बिहार में बाढ़ -सूखा और अकाल का अध्ययन करते हुए मुझे यह संपादक के नाम एक पत्र पढ़ने को मिला, जिसे जानकीनगर, पूर्णिया के किन्ही भीष्म सिंह ने लिखा था जो पटना से प्रकाशित होने वाले अंग्रेज़ी दैनिक दी इंडियन नेशन में 'कोसी कैनाल स्कैंडल' (Kosi Canal Scandal) के शीर्षक से 5 जनवरी, 1971को प्रकाशित हुआ था।
वह कहते हैं, "महाशय, आज सुबह जब मैं पटना से लौटा तो मैंने देखा कि बनमनखी के कोसी कैनाल डिवीजन कार्यालय का माहौल बहुत ही तनावपूर्ण और चिन्ताजनक था। मैंने देखा कि डिविजनल ऑफिस के सामने धरना देने वालों की एक पलटन बैठी हुई है, जो पचास के आसपास रहे होंगे और जिनके साथ लाल कपड़ों पर लिखी हुई इबारतें थी। जिन पर विभिन्न संगठनों के नाम लिखे हुए थे और इनमें राज्य सरकार के अराजपत्रित कर्मचारी भी शामिल थे। दूसरे कर्मचारी यूनियनों की भी वहाँ मौजूदगी थी जो 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे और इसके साथ ही साथ 'एग्जीक्यूटिव इंजीनियर मुर्दाबाद' के नारे लग रहे थे। उसके साथ और भी बहुत से नारे लग रहे थे जो ऐतराज करने लायक थे। मुझे लगा कि मुझे इस धरने की पृष्ठभूमि जाननी चाहिये।
"आज का दिन 30 दिसम्बर है और सिंचाई के लिये इस नहर से पानी 15 दिसम्बर को ही छोड़ दिया जाना चाहिये था, लेकिन अभी तक यह पानी नहर में नहीं छोड़ा गया है। मैं ऐसा विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इस इलाके में जितनी गेहूँ की फसल लगी हुई है उसमें से पचास प्रतिशत फसल या तो अब तक सूख चुकी है या पूरी तरह से समाप्त होने के कगार पर है।
जानकी नगर शाखा नहर की इस क्षेत्र में न तो कोई मरम्मत हुई है और न ही उसकी तलहटी से मिट्टी निकाल कर उसकी सफाई की गयी है। यहाँ के अधिकारी 9 अगस्त, 1970 से क्या कर रहे थे यह वही बेहतर बता सकते हैं।
मैंने आपके पत्र के माध्यम से पहले भी रिपोर्ट की थी और एक बार फिर कह रहा हूँ कि इस दफ्तर के काम-काज का रवैया बहुत ही बेढंगा है। यह कहने में बड़ा विचित्र लगता है लेकिन यह सच है कि क्षेत्रीय विकास आयुक्त ने इस डिवीजन की पूरी तरह से अनदेखी की है। वह कभी भी दूर-दराज से बुलाये गये किसानों की बैठकों में नहीं आते हैं जबकि यह बैठकें इसी अधिकारी के नाम पर बुलाई जाती हैं। परिणाम यह होता है कि किसान निराश होकर वापस लौट जाते हैं क्योंकि साहब आते ही नहीं है। मैंने यहाँ के लोगों से एक ऐसे क्षेत्र विकास आयुक्त के बारे में सुना है जो सिंचाई की माँग के समय घर-घर जाया करते थे पर अब यहाँ एक ऐसा अफसर है जो अंदरूनी इलाके की ओर जाता ही नहीं है।
अत: मैं वर्तमान मंत्रिमंडल से आग्रह करता हूँ कि इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति का संज्ञान ले और यथाशीघ्र इस समस्या का समाधान करें ताकि किसानों को राहत मिले क्योंकि वह पूरी तरह से बेसहारा हो गये हैं। मुझे दु:ख के साथ यह कहना पड़ता है कि वर्तमान जो भी अधिकारी इस डिवीजन में रखे गये है वह इस डिवीजन पर बोझ हैं। दुर्भाग्यवश, उनको क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव ही नहीं है। गन्दी राजनीति खेलने के अलावा उनके पास कोई भी तकनीकी या किसी काम का अनुभव नहीं है कि उन्हें इतने बड़े डिवीजन में रखा जाय। वह किसी भी तरह से इस काम में उपयोगी नहीं होंगे। मुझे पता लगा है कि उनमें से कुछ तो किशनगंज के किसी महाशय की सिफारिश से यहाँ रखे गये हैं। इससे न तो प्रशासन को कोई लाभ पहुँचेगा और न ही गरीब,जरूरतमन्द किसान लाभान्वित होंगे।
मैं एक बार फिर वर्तमान मंत्रिमंडल से यह आग्रह करता हूँ इसके पहले यह डिवीजन पूरी तरह से जनता और सरकार दोनों के हितों की रक्षा करने से एकदम बेकार हो जायेँ, यहाँ बिना समय गंवाये एक स्थायी एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर की नियुक्ति की जाये। यह एक समयानुकूल चेतावनी है भले ही इसको कई बार कहा गया हो। क्या सरकार इस पर त्वरित कार्यवाही करेगी?"
भीष्म सिंह,
जानकी नगर, पूर्णिया
30 दिसम्बर, 1970
पूर्णिया जिले से तो यह पत्र इसलिये लिखा गया होगा कि वहाँ सिंचाई व्यवस्था होते हुए भी काम नहीं कर रही थी। इससे एक ओर तो खरीफ की फसल के समय की सरकार की लापरवाही जाहिर होती है और दूसरी ओर रब्बी की फसल के लिये पानी न मिल पाने की अंदेशा था। यहाँ यह याद दिलाना सामयिक होगा कि 1970 का वर्ष बिहार में सूखे का वर्ष था और हथिया का पानी अधिकांश जगहों पर हुआ ही नहीं था, जिसका असर 1971 तक हुआ था। जब वर्षा के अभाव में भी कोसी नदी की नहरों से पानी न मिल सके तो फिर नहरों का फायदा ही क्या हो सकता है? बाकी सिंचाई योजनाओं का जो हश्र हुआ होगा वह तो समझा ही जा सकता है।