बिहार में बरसात का मौसम शुरू हो गया है। हर साल की तरह इस बार भी नेपाल द्वारा पानी छोड़ने की बात मीडिया में प्रखर रूप से सामने आ रही है। कुछ दिन पहले एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर भी यही बात सुनने में आयी जो किसी भी पैमाने से गैर-जिम्मेदाराना है। संवाददाता को यह पता ही नहीं था कि वह कह क्या रहा है और क्यों कह रहा है। इस तरह के बयानों से आम जनता के बीच भ्रम फैलता है।
नेपाल द्वारा पानी छोड़ने की परंपरा कोई नयी नहीं है। सन 2004 में 7 जून के दिन सीतामढ़ी के भनसपट्टी गांव के पास एक नाव दुर्घटना में एक बस बागमती नदी की बाढ़ में चपेट में आ गयी थी, जिसमें 32 बाराती सवार थे। सरकारी सूत्रों के अनुसार उनमें से केवल छ: को बचाया जा सका और बाकी लोगों की जल-समाधि हो गयी। उसी दिन शिवहर को सीतामढ़ी से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 104 पर डुब्बा पुल के पास एक नाव दुर्घटना में 24 लोगों के मारे जाने की खबर आयी।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस नाव पर सवारियों की पांच मोटर साइकिलें और दस साइकिलों के साथ लगभग साठ सवार लोग सवार थे। जिला प्रशासन ने केवल दस व्यक्तियों के मारे जाने की पुष्टि की आंकड़ों के बात न भी भी करें तो इस वर्ष बाढ़ की शुरुआत बहुत ही भयानक तरीके से हुई थी।
इन दोनों घटनाओं के संदर्भ में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का एक बयान आया, जिसमें कहा गया था कि, "नेपाल से पानी छोड़े जाने से बाढ़ आई"। इस शीर्षक से दैनिक हिंदुस्तान के पटना संस्करण में 9 जून, 2004 में अखबार ने लिखा कि, "यहां जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक मुख्यमंत्री ने कहा कि नेपाल से बिना सूचना दिये अधिक पानी छोड़ दिये जाने के कारण असामयिक बाढ़ आ गयी है। सीतामढ़ी के जिलाधिकारी ने मुख्यमंत्री को सूचित किया है कि असामयिक बाढ़ आने के कारण यह दुर्घटना हुई।" यह बात अगर किसी टी.वी. चैनल से या अखबार से कही जाती तो उसको शायद माफ किया जा सकता था पर यह बयान तो राज्य के मुख्यमंत्री का था।
मुख्यमंत्री के इस बयान को लेकर उस समय बिहार विधानसभा और विधान परिषद में तीखी बयानबाजी हुई। उस समय इन दोनों संस्थाओं का वर्षा कालीन सत्र चल रहा था। जल संसाधन विभाग के 2004-05 के बजट पर बहस चल रही दौरान विधायक रामप्रवेश राय ने कहा कि कांग्रेसी राज्यों में सिंचाई से सुविधा प्रदान करने की योजना बनी थी लेकिन आज भी पूरे बिहार में माननीय मंत्री जी के इलाके को छोड़ कर कहीं कोई सुविधा नहीं है। महोदय, यह जल प्रबंधन की बात करते हैं। यह कल परसों ही (यहां) कहा जा रहा था कि नेपाल पानी छोड़ देता है। महोदय, मैं भी कभी कभी इनके पास बैठता हूं। यह भी कहते हैं कि नेपाल पानी नहीं छोड़ता है। हम लोग नेपाल पर झूठ-मूठ इल्जाम लगाते हैं। जब पानी क्षमता से अधिक हो जाता है तो वह पानी बाढ़ के रूप में आता है और उससे बिहार का नुकसान होता है। महोदय, अभी-अभी बाढ़ का पानी आने से अनेकों लोग लापता हैं। नेपाल से पानी आने के कारण आज सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर का राजमार्ग बंद और हम आरोप लगाते हैं कि नेपाल पानी छोड़ देता है, इस कारण से यह हो रहा है।"
अनेक राजनेताओं की गलत जानकारी या फिर उनके द्वारा जान-बूझकर गलत बयानी करने और नेपाल द्वारा पानी छोड़ने की झूठ को बार-बार दोहराने से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के जन-मानस में यह बात पूरी तरह बैठ गयी है कि इस क्षेत्र में बाढ़ से तबाही के पीछे नेपाल का हाथ है। जानकारी में अभाव की वजह से इस दुष्प्रचार में मीडिया भी जोर-शोर से भाग लेता है। यह बात जहां राजनीतिज्ञों, प्रशासकों और इंजीनियरों से अनुकूल पड़ती है क्योंकि वह आम आदमी की नजरों में तात्कालिक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं वहीं दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों में खटास पैदा करती है। इसलिये कोई आश्चर्य नहीं है कि अगर नेपाल में आम लोग इस मानसिकता से ग्रस्त हों कि जल संसाधन के विकास की सारी साझा योजनाओं का सारा लाभ केवल भारत को मिलता है और उनके हिस्से केवल तबाही आती है।