लगन से न सिर्फ ऐसे संकट दूर कर सकती हैं बल्कि शासन प्रशासन की निष्क्रियता को भी छिन्न-भिन्न कर सकती हैं।

पद्मश्री श्रीमती ऊषाकिरण खान


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